पाकिस्तान: तोशाखाना केस में इमरान खान को तीन साल की जेल
५ अगस्त २०२३इमरान की पार्टी "पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ" (पीटीआई) ने उनकी गिरफ्तारी की पुष्टि करते हुए ट्वीट किया कि उन्हें कोट लखपत जेल ले जाया जा रहा है. पीटीआई ने एक बयान जारी कर बताया कि उसने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की है.
मीडिया खबरों के मुताबिक, सजा सुनाए जाते समय ना इमरान और ना ही उनके वकील अदालत में मौजूद थे. कोर्ट ने फैसले में कहा, "इमरान खान ने जानबूझकर पाकिस्तान तोशाखाना के तोहफों के बारे में चुनाव आयोग को गलत जानकारियां दीं. उन्हें भ्रष्ट आचरण का दोषी पाया गया है." इमरान को चुनाव अधिनियम के सेक्शन 174 के तहत सजा सुनाई गई है. इसके मुताबिक, भ्रष्ट आचरण का दोषी पाए जाने पर तीन साल तक की सजा या एक लाख रुपये तक का जुर्माना, या दोनों हो सकते हैं.
गिरफ्तारी के बाद इमरान का पहले से रिकॉर्ड किया गया एक वीडियो सोशल मीडिया पर जारी किया गया. इसमें वह अपने समर्थकों से शांति बनाए रखने की अपील कर रहे हैं. इमरान कह रहे हैं, "मेरी गिरफ्तारी संभावित थी और मैंने गिरफ्तार किए जाने से पहले यह वीडियो बयान रिकॉर्ड किया है. मैं चाहता हूं कि मेरे पार्टी कार्यकर्ता शांति बनाए रखें और मजबूत रहें."
इससे पहले 9 मई को भी इमरान को अल-कादिर ट्रस्ट केस में गिरफ्तार किया गया था. उनकी गिरफ्तारी के बाद बड़े स्तर पर हिंसा हुई, जिसके बाद पीटीआई नेताओं और कार्यकर्ताओं के खिलाफ बड़े स्तर पर कार्रवाई की गई. इमरान को अगले ही दिन रिहा कर दिया गया. पीटीआई के कई नेताओं ने 9 मई को हुई हिंसा की निंदा की थी.
क्या है तोशाखाना केस?
तोशाखाना, कैबिनेट डिवीजन के अंतर्गत एक विभाग है. 1974 में इसका गठन किया गया था. इसमें राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, सांसद, नौकरशाह और अधिकारियों को विदेशी राष्ट्राध्यक्षों या प्रतिनिधियों से मिले तोहफे जमा किए जाते हैं. नियम है कि अगर विदेशी दौरों पर राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री जैसे संवैधानिक-आधिकारिक पद पर बैठे लोगों को कीमती तोहफे मिलें, तो वहां के पाकिस्तानी दूतावास के अधिकारी उन तोहफों को लेकर उनका ब्योरा दर्ज करेंगे.
तोहफे की कीमत स्थानीय मुद्रा में 30 हजार तक या इससे कम होने पर, तोहफे पाने वाला शख्स उसे रख सकता है. इससे ज्यादा कीमती तोहफे तोशाखाना में जमा किए जाते हैं. अगर प्राप्तकर्ता कीमती तोहफे रखना चाहे, तो उसे तोशाखाना की इवैल्यूएशन कमिटी द्वारा आंकी गई तोहफे की कीमत का एक तय हिस्सा जमा करना होता है.
इमरान खान पर आरोप था कि 2018 से 2022 के दौरान प्रधानमंत्री पद पर होते हुए उन्होंने जिन तोहफों को अपने पास रखा, उनके ब्योरे साझा नहीं किए. ना ही इन तोहफों की बिक्री से हुई कमाई की जानकारी दी.
अदालत कैसे पहुंचा मामला?
2021 में पाकिस्तान इंफॉर्मेशन कमीशन (पीआईसी) ने एक आवेदन मंजूर करते हुए तोशाखाना को निर्देश दिया कि वह बतौर पीएम, इमरान खानको मिले तोहफों, उनका ब्योरा और इमरान ने कौन-कौन से तोहफे अपने पास रखे, ये जानकारियां सार्वजनिक करे. उस वक्त संबंधित कैबिनेट डिवीजन ने पीआईसी के आदेश को अदालत में चुनौती दी थी. उसने तर्क दिया कि तोशाखाना के ब्योरे गोपनीय हैं और इससे जुड़ी जानकारियां सार्वजनिक करने से द्विपक्षीय संबंध प्रभावित हो सकते हैं.
21 अक्टूबर, 2022 को चुनाव आयोग ने फैसला सुनाया कि इमरान ने तोहफों से जुड़ी गलत जानकारी दी. आयोग ने संविधान के आर्टिकल 63 (1)(पी) के आधार पर इमरान को अयोग्य करार दिया. इसके बाद चुनाव आयोग ने कोर्ट से आपराधिक कानून के तहत इमरान पर कार्रवाई की अपील की थी.
इसके बाद चुनाव आयोग ने इस्लामाबाद सेशंस कोर्ट का रुख किया और शिकायत की कॉपी साझा करते हुए अदालत से आपराधिक कानून के तहत इमरान पर कार्रवाई की दरख्वास्त की थी. 10 मई को इस मामले में इमरान को अभ्यारोपित किया गया.
हालांकि इसके बाद 4 जुलाई को इस्लामाबाद हाई कोर्ट ने कार्यवाही पर स्टे लगाते हुए अडिशनल डिस्ट्रिक्ट सेशन्स जज (एडीएसजे) हुमायूं दिलावर को सात दिनों के भीतर मामले की फिर से जांच करने का निर्देश दिया. जवाब में 9 जुलाई को एडीएसजे ने कार्यवाही को फिर शुरू करने का आदेश दिया.
चुनाव पर असर
मौजूदा संसद का कार्यकाल 12 अगस्त को खत्म हो रहा है. अनुमान है कि अक्टूबर-नवंबर में आम चुनाव हो सकते हैं. खबरों के मुताबिक, सत्तारूढ़ गठबंधन संसद का कार्यकाल खत्म होने से पहले भी इसे भंग कर कार्यवाहक सरकार को कमान सौंप सकती है. अगर संवैधानिक तौर संसद का कार्यकाल पूरा होने से पहले कार्यवाहक सरकार को कमान सौंपी जाती है, तो नियम के मुताबिक उसे 90 दिनों के भीतर चुनाव करवाने होंगे. अगर तय समय पर ही कमान सौंपी जाए, तो चुनाव करवाने के लिए उसके पास 60 दिनों की मोहलत होगी.
अप्रैल 2022 में सत्ता गंवाने के बाद से ही इमरान जल्दी चुनाव कराए जाने की मांग करते आए हैं. मगर 9 मई को हुई हिंसा के बाद उनकी स्थिति कमजोर हुई है. इस दिन बड़े स्तर पर सरकारी इमारतों और सैन्य प्रतिष्ठानों को निशाना बनाया गया था. इनमें रावलपिंडी स्थित पाकिस्तानी सेना के मुख्यालय जनरल हेडक्वॉटर्स और लाहौर स्थित कोर कमांडर रेजिडेंस भी शामिल थे. सैन्य नेतृत्व ने इसे देश के इतिहास में एक "ब्लैक डे" की संज्ञा दी.
इस संबंध में बड़े स्तर पर पीटीआई नेताओं-कार्यकर्ताओं पर कार्रवाई हुई. इसके बाद बड़ी संख्या में पीटीआई नेता पार्टी छोड़ने लगे. इमरान के कई प्रमुख सहयोगी पार्टी छोड़ चुके हैं. इनमें पूर्व सूचना मंत्री फवाद चौधरी, सिंध के पूर्व गवर्नर इमरान इस्माइल, पूर्व पार्टी महासचिव असद उमर, खैबर पख्तूख्वा के पूर्व मुख्यमंत्री परवेज खट्टक शामिल हैं.
ऐसे में कई जानकार पीटीआई के भविष्य पर संशय जता रहे हैं. उधर 3 अगस्त को चुनाव आयोग ने भी चेतावनी दी कि अगर पीटीआई ने जल्द ही पार्टी में आंतरिक चुनाव नहीं करवाया, तो उसे चुनाव चिह्न के लिए अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा. इस संबंध में आयोग पहले भी पीटीआई को कई बार चेतावनी दे चुका है.
जून में ब्लूमबर्ग को दिए अपने इंटरव्यू में इमरान ने आरोप लगाया कि पाकिस्तान की सेना पीटीआई को कुचलना चाहती है. उन्होंने कहा कि सैन्य नेतृत्व उनकी पार्टी को अगले चुनाव में जीत से रोकना चाहता है. इमरान का यह भी आरोप है कि पीटीआई को चुनावी जीत से रोककर सेना एक कमजोर सरकार के लिए रास्ता साफ कर रही है. बीते दिनों बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में भी इमरान ने ये आरोप दोहराए. उन्होंने कहा कि पाकिस्तानी सेना चुनावों से डर रही है और देश में अघोषित मार्शल लॉ लागू है. इमरान का कहना है कि केवल स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव ही देश में स्थिरता ला सकते हैं.