रामचंद्र पौडेल नेपाल के अगले राष्ट्रपति, उठापटक ने दिया साथ
९ मार्च २०२३राजशाही खत्म होने और लोकतंत्र बनने के बाद से रामचंद्र पौडेल देश के तीसरे राष्ट्रपति चुने गए हैं. वर्तमान राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी का कार्यकाल 12 मार्च को खत्म हो रहा है. पौडेल का जीतना लगभग तय माना जा रहा था. उनके पास सत्तारूढ़ सीपीएन (माओइस्ट सेंटर) समेत नौ पार्टियों का समर्थन था.
इस चुनाव के कारण नेपाल में मुख्य राजनीतिक दलों के बीच मतभेद गहरा गए और पहले से ही अस्थिर माहौल में और अस्थिरता आ गई है. हालांकि राष्ट्रपति पद का सर्वोच्च होना सांकेतिक है, लेकिन समय-समय पर सत्तारूढ़ दल द्वारा राष्ट्रपति के सहारे राजनीतिक लाभ उठाने, विरोधियों को निशाना बनाने और खास पार्टी को तवज्जो दिए जाने के आरोपों के बीच इस पद के लिए होड़ बढ़ गई है. बिद्या देवी भंडारी पर भी अपने कार्यकाल में के पी शर्मा ओली की सरकार और पार्टी को बेजा फायदा पहुंचाने और विपक्षी दलों के साथ पक्षपात करने के गंभीर आरोप लगे.
सहयोगी बने विरोधी, विपक्षी बने साझेदार
मौजूदा राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार के सवाल पर सत्तारुढ़ गठबंधन में दरार पड़ गई. बमुश्किल तीन महीने पुरानी प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल "प्रचंड" की सरकार में फूट पड़ गई. दहल ने राष्ट्रपति चुनाव में विपक्षी नेपाली कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार रामचंद्र पौडेल के समर्थन का फैसला किया. जबकि गठबंधन में उनकी सहयोगी पार्टी "कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (यूएमल)" अपना प्रत्याशी खड़ा करना चाहती थी. यूएमल मौजूदा संसद में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी और गठबंधन सरकार में सबसे बड़ी सहयोगी थी.
यूएमएल के मुताबिक, दिसंबर 2022 में दहल के नेतृत्व में गठबंधन सरकार बनने के समय उनका माओइस्ट सेंटर से एक करार हुआ था. इसके मुताबिक, दहल को प्रधानमंत्री बनाने के लिए समर्थन देने के बदले माओइस्ट सेंटर यूएमएल के प्रत्याशी को राष्ट्रपति और स्पीकर बनाने में सहयोग करने वाला था. हालांकि सरकार के गठन के कुछ वक्त बाद ही स्थितियां बदलती नजर आईं. एक ओर जहां यूएमएल और माओइस्ट सेंटर के बीच दूरियां बढ़ने लगीं, वहीं दहल और नेपाली कांग्रेस फिर से करीब आते दिखे.
अभी उपराष्ट्रपति चुनाव भी होना है
नेपाल में सामान्य हो चुकी राजनीतिक उठापटक के बीच यह घटनाक्रम हैरान करने वाला नहीं था. नवंबर 2022 में दहल, नेपाली कांग्रेस के शेर बहादुर देउबा के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार से बाहर हुए थे. तब बताया गया था कि दहल पीएम बनना चाहते हैं और देउबा इसके लिए राजी नहीं. दिसंबर में दहल के पीएम बन जाने के कुछ ही दिनों बाद 10 जनवरी को जब संसद में फ्लोर टेस्ट हुआ, तो नेपाली कांग्रेस ने उन्हें समर्थन दिया.
इसके बाद दहल के भी स्वर बदलने लगे. उन्होंने कहा कि नया राष्ट्रपति सर्वसम्मति से चुना जाना चाहिए. राष्ट्रपति पद पर समर्थन ना मिलने से नाराज यूएमएल 27 फरवरी को गठबंधन से बाहर निकल गई.
काठमांडू में स्वतंत्र राजनीतिक विश्लेषक ध्रुबा अधिकारी बताते हैं, "नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता का दौर खत्म नहीं हुआ जबकि आम चुनाव बहुत कामयाबी के साथ संपन्न हुए थे और नई गठबंधन सरकार बनी थी." दहल को इसी महीने बहुमत भी साबित करना है. राजनीतिक अस्थिरता नेपाल में स्थायी बनी हुई है. पिछले 10 साल में आठ सरकारें आ चुकी हैं. नवंबर 2022 में हुए पिछले आम चुनाव में किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था. इसके कारण कमजोर गठबंधन सत्ता में आया.
अब 17 मार्च को उपराष्ट्रपति का भी चुनाव होना है. बयानों के मुताबिक उपराष्ट्रपति के चुनाव और दहल के फ्लोर टेस्ट के बाद माओइस्ट सेंटर, नेपाली कांग्रेस और गठबंधन पार्टियों के बीच सत्ता साझेदारी के लिए नया समझौता होगा. इसमें केंद्र सरकार में मंत्रालयों का बंटवारा और प्रादेशिक सरकारों के गठन के मुद्दे भी शामिल रहने की उम्मीद है. खासतौर पर कोशी, गंडकी और लुंबिनी प्रदेशों में, जहां फिलहाल यूएमएल के नेतृत्व वाली सरकार है. बाकी चार प्रांतों में समझौते वाली पार्टियों की सरकारें हैं. बागमती और करनाली में जहां माओइस्ट सेंटर के नेतृत्व की सरकार है, वहीं मधेश में जनता समाजवादी पार्टी और सुदूरपश्चिम में नेपाली कांग्रेस के मुख्यमंत्री हैं. नेपाली कांग्रेस के नेताओं ने संकेत दिया है कि पावर शेयरिंग डील में वो दो और प्रदेशों में नेतृत्व की मांग करेंगे.
एसएम/एनआर (एपी)