यूक्रेन की मदद के लिए नाटो, ईयू बढ़ाएंगे सहयोग
१० जनवरी २०२३एक साल से जारी रूस-यूक्रेन संघर्ष में नाटो और यूरोपीय संघ ने हथियार भेजने से लेकर क्षेत्रिय सुरक्षा को बरकरार रखने समेत कई तरह से यूक्रेन की मदद की है. अब इस सहयोग को एक नए स्तर पर ले जाने के लिए दोनों पक्षों ने एक ब्रसेल्स स्थित नाटो मुख्यालय में संयुक्त घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं. इसमें मिलकर कहा है कि ऐसा सहयोग "पहले से कहीं ज्यादा अहम हो चुका है."
अमेरिका के नेतृत्व वाले 'नॉर्थ एटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन' (नाटो) के प्रमुख जेन्स स्टोल्टेनबर्ग ने कहा, "हमें नाटो और यूरोपीय संघ के बीच अपनी साझेदारी को और मजबूत बनाना जारी रखना होगा. और यूक्रेन को दिए जा रहे हमारे सहयोग को भी."
नाटो और ईयू के देशों को मिलाकर देखें तो इसमें 21 सदस्य देश आते हैं. इन्होंने हमले की शुरुआत के समय से अब तक अरबों डॉलर के हथियार यूक्रेन भेजे हैं, जिससे रूसी सेनाओं को थामे रखने में काफी मदद मिली है.
अमेरिका, जर्मनी और फ्रांस घोषणा कर चुके हैं कि वे यूक्रेन को हथियारबंद लड़ाकू वाहन भी सप्लाई करेंगे. वहीं यूक्रेन की गुजारिश है कि उसे आधुनिक भारी टैंक भेजे जाएं. यूरोपीय आयोग की प्रमुख उर्सुला फॉन डेय लायन ने कहा, "यूक्रेन को सब जरूरी सैन्य उपकरण मिलने चाहिए जिनकी उसे जरूरत है और जिनसे वो अपने घर को सुरक्षित रख सकें."
उन्होंने साफ कहा कि "जाहिर है कि इसमें एडवांस एयर डिफेंस सिस्टम शामिल होंगे और दूसरे कई तरह के एडवांस सैन्य उपकरण भी."
स्टोल्टेनबर्ग ने कहा है कि यूक्रेन के पश्चिमी सहयोगी अगले हफ्ते यूक्रेन के रक्षा मंत्री से मिलेंगे और उनसे जानेंगे कि "उन्हें किस तरह के हथियार चाहिए और सहयोगी देश उन्हें वो सब कैसे मुहैया करा सकते हैं."
मॉस्को के हमले के समय से यूरोप की सुरक्षा व्यवस्था पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं. कई जानकारों का मानना है कि पूरे महाद्वीप की रक्षा के लिए ईयू और नाटो को और ज्यादा करीबी सहयोग करने की जरूरत है. नाटो के पीछे पूरी अमेरिकी सैन्य शक्ति है जिस पर यूरोप भी अपनी सुरक्षा के लिए काफी हद तक निर्भर करता है. कई सालों से दोनों पक्ष आपसी सहयोग को और गहराने पर चर्चा करते आए हैं.
सन 2016 से लेकर अब तक यह तीसरा संयुक्त घोषणापत्र है. दोनों पक्ष साइबर सुरक्षा के मामले में अपने मूलभूत ढांचे को बेहतर बनाने पर खास ध्यान दे रहे हैं. इसके अलावा जरूरत पड़ने पर यूरोप के भीतर सेना को ज्यादा आसानी से एक जगह से दूसरी जगह भेजने के लिए भी मजबूत ढांचा तैयार करने की मंशा है. इन्हें बनाने के अलावा, क्रिटिकल इंफ्रास्ट्रक्चर को दुश्मन के हमलों से बचाने के लिए भी पहले से ही तैयारी की जाएगी.
आरपी/आरएस (एएफपी)