रूसी सेना में भर्ती होकर लड़ रहे नेपाली युवा, सरकार परेशान
२१ दिसम्बर २०२३4 दिसंबर को नेपाल ने बताया कि यूक्रेन में जारी युद्ध में रूस की ओर से लड़ते हुए उसके छह नागरिक मारे गए हैं. करीब एक हफ्ते बाद नेपाल के अखबार "काठमांडू पोस्ट" ने प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल के हवाले से खबर छापी.
इसके मुताबिक, दहल ने बताया कि फरवरी 2022 में यूक्रेन पर हमले की शुरुआत के बाद से अब तक 200 से ज्यादा नेपाली नागरिक रूसी सेना में शामिल हुए हैं. दहल ने यह भी कहा कि नेपाल सरकार के पास जानकारी है कि "यूक्रेन की सेना में भी नेपाली काम कर रहे हैं."
दीपेंद्र बहादुर सिंह नेपाल के राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अधिकारी है. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "मौजूदा युद्ध संकट को केवल नेपाल-रूस और नेपाल-यूक्रेन के बीच कूटनीतिक स्तर की बातचीत से ही संभाला जा सकता है."
ब्रिटेन और भारत के साथ समझौता
भारत और ब्रिटिश सेनाओं में हर साल नेपालियों की भर्ती होती है. यह व्यवस्था भारत, नेपाल और ब्रिटेन के बीच हुए करार के तहत है. भारत और ब्रिटेन की सैन्य सेवाओं में भर्ती किए जाने वाले गुरखा सैनिकों के अधिकारों को लेकर 1947 में तीनों देशों के बीच एक समझौता हुआ था.
लेकिन नेपाल का रूस के साथ ऐसा कोई करार नहीं है. इसके बावजूद दर्जनों नेपाली रूसी सेना में शामिल हुए हैं. अक्टूबर 2022 में संयुक्त राष्ट्र आम सभा में चार यूक्रेनी भूभाग कब्जा करने की रूस की कोशिश के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पर मतदान हुआ था. इसमें नेपाल ने निंदा प्रस्ताव के समर्थन में वोट डाला था.
काठमांडू पोस्ट की खबर के मुताबिक पीएम दहल ने कहा है, "हमारे पास आधिकारिक सूचना है कि रूस की ओर से लड़ रहे कुछ नेपालियों को यूक्रेनी सेना ने बंधक बनाया है. यह जानकारी भी है कुछ नेपाली नागरिक यूक्रेन की सेना में भी काम कर रहे हैं. ऐसे लोग जो घूमने या छात्र वीजा पर रूस गए थे, वो अब रूसी सेना में भर्ती हैं और उनमें से छह मारे जा चुके हैं. अब हमें पता चला है कि 200 से ज्यादा नेपाली रूसी सेना में नौकरी कर रहे हैं. यह हमारे लिए नई और चुनौतीपूर्ण स्थिति है."
विदेशियों को लुभाने की पुतिन की उम्मीद
इसी साल मई में मॉस्को ने दूसरे देश के लोगों की अपनी सेना में भर्ती किए जाने का रास्ता खोला. इससे जुड़े आदेश पर राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के दस्तखत के बाद यह राह बनी.
तीन महीने बाद नेपाल के विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर अपने नागरिकों से अपील की कि वे युद्ध प्रभावित देशों की विदेशी सेनाओं में ना शामिल हों.
इस बयान में कहा गया, "मंत्रालय का ध्यान सोशल नेटवर्किंग साइटों पर चल रही उन खबरों की ओर आकर्षित किया गया है, जिनमें कहा जा रहा है कि नेपाली नागरिक विदेशी सेनाओं में भर्ती हो गए हैं."
बयान में आगे कहा गया, "नेपाल सरकार की नीति, नेपाली नागरिकों को विदेशी सेनाओं में भर्ती होने की अनुमति नहीं देती है, बशर्ते कि नेपाली नागरिकों को ऐसे कुछ मित्र देशों की राष्ट्रीय सेनाओं में भर्ती किया जाए, जिनके साथ नेपाल का पारंपरिक करार है."
मंत्रालय ने रूस की सरकार से कहा कि वो ऐसे नेपाली नागरिकों को तत्काल उनके देश वापस भेजे और उन्हें युद्ध में तैनात ना करे. साथ ही, युद्ध में फंसे अपने नागरिकों को सुरक्षित निकालने के लिए भी मंत्रालय कूटनीतिक स्तर पर कोशिश कर रहा है.
इसी बीच प्रशासन इस बात की भी तफ्तीश कर रहा है कि नेपाल के युवा किस तरह रूसी सेना में भर्ती होने जा रहे हैं. मौजूदा समय में कितने नेपाली रूसी सैन्य सेवाओं में सक्रिय हैं, इसकी भी जांच हो रही है. कई युवाओं के परिवार ने उनके गुमशुदा होने की बात कही है.
ना वेतन, ना प्रशिक्षण
वापस लौटे कुछ नेपाली सैनिकों ने युद्ध की क्रूरता और इसमें शामिल आर्थिक पक्ष के बारे में स्थानीय मीडिया से बात की. कुछ ने बताया कि उन्हें युद्ध के मोर्चे पर जाने का समुचित प्रशिक्षण नहीं दिया गया था और कई महीनों तक वेतन भी नहीं मिला.
नेपाल, दुनिया के सबसे गरीब देशों में है. एक दशक से भी ज्यादा वक्त से, विदेश में रह रहे नेपालियों द्वारा भेजा गया पैसा लगातार देश की जीडीपी का करीब एक चौथाई हिस्सा बना हुआ है. नेपाल सरकार अब आगे और नेपाली युवाओं को रूसी सेना में शामिल होने से रोक पाएगी, इसपर मानवाधिकार विशेषज्ञ दीपेंद्र बहादुर सिंह को संदेह है.
वह कहते हैं, "नेपाल की सरकार के पास सीमा पार कर रहे अपने नागरिकों की गतिविधियों की निगरानी के लिए कोई मजबूत व्यवस्था नहीं है. सरकार को नेपाल स्थित विदेशी दूतावासों के साथ नियमित संवाद करना चाहिए. इस संकट की स्थिति में सरकार को नेपाल स्थित रूसी दूतावास के साथ वार्ता करनी चाहिए और इस युद्ध में नेपाली युवाओं को तैनात किए जाने की सख्त निंदा करनी चाहिए."