फ्रांस में कट्टर दक्षिणपंथियों की जीत के मायने
२० जून २०२२फ्रांस के कट्टर दक्षिणपंथियों को संसदीय चुनाव में ऐतिहासिक जीत मिली है. रविवार को आए चुनावी नतीजों के बाद संसद में उनके सांसदों की संख्या करीब दस गुना बढ़ गई है और नेशनल रैली (आरएन) एक छोटे दल से उभरकर एक बड़ी विपक्षी पार्टी बन गई है.
2011 में मरीन ला पेन ने पार्टी की कमान संभाली थी. तब उसका नाम नेशनल फ्रंट हुआ करता था. मरीन ला पेन के पिता ज्यां-मारी ला पेन 40 साल तक नेशनल फ्रंट के नेता रहे. उनके नेतृत्व में इस पार्टी की छवि एक यहूदी विरोधी पार्टी की बनी रही. लेकिन ला पेन ने पार्टी को उस छवि से बाहर निकाला और एक राष्ट्रीय दल के रूप में गंभीरता दिलाई.
अप्रैल में हुए राष्ट्रपति चुनावों में ला पेन ने 42 प्रतिशत मत हासिल करके राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों को यह संकेत तो दे दिया था कि देश में एक बड़ा तबका है जो उनकी नीतियों का समर्थक नहीं है और बढ़ती महंगाई वह अन्य मुद्दों पर नाराज है. रविवार को ला पेन ने एक कदम और आगे बढ़ा लिया है.
नेशनल रैली का 80-90 सीटें जीतना तय है. 2012 पार्टी के पास सिर्फ दो सीटें थी. 2017 में उसने आठ सीटें जीती थीं. पिछले हफ्ते अधिकतर विशेषज्ञों ने अनुमान लगाया था कि उन्हें 25-50 सीटें मिल सकती हैं. लेकिन नतीजों ने सारे अनुमानों को ध्वस्त कर दिया है.
ताकतवर हुईं ला पेन
उत्तरी फ्रांस की अपनी सीट से दोबारा जीतने वालीं ला पेन ने विजयी भाव के साथ संवाददाताओं को बताया, "हमने अपने तीन लक्ष्य हासिल किए हैः इमानुएल माक्रों को अल्पमत का राष्ट्रपति बनाना, सत्ता पर उनका नियंत्रण खत्म करना और लोकतांत्रिक नवीकरण के लिए जरूरी राजनीतिक सोंजन में बदलाव करना."
ला पेन ने कहा कि वह एक जिम्मेदार विपक्ष की भूमिका निभाएंगी. वामपंथियों की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि उन्होंने ऊपर बैठे माक्रोंवादियों और नीचे बैठे न्यू्प्स के खिलाफ एक निर्णायक विपक्षी' समूह तैयार कर लिया है. वामपंथियों के फ्रांस में अब मुख्य विपक्षी दल बनने का रास्ता साफ हो गया है. हालांकि अति वामपंथी ला फ्रांस इनसूमीज को ला पेन की पार्टी से कम सीटें मिल रही हैं लेकिन वाम दलों के समूह के पास कुल मिलाकर सीटें ज्यादा होंगी.
रविवार के नतीजों ने फ्रांस में कथित ‘रिपब्लिकन फ्रंट' को भी ध्वस्त कर दिया. यह फ्रंट कट्टर दक्षिणपंथियों को जीतने से रोकने के लिए बनाया गया था लेकिन आरएन अब और मजबूत होकर उभरी है और सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के रूप में उसके पास कई तरह की शक्तियां आ गई हैं. मसलन अब ला पेन सरकार के खिलाफ अविश्वास मत ला सकती हैं. वह फ्रांस की सर्वोच्च संवैधानिक अदालत को बिल का मसौदा भेज सकती हैं, संसदीय कमीशन की अध्यक्षता कर सकती हैं और नेशल असेंबली में उनके पास बोलने के लिए समय भी अधिक होगा.
इमानुएल माक्रों की मुश्किलें
वित्त मंत्री ब्रूनो ला माएर ने फ्रांस 2 टेलीविजन को बताया, "आरएन ने जो सफलता हासिल की है उससे हम एक लोकतांत्रिक आघात महसूस कर रहे हैं." राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों के लिए यह बड़ा झटका है क्योंकि बहुमत के लिए जरूरी 289 सीटों से उनका मध्यवादी गठबंधन ‘एनसेंबल अलायंस' 245 सीटों के साथ काफी पीछे रह गया है.
अप्रैल में ही राष्ट्रपति चुने गए 44 वर्षीय माक्रों के लिए यह यूरोपीय संघ के स्तर पर भी झटका होगा क्योंकि वह संघ को और मजबूत करने के पक्षधर हैं और देश के भीतर भी कई बड़े सुधारों पर काम कर रहे हैं. मसलन, माक्रों रिटायरमेंट की उम्र बढ़ाना चाहते हैं और देश के परमाणु उद्योग को भी नया जीवन देना चाहते हैं. अब अल्पमत में आ जाने के बाद उनके लिए यह सब फैसले लेना मुश्किल हो जाएगा.
माक्रों के पास ज्यादा विकल्प भी नहीं हैं. या तो वह अल्पमत की सरकार चलाएं और हर फैसले के लिए विपक्ष के साथ मोलभाव करें या फिर यूरोप की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था को अव्यवस्था की ओर जाने दें. फ्रांस की प्रधानमंत्री एलिजाबेथ बोर्न ने रविवार देर रात कहा, "हम कल से ही कार्यरत बहुमत बनाने के लिए काम शुरू कर देंगे ताकि हमारे देश में स्थिरता सुनिश्चित हो और जरूरी सुधार होते रहें."
वीके/सीके (रॉयटर्स, एएफपी)