स्पर्म व्हेल मछलियों की एबीसीडी सीख रहे हैं वैज्ञानिक
८ मई २०२४व्हेल मछलियां बात करती हैं. वैज्ञानिकों को इस बात के सबूत पहले भी मिले हैं कि उनके बीच बाकायदा संवाद होता है, जिसकी अपनी एक भाषा है. अब वैज्ञानिक उस भाषा का ककहरा सीखने की कोशिश कर रहे हैं. स्पर्म व्हेल मछलियों की भाषा का "क" "ख" "ग" सीखने में उन्हें सफलता भी मिली है.
दांतों वाली प्रजातियों में सबसे बड़ी स्पर्म व्हेल मछलियों के बीच संवाद के लिए कट-कट-कट की आवाजों का इस्तेमाल होता है. इस आवाज को कोडाज कहा जाता है और यह मोर्स कुंजी जैसी आवाज होती है.
वैज्ञानिकों ने कई साल तक पूर्वी कैरिबिया के समुद्र में रहने वालीं स्पर्म मछलियों के संवाद को रिकॉर्ड किया है. इस विस्तृत डेटा के विश्लेषण से पता चला है कि उनके बीच बातचीत की व्यवस्था बहुत परिष्कृत होती है.
इंसानी भाषा से समानता
शोधकर्ताओं ने उनके संवाद में वर्णों की भी पहचान की है और उन्होंने पाया कि उनके संवाद में अन्य जानवरों और यहां तक कि इंसानी भाषाओं से भी समानताएं हैं.
अन्य समुद्री जीवों की तरह ही स्पर्म व्हेल भी बहुत सामाजिक प्राणी हैं. इसलिए एक दूसरे से संवाद उनके जीवन का अहम हिस्सा है. नया शोध उनके संवाद के बारे में इंसानी समझ को एक नया विस्तार देता है.
मसैचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में पीएचडी कर रहीं प्रत्यूषा शर्मा इस शोध की प्रमुख हैं, जो प्रतिष्ठित पत्रिका ‘नेचर कम्यूनिकेशंस' में प्रकाशित हुआ है. वह बताती हैं, "शोध दिखाता है कि व्हेल मछलियों की आवाजों में जितना कहा जाता है, उसका अंदाजा पहले नहीं था. हमें अभी यह नहीं पता कि वे क्या कह रही हैं. हम उनके व्यवहार के लिहाज से उनकी आवाजों का अध्ययन कर रहे हैं ताकि समझा जा सके कि वे किस बारे में बात कर रही हैं.”
स्पर्म व्हेल मछलियां 18 मीटर यानी लगभग 60 फुट तक लंबी हो सकती हैं. किसी भी जानवर के मुकाबले उनका मस्तिष्क ज्यादा बड़ा होता है. वे बहुत गहरा गोता लगा सकती हैं और बड़ी मछलियों व अन्य समुद्री जीवों को खाती हैं.
मशीन लर्निंग टीम के प्रोजेक्ट सीईटीआई (Project CETI) के तहत किए गए इस शोध में पारंपरिक तरीकों के अलावा डेटा के विश्लेषण में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की भी मदद ली गई है. इस तरह डोमिनिका स्पर्म व्हेल प्रोजेक्ट के तहत जुटाए गए 60 मछलियों के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है.
अक्षरों और शब्दों का मेल
सहायक शोधकर्ता और डोमिनिका स्पर्म व्हेल प्रोजेक्ट के संस्थापक शेन गेरो कहते हैं, "वे ये कोडाज एक-दूसरे को क्यों भेज रही हैं? वे क्या सूचनाएं साझा कर रही होंगी? मुझे लगता है कि वे इन कोडाज का इस्तेमाल पारिवारिक कार्यों जैसे बच्चों की देखभाल और सुरक्षा आदि सुनिश्चित करने के लिए करती हैं.”
शोधकर्ताओं ने पाया कि इस बातचीत में आवाजों के उतार-चढ़ाव, गति और संख्याओं में बदलाव होता है. जैसे कि मछलियों ने कट-कट-कट की आवाजों की अवधि में बदलाव किया और कई बार आखिर में एक अतिरिक्त कट-कट जोड़ा. जैसे कि इंसानी भाषाओं में प्रत्यय लगाए जाते हैं.
सहायक शोधकर्ता, एमआईटी में कंप्यूटर साइंस के प्रोफेसर और प्रोजेक्ट सेटी के सदस्य जैकब आंद्रियास बताते हैं, "ये जितने भी कोडाज हम देखते हैं, दरअसल ये बहुत सारे छोटे-छोटे टुकड़ों को जोड़कर बनाए गए होते हैं.”
ठीक वैसे ही, जैसे इंसान अलग-अलग वर्णों और अक्षरों की ध्वनियां जोड़कर शब्द बनाते हैं और फिर उन शब्दों को जोड़कर वाक्य बनाते हैं जिनके अर्थ बहुत जटिल भी हो सकते हैं. शर्मा इसे कुछ यूं समझाती हैं, "इन जोड़ों के दो स्तर होते हैं. पहले ध्वनियों से शब्द बनते हैं. और फिर शब्दों से वाक्य. स्पर्म व्हेल भी कोडाज को दो स्तरों पर इस्तेमाल करती हैं. निचला स्तर अक्षरों जैसा है.”
वीके/एए (रॉयटर्स)