वो शहजादी जिसने बदल दी सऊदी अरब में खेलों की दुनिया
२ नवम्बर २०२३ऑस्ट्रेलिया के अपनी दावेदारी से पीछे हटने वाला आखिरी देश बनने के बाद अब सऊदी अरब बिना किसी वोटिंग और विरोध के 2034 में फुटबॉल विश्व कप की मेजबानी करेगा.
सऊदी अरब के लिए यह महीना सोने पर सुहागा जैसा रहा. इस महीने सऊदी ने रियाद में हेवीवेट बॉक्सर टाइसन फ्यूरी और फ्रांसिस एन्गानो का मैच आयोजित कराया. इसमें फ्यूरी ने जीत हासिल की और इस आयोजन में अल नासर के फुटबॉलर क्रिस्टियानो रोनाल्डो ने भी शिरकत की. साथ ही, चैंपियंस लीग में सऊदी के स्वामित्व वाली न्यूकासल यूनाइटेड ने कतर के स्वामित्व वाली पेरिस सेंट जर्मेन को हराया.
नवंबर में अहमदाबाद में क्रिकेट विश्व कप का फाइनल होगा, जिसमें सऊदी अरब की राजकीय स्वामित्व वाली तेल कंपनी अरामको का लोगो हर जगह दिखाई देगा. ठीक उसी तरह, जैसा अरामको का नाम ऑस्ट्रेलिया से लेकर अजरबैजान तक होने वाली फॉर्मूला वन रेसों समेत दुनियाभर के हाई प्रोफाइल खेल आयोजनों में दिखाई देता है. इन आयोजनों में रेसलिंग से लेकर हॉर्स रेसिंग, ई-स्पोर्ट्स, सेलिंग और लिव गोल्फ तक शामिल हैं.
डेनमार्क की पहल 'प्ले द गेम' ने डीडब्ल्यू को जो डेटा उपलब्ध कराया है, उससे पता चलता है कि अरामको के पास अभी खेलों से जुड़ी करीब 26 स्पॉन्सरशिप हैं. 'प्ले द गेम' का लक्ष्य 'वर्ल्ड स्पोर्ट में लोकतंत्र, पारदर्शिता और अभिव्यक्ति की आजादी को बढ़ावा देना' है.
सऊदी अरब के राजकीय स्वामित्व वाली धन निधि 'पब्लिक इन्वेस्टमेंट फंड' (पीआईएफ) 'न्यूकासल' की मालिक है और यह सीधे-सीधे या अपनी सहायक कंपनियों के माध्यम से 137 स्पॉन्सपशिप का दावा करती है. विस्तार से किए गए विश्लेषण में पता चलता है कि सऊदी जिन 323 खेल आयोजनों को प्रायोजित करता है, उनमें पीआईएफ की बड़ी हिस्सेदारी है.
अरामको और पीआईएफ, दोनों ही राष्ट्रीय स्वामित्व वाली इकाई हैं. ऐसे में देश और खेल के बीच का अंतर करना बहुत मुश्किल हो जाता है. इसकी वजह कुछ ऐसे लोग हैं, जो एक ओर तो मजबूत राजनयिक और राजनीतिक शक्ति रखते हैं और दूसरी ओर खेलों से आयोजनों पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं.
ताकतवर शहजादी
शहजादी रीमा बिंत बांदेर अल-सऊद भी इन्हीं प्रभावशाली लोगों में से एक हैं. रीमा सऊदी के सत्तारूढ़ शाही परिवार की सदस्य हैं. 'प्ले द गेम' के शोध के मुताबिक शहजादी रीमा के पास खेल के क्षेत्र में ही चार आधिकारिक और शीर्ष स्तर के पद हैं.
नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर में मध्य-पूर्व संस्थान के वरिष्ठ सदस्य और 'द टर्बुलेंट वर्ल्ड ऑफ मिडल ईस्ट सॉकर' नामक किताब के लेखक जेम्स डोर्सी डीडब्ल्यू से बातचीत में कहते हैं, "वह सऊदी अरब की वैसी ही छवि पेश करती हैं, जिस तरह क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान चाहते हैं कि सऊदी अरब को पेश किया जाए. वे सऊदी को अधिक दूरदर्शी, सामाजिक रूप से उदार और महिलाओं को अवसर देने वाले देश के रूप में दिखना चाहते हैं. रीमा इसे हासिल कर रही हैं और वह बिल्कुल मुफीद उम्मीदवार हैं."
साथ ही, रीमा अमेरिका में सऊदी अरब की पहली महिला राजदूत भी हैं. वह सऊदी ओलंपिक और पैरालंपिक समिति की प्रमुख भी हैं और अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति की सदस्य भी हैं. तमाम विश्लेषक मानते हैं कि अब सऊदी अरब का खेलों से जुड़ा अगला लक्ष्य ओलंपिक का आयोजन करना है.
'प्ले द गेम' के स्टानिस एल्चबोर्ग कहते हैं, "राष्ट्रीय ओलंपिक समिति (एनओसी) के एक नेता और राष्ट्रीय सरकार के बीच ऐसे औपचारिक ताल्लुक से हितों के टकराव, निष्ठा के सवाल और खेलों की कथित स्वायत्तता के बारे में गंभीर सवाल उठते हैं. ओलंपिक मूवमेंट खेलों की स्वायत्तता को बड़े उत्साह से बढ़ावा देते हैं."
एल्चबोर्ग सवाल उठाते हैं, "अगर ऐसे हालात पैदा होते हैं, जहां सऊदी सरकार और ओलंपिक मूवमेंट के हित राजनीतिक रूप से अलग-अलग होते हैं, तो क्या शहजादी रीमा एक राजनेता और सरकारी प्रतिनिधि के रूप में एनओसी की स्वायत्तता को प्रभावी ढंग से बनाए रखने की इच्छुक और इसमें सक्षम होंगी?"
आईओसी ने शहजादी रीमा का इंटरव्यू करने के डीडब्ल्यू के अनुरोध को स्वीकार नहीं किया. उन्होंने एक बयान भेजा, जिसमें कहा गया कि संगठन के सभी सदस्य उन पर लागू मानदंडों को पूरा करते हैं.
इसमें यह भी बताया गया, "साल 2020 में आंतरिक 'इलेक्ट्रॉनिक टूल' की शुरुआत होने के बाद से अभी तक हितों के टकराव की कोई वास्तविक या संभावित स्थिति सामने नहीं आई है. अगर किसी टकराव की स्थिति बनती है, तो उन्हें 'चीफ एथिक्स ऐंड कंप्लायंस ऑफिसर' द्वारा निपटाया जाएगा और इसके बारे में आईओसी के कार्यकारी बोर्ड को पूरी तरह अवगत कराया जाएगा."
हालांकि, आईओसी का अपना ही चार्टर कहता है कि इसके सदस्यों को 'व्यावसायिक और राजनीतिक हितों के साथ-साथ किसी भी नस्लीय या धार्मिक विचार से स्वतंत्र रूप से काम करना चाहिए.'
शहजादी रीमा के लिए राजनीतिक हितों से दूरी बनाए रखना संतुलन साधने का सबसे मुश्किल काम नजर आता है.
48 साल की रीमा बंदर बिन सुल्तान अल-सऊद की बेटी हैं, जिनके पास खुफिया और सुरक्षा से जुड़े कई बड़े पद थे. वह अमेरिका में सऊदी अरब के राजदूत भी रहे. रीमा की मां हाइफा बिंत फैसल अल-सऊद सऊदी अरब के राजा (प्रधानमंत्री) और रानी की बेटी हैं.
इस लिहाज से शहजादी रीमा ददिहाल और ननिहाल, दोनों पक्षों से आधुनिक सऊदी अरब के संस्थापक माने जाने वाले इब्न सऊद की पर-पोती हैं.
महिलाओं के लिए प्रेरणा?
आठ भाई-बहनों में से एक रीमा ने अमेरिका में अपने पिता का कामकाज देखा है. उनकी पढ़ाई अमेरिका में ही हुई और उन्होंने जॉर्ज वाशिंगटन यूनिवर्सिटी से म्यूजियम स्टडीज में ग्रेजुएशन किया है.खेल जगत में अपनी छाप छोड़ने से पहले रीमा ने महंगे उत्पादों के रीटेल क्षेत्र में काम किया है. महिला अधिकारों के मामले में खराब रिकॉर्ड वाले सऊदी अरब में रीमा के सामाजिक उद्यमों ने महिलाओं को अधिक अवसर प्रदान किए. इसके लिए उनकी खूब तारीफ भी की जाती है.
इससे पहले शहजादी रीमा ने महिलाओं को फुटबॉल स्टेडियमों में जाने की इजाजत मिलने को प्रगति का संकेत बताया था.साल 2018 में ईएसपीएन चैनल को दिए रेयर इंटरव्यू में उन्होंने कहा, "हम महिलाओं को न सिर्फ बतौर खिलाड़ी, बल्कि बोर्ड और सलाहकारों के स्तर पर भी प्रशासन में शामिल करने के लिए सऊदी अरब के सभी खेल महासंघों के साथ काम कर रहे हैं."
रीमा कहती हैं, "हमारे समुदाय में लैंगिक एकीकरण अभी आम बात नहीं है और ऐसा होने वाला है, लेकिन हमें अपना ध्यान रखने की जरूरत है. अन्य महिलाओं का ख्याल रखने के लिए महिलाओं को नियुक्त करना महत्वपूर्ण है. इससे नौकरियों के अवसर और बढ़ते हैं."
लेखक और जानकार जेम्स डोर्सी मानते हैं कि सऊदी अरब 'अपने क्षेत्र में महिलाओं का सर्वाधिक दमन करने वाला शासन रहा है', लेकिन वह कहते हैं कि अब महिलाओं की स्थिति में सुधार हो रहा है.वह कहते हैं, "मोहम्मद बिन सलमान के बारे में कोई कुछ भी सोचे, लेकिन यह सच है कि उन्होंने महिलाओं के सामाजिक अधिकारों के साथ-साथ उनके लिए अवसरों में खासी वृद्धि की है. सरकारी और निजी क्षेत्र में खासकर आप महिलाओं को कई पदों पर पाएंगे."
व्यवस्था या अपवाद?
हितों के टकराव की आशंका जताने वाले 'प्ले द गेम' के स्टानिस एल्चबोर्ग कहते हैं कि इन सुधारों के बावजूद कोई और महिला शहजादी रीमा जितनी ऊंचाई तक नहीं पहुंची है. उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि ने उन्हें सत्ता के गलियारों तक पहुंच और ताकत दी है. एल्चबोर्ग दलील देते है, "उनकी भूमिकाएं सऊदी अरब को खेल कूटनीति में शामिल होने, अंतरराष्ट्रीय संबंध विकसित करने, नए राजनयिक संबंध स्थापित करने और वैश्विक खेल पटल पर अपनी छवि स्थापित करने का मौका देती हैं."
वहीं डोर्सी इस टकराव को उस व्यवस्था का अनिवार्य नतीजा मानते हैं, जिस व्यवस्था के तहत सऊदी अरब चलता है. वह कहते हैं, "यह तो मानना पड़ेगा कि शासन करने वाले सभी परिवार परिभाषा के मुताबिक भ्रष्ट हैं. वे भ्रष्टाचार से अमीर बने हैं. देश के बजट और उनके बजट में कोई फर्क नहीं होता है. दूसरे शब्दों में कहें, तो हितों के टकराव जैसा कुछ है ही नहीं."
शहजादी रीमा की ताकतवर भूमिकाएं सऊदी अरब की महिलाओं को प्रेरणादायी लग सकती हैं. ये विदेशों में लोगों, देशों या खेल संस्थानों की नजर में देश की छवि चमका सकती हैं, लेकिन शाही परिवार में पैदा न होने वाली किसी महिला के लिए ऐसी ताकत हासिल करने की गुंजाइश बहुत कम है.
बहुत सारे लोग शहजादी रीमा, यासिल अल-रुमायान और शहजादे अब्दुल्लाजीज बिन तुर्की अल-सऊद की कार्यशैली पर संदेह जताते हैं, लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह कार्यशैली प्रभावी है. फीफा के अध्यक्ष और आईओसी में शहजादी रीमा के सहयोगी जानी इन्फान्तीनो की मौजूदगी में वर्ल्ड कप का एलान इसका सुबूत है.