जातिवार गणना की रिपोर्ट पर क्यों मचा है हंगामा
३ अक्टूबर २०२३नीतीश-तेजस्वी के नेतृत्व में बिहार की महागठबंधन सरकार ने जातिवार गणना की बहुप्रतीक्षित रिपोर्ट सार्वजनिक कर दी है. 1931 के बाद पहली बार जातीय आंकड़े जारी किए गए हैं. बिहार जातीय आंकड़े जारी करने वाला पहला राज्य बन गया है. इस रिपोर्ट के अनुसार राज्य की साढ़े 13 करोड़ से अधिक आबादी में हिंदुओं की संख्या 81.99 प्रतिशत है, जबकि मुस्लिमों की जनसंख्या 17.70 प्रतिशत है. 2011 की जनगणना के अनुसार हिंदुओं की जनसंख्या 82.70 प्रतिशत थी, वहीं मुस्लिमों की आबादी 16.90 प्रतिशत थी.
इस रिपोर्ट की सबसे महत्वपूर्ण बात ओबीसी की जनसंख्या का अप्रत्याशित बढ़ना है, जिसका वोट पाने को सभी पार्टियां लालायित रहती हैं. इनके दम पर ही उन्हें लोकसभा या विधानसभा चुनाव में जीत मिलती है.
जाति आधारित जनगणना पर बिहार बीजेपी का केंद्र से रुख अलग
बिहार में ओबीसी कैटेगरी के दो पार्ट हैं, पहला अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी-एक्सट्रीमली बैकवॉर्ड क्लास) तथा अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी). रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में अत्यंत पिछड़ा वर्ग की आबादी 36.01 प्रतिशत है, जबकि पिछड़ा वर्ग की 27.12 प्रतिशत, अर्थात इस वर्ग की कुल आबादी 63 प्रतिशत से भी अधिक हो गई है. वहीं, अनुसूचित जाति के लोगों की संख्या 19.65 प्रतिशत तो अनुसूचित जाति की जनसंख्या 1.68 फीसद है. ईबीसी में कुल 112 जातियां हैं, जिनमें मात्र 12 जातियों की जनसंख्या 24.09 प्रतिशत है, वहीं ओबीसी में कुल 29 जातियां हैं, जिनमें मात्र पांच जातियों की संख्या ही 25.51 फीसदी है. ओबीसी में सबसे अधिक 14.26 प्रतिशत यादव हैं. वहीं सवर्णों यानी अनारक्षित वर्ग की बात करें तो इनकी कुल आबादी 15.52 फीसदी है. इनमें ब्राह्मण 3.65, राजपूत 3.45, भूमिहार 2.86 तथा कायस्थ 0.60 प्रतिशत व अन्य हैं.
क्या है आरक्षण का खेल
राज्य में ईबीसी की आबादी 36.01 प्रतिशत है, जिसके लिए मौजूदा आरक्षण 18 प्रतिशत है, जबकि पिछड़ा वर्ग की जनसंख्या 27 प्रतिशत है, जिसके लिए 12 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था है. यानि बिहार में ओबीसी कैटेगरी के लिए कुल आरक्षण 30 फीसद है, जबकि उनकी आबादी 63 प्रतिशत हो गई है. करीब 92 साल पुराने आंकड़ों के अनुसार देश में 52 प्रतिशत ओबीसी हैं. अगर देश की जातीय गणना के परिणाम इसी तरह रहे तो ओबीसी आरक्षण बढ़ाने की मांग तो जोर पकड़ेगी ही, समाज में जातिगत दूरी भी बढ़ेगी. जानकार बताते हैं कि बिहार में जातीय गणना की रिपोर्ट में अनुमान से अधिक बढ़ी ओबीसी की आबादी को देखकर अब देशभर में ऐसी जनगणना कराने की मांग बढ़ेगी.
जातीय जनगणना पर क्यों अड़ा है बिहार
उत्तर प्रदेश सहित कई अन्य राज्यों में इसकी मांग तो शुरू ही हो गई है. बिहार में एनडीए के सहयोगी दल हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा तथा लोक जनशक्ति पार्टी के दोनों गुट एवं रामदास अठावले की रिपब्लिकन पार्टी आफ इंडिया भी देशभर में ऐसी गणना के पक्षधर हैं. आने वाले दिनों में इस मांग के साथ ही केंद्र की नौकरियों में ओबीसी के लिए तय 27 प्रतिशत आरक्षण को भी बढ़ाने का दबाव बढ़ेगा. पत्रकार शिवानी कहती हैं, ‘‘अब देशभर में विपक्ष को एक मुद्दा मिल गया है. राजनीति अब ओबीसी के आसपास ही घूमेगी, चाहे अगला लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा चुनाव. सबने देखा है, संसद सत्र में इसी तर्ज पर महिला आरक्षण में भी मांग की जा रही थी. केंद्र पर इसका दबाव भी बढ़ेगा.''
वोट को लेकर सब परेशान
जातिवार गणना की रिपोर्ट जारी होने के साथ ही बिहार से दिल्ली तक के सियासी हलकों में तूफान आ गया है. जिसकी जितनी आबादी, उसको उतना आरक्षण और योजनाओं में उनकी उतनी ही हिस्सेदारी की मांग शुरू हो गई है. राहुल गांधी ने भी कहा है, ‘‘बिहार में ओबीसी, एससी-एसटी 84 प्रतिशत हैं. देशभर में गणना हो. जितनी आबादी, उतना हक मिले.'' इसके अलावा पिछले दिनों राहुल द्वारा दिए गए बयानों से भी यह साफ है कि बीजेपी के खिलाफ विपक्षी गठबंधन जातीय जनगणना खासकर ओबीसी को अगले चुनावों में मुद्दा बनाएगा.
पीछे मुड़कर देखें तो साफ है कि मंडल कमीशन के बाद की राजनीति के कारण ही क्षेत्रीय दलों का उभार हुआ. बिहार में आरजेडी और जेडीयू तथा यूपी में समाजवादी पार्टी ओबीसी का जबरदस्त समर्थन पाने में कामयाब रहे. आज भी इन पार्टियों की राजनीति इन्हीं जातियों पर आश्रित है. अपरोक्ष रूप से इसका विरोध कर रही बीजेपी की जान सांसत में है. यही वजह है कि रिपोर्ट जारी होने के चंद घंटे बाद ही नरेंद्र मोदी ने ग्वालियर में एक जनसभा में नीतीश पर निशाना साधते हुए कहा कि, "ये लोग पहले भी जात-पात पर लोगों को बांटते रहे हैं और आज भी यही पाप कर रहे हैं."
मोदी की बेचैनी भी उसी ओबीसी वोट बैंक को लेकर है, जिसके साथ आने से बीजेपी का जनाधार बढ़ा है. 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को कांग्रेस से तीन गुणा अधिक ओबीसी सीट मिली थी. लोकसभा चुनाव तो दूर की बात, पांच राज्यों में होने वाले चुनाव में भी बीजेपी के लिए नई मुसीबत खड़ी हो गई है.
गरीबों के सहारे तोड़ की कोशिश
बीजेपी ने भी जातिवार गणना के परिणामों का आकलन कर गरीबों की बात शुरू कर दी है. एक समाचार पत्र की रिपोर्ट के मुताबिक, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ईबीसी-ओबीसी की राजनीति के बीच मंगलवार को अपनी प्रतिक्रिया में पहली बार कहा कि सबसे बड़ी आबादी गरीबों की है. बिहार का नाम लिए बिना कांग्रेस पर वार करते हुए उन्होंने कहा कि क्या कांग्रेस अब मुसलमानों का हक कम करना चाहती है. यदि आबादी के अनुसार ही हक तय किया जाएगा तो क्या हिंदू आगे बढ़कर सारे हक ले लें.
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का जिक्र करते हुए मोदी ने कहा कि वे कहा करते थे कि देश के संसाधनों पर पहला हक अल्पसंख्यकों का है, उसमें भी मुसलमानों का. कांग्रेस वाले इसे स्पष्ट करें कि क्या अब वे अल्पसंख्यकों का हक कम करना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि मैं कहता हूं कि देश में सबसे बड़ी कोई आबादी है तो वह गरीबों की है. गरीब का कल्याण ही मेरा मकसद है.
केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने भी इन आंकड़ों को लोगों की आंखों में धूल झोंकने वाला बताया है. जाहिर है, पार्टियां तो अपने वोट बैंक के नफा-नुकसान के लिहाज से अपनी रणनीति तय करेगी. इधर, सुप्रीम कोर्ट में जातीय गणना के आंकड़े जारी करने के खिलाफ एक याचिका दायर की गई है. दलील दी गई है कि बिहार सरकार ने पहले इन आंकड़ों को सार्वजनिक नहीं करने की बात कही थी, लेकिन ऐसा नहीं किया गया. फिलहाल, सुप्रीम कोर्ट ने किसी तरह की टिप्पणी से इनकार कर दिया. इस मामले की सुनवाई 6 अक्टूबर को होगी.
यह तो वक्त बताएगा कि 1990 में जिस तरह अपनी राजनीतिक स्थिति कमजोर देख कर वीपी सिंह ने ओबीसी को आरक्षण दिलाने वाली मंडल कमीशन की सिफारिशों वाली फाइल अचानक बाहर निकाली थी, क्या ठीक उसी तरह अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मास्टर स्ट्रोक लगाया है. कहना मुश्किल है, यह मास्टर स्ट्रोक बीजेपी पर कितना भारी पड़ेगा.