बड़ी टेक कंपनियों पर चीनी सरकार का कसता शिकंजा
१८ अगस्त २०२१बड़ी चीनी टेक कंपनियों पर आपदा की ताजा लहर तब गिरी जब नवम्बर 2020 में आंट ग्रुप के आईपीओ के आने से ही चीन की सरकार ने शंघाई स्टॉक एक्सचेंज के जरिये रोक दिया. जैक मा इसी कंपनी के कर्ताधर्ता रहे हैं लेकिन उनकी और उनकी कंपनी की खता यही थी कि आईपीओ आने से कुछ दिन पहले ही जैक मा ने चीन की बैंकिंग व्यवस्था की यह कह कर आलोचना की थी कि वह राज्य-संचालित और समर्थित है और यह कि सरकार का दबदबा चीनी बैंकिंग की तंदुरुस्ती के लिए सही नहीं है.
हालांकि शंघाई स्टॉक एक्सचेंज ने आईपीओ को स्थगित करने की कोई वजह नहीं बताई लेकिन जिस तरह अचानक बिना किसी पूर्वसूचना के ये फैसला लिया गया उससे यह साफ था कि चीन सरकार को जैक मा की बातें पसंद नहीं आईं. अपने तथाकथित भड़काऊ बयानों के बाद जैक की पूछताछ तो तब तक शुरू हो ही चुकी थी लेकिन इस घटना के बाद तो मानो जैक मा पर आफतों के बादल ही टूट पड़े. अलीबाबा, जिसका आंट में एक तिहाई हिस्सा है, उसकी भी साख पर इस घटना का बुरा असर पड़ा.
जैक मा की लोकप्रियता
बाजार के विशेषज्ञों का मानना है कि समस्या कंपनी या उसके नियमों के पालन-अनुपालन से नहीं थी, समस्या थी जैक मा की बढ़ती लोकप्रियता, उनकी कंपनी के आईपीओ को लेकर निवेशकों में जरूरत से ज्यादा उत्साह, और सबसे महत्वपूर्ण बात, जैक के सरकार की नीतियों के बारे में टिप्पणी करने से. अर्थशास्त्रियों का मानना है कि आंट कंपनी की बढ़ती ताकत और चीनी मार्केट में दबदबे से भी सरकारी बाबू असहज महसूस कर रहे थे.
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लेकिन हैरानी की बात है कि चीनी युवाओं के पसंदीदा जैक पर जब सरकार का वार हुआ तो अचानक हवा बदल गई, और अचानक जैक और उनकी कंपनी को परपोषी और शोषणकारी शार्क कम्पनी की संज्ञा तक दे दी गई. 2018 में बनी मार्केट वाचडॉग स्टेट एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ मार्केट रेगुलेशन ने जब एंटी-ट्रस्ट पालिसी के तहत जब आईटी कंपनियों को घेरे में लिया तो 10 अप्रैल को इसका सबसे पहला शिकार अलीबाबा कंपनी बन गयी.
कई कंपनियां लपेटे में
लेकिन अलीबाबा अकेली कंपनी नहीं थी. इस लपेटे में 34 और कम्पनियां भी आ गईं. इनमें टिकटॉक के स्वामित्व वाली बाइटडांस, टेनसेंट, दीदी, मीतुआन, सर्च इंजिन बाइडू और जेडी प्रमुख थे. जैसे-जैसे खोजबीन का सिलसिला आगे बढ़ा, ये बातें भी सामने आईं कि इन कंपनियों ने अपनी कंपनी नीतियों के मामले में पूरी पारदर्शिता नहीं दिखाई थी. सरकारी वक्तव्यों में यह भी कहा गया कि जांच के दौरान लगभग 35 कंपनियां मर्जर संबंधी गड़बड़ियों, भ्रामक मार्केटिंग हथकंडों और अन्य अनियमितताओं में लिप्त पाई गईं.
अपने बचाव में इनमें से कुछ कंपनियों ने यही कहा कि उनकी अधिकांश डील 2018 से पहले ही हो गई थीं. भारत जैसे देशों में ऐसा करना गैरकानूनी है क्योंकि कोई भी कानून अपने अस्तित्व में आने से पहले किए किसी भी करार पर बाध्यकारी नहीं होता. इन तमाम आईटी कंपनियों पर नकेल कसने के पीछे शायद शी जिनपिंग की यह सोच भी है कि जब तक ये कंपनियां अनुशासित होकर सिर्फ चीन के हितों को सर्वोपरि रख कर नहीं देखेंगी, चीन पश्चिमी देशों के साथ हो रहे टेक-वॉर में नहीं जीत पायेगा और न ही 2025 तक टेक वर्चस्व हासिल करने का शी जिनपिंग का सपना पूरा हो पाएगा.
खतरे की घंटी
अमेरिका के साथ बढ़ते विवाद के बीच चीन सरकार को यह भी डर है कि कहीं ये कंपनियां अपना डाटा दूसरे देशों को न दे दें. चीनी सरकार खुद इन मामलों में लिप्त रही है, लिहाजा उसका चिंता करना भी लाजमी है. बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों की अपने देशों की सरकारों के साथ अक्सर अनबन हो जाती है. अमेरिका, जर्मनी, फ्रांस और तमाम विकसित देशों में यह आम बात है. लेकिन कम्युनिस्ट चीन जहां उदारवादी आर्थिक व्यवस्था का ताम-झाम तो है लेकिन ढांचा एक पार्टी के शासन में कस कर बंधी शासन व्यवस्था ही है जिससे पार पाना या जिसे आलोचना या वाद-विवाद के जरिये बदल पाना नामुमकिन है. जैक मा यहीं मात खा गए.
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चीन में पिछले चार दशकों से चले आ रहे व्यापक आर्थिक सुधारों की वजह से निवेशकों, व्यापारियों और उद्योगपतियों में यह आम धारणा पैठ कर रही थी कि राजनीतिक मोर्चे पर न सही पर आर्थिक मोर्चे पर चीन धीरे धीरे ज्यादा स्वतंत्र और लोकतांत्रिक होने की दिशा में बढ़ रहा है. जैक मा और उनकी कंपनी के साथ हुआ सलूक न सिर्फ चीनी उद्योगपतियों के लिए खतरे की घंटी है बल्कि यह चीन में निवेश करने वालों के लिए भी निराशाजनक है.
इसकी एक बड़ी वजह यह है कि चीनी हो या विदेशी, कोई भी निवेशक यह नहीं चाहेगा कि उसकी कंपनी या निवेश पर अनिश्चितता के बादल मंडराए. आखिरकार 'ईज आफ डूइंग बिजनेस' भी कोई चीज है भला. बहरहाल, जैक मा और उनकी कंपनी पर दबाव बनाने की कोशिश यह कहकर की गई है कि वह जरूरत से ज्यादा उपभोक्तावादी और पूंजीवादी हो गए थे.
(राहुल मिश्र मलाया विश्वविद्यालय के एशिया-यूरोप संस्थान में अंतरराष्ट्रीय राजनीति के वरिष्ठ प्राध्यापक हैं.)