राजी नहीं हुआ तालिबान तो अफगानिस्तान छोड़ देगा यूएन
१९ अप्रैल २०२३संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) के प्रमुख आखिम स्टाइनर के मुताबिक यह चेतावनी ऐसे समय में आई है जब संयुक्त राष्ट्र के अधिकारी महीनों से तालिबान के नेताओं के साथ बातचीत कर रहे हैं ताकि उन्हें महिलाओं पर एक सख्त रुख अपनाने के लिए स्थिति बदलने के लिए राजी किया जा सके.
तालिबान के अधिकारियों ने स्थानीय महिलाओं को संयुक्त राष्ट्र के लिए काम करने की इजाजत दी थी, लेकिन कुछ हफ्ते पहले उन्होंने अंतरराष्ट्रीय संगठन के लिए भी महिलाओं के काम करने पर प्रतिबंध लगा दिया.
कम नहीं हो रहा संकट
अफगानिस्तान से संयुक्त राष्ट्र की वापसी का संकेत ऐसे समय में आया जब देश की दो-तिहाई आबादी या 2.8 करोड़ लोगों को मानवीय सहायता की आवश्यकता है. अमेरिकी सरकार और अन्य जी7 सदस्यों ने पहले ही सहायता कटौती का आह्वान किया है.
हालांकि, तालिबान ने अपनी स्थिति बदलने से इनकार कर दिया है, जिसकी घोषणा स्पष्ट रूप से उनके निर्वासित नेता हैबतुल्ला अखुंदजादा के इशारे पर की गई थी.
स्थानीय सहायता एजेंसियों में काम करने वालीं महिलाओं की संख्या कुल कर्मचारियों की संख्या का लगभग एक तिहाई है और उनके काम पर प्रतिबंध का असर महिलाओं की सहायता पर भी पड़ेगा.
अफगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र के तहत 3300 अफगान काम करते हैं, इनमें से 600 महिलाएं हैं. लेकिन ये महिलाएं 12 अप्रैल से अपने घरों तक ही सीमित हैं. जब तालिबान ने एक आदेश जारी किया कि अफगान महिलाएं अब संयुक्त राष्ट्र के लिए काम नहीं करेंगी. इससे पहले उन्होंने महिलाओं के अन्य गैर-सरकारी संगठनों में काम करने पर प्रतिबंध लगा दिया था. लेकिन यूएन की एजेंसियों को इससे छूट दी गई थीं.
एक दुखद फैसला
स्टाइनर ने कहा, "यह कहना उचित होगा कि अभी हम जहां हैं, वहां संयुक्त राष्ट्र प्रणाली को एक कदम पीछे हटाना पड़ रहा है. और वहां काम करने की हमारी क्षमता का पुनर्मूल्यांकन करना पड़ रहा है."
उन्होंने कहा, "मुझे नहीं लगता कि इस दुखद निर्णय से बाहर निकलने का कोई और रास्ता है." उन्होंने कहा, "मेरा मतलब है, अगर मैं कल्पना करता हूं कि अगर संयुक्त राष्ट्र परिवार आज अफगानिस्तान में नहीं होता है तो मेरे पास ऐसे लाखों युवा लड़कियां, युवा लड़के, माता-पिता की छवियां होंगी, जिनके पास खाने के लिए पर्याप्त भोजन नहीं होगा."
महिलाओं का अर्थव्यवस्था पर असर
18 अप्रैल को संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम ने अफगानिस्तान सोशियो-इकोनिमिक आउटलुक 2023 शीर्षक वाली नई रिपोर्ट जारी की, जिसमें अगस्त 2021 में देश की सत्ता पर तालिबान का कब्जा स्थापित होने और उसके बाद उसके शासन से उत्पन्न हुई परिस्थितियों की समीक्षा की गई है.
रिपोर्ट बताती है कि सत्ता पर तालिबान के कब्जे के बाद अफगान अर्थव्यवस्था ढह गई थी, जिसके कारण पहले से ही कठिनाइयों से जूझ रहे इस देश के निर्धनता के गर्त में धंसने की गति तेज हो गई.
इस रिपोर्ट के आने के मौके पर एशिया-प्रशांत क्षेत्र के लिए यूएन विकास कार्यक्रम की क्षेत्रीय निदेशक कन्नी विग्नराजा ने सचेत करते हुए कहा, "अर्थव्यवस्था और सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी के बिना देश टिकाऊ पुनर्बहाली के रास्ते पर आगे नहीं बढ़ सकता है."
महिलाओं को घरों में कैद करता तालिबान
अफगानिस्तानमें सत्ता में आने के बाद से तालिबान द्वारा देश में अधिक उदार स्थिति लाने के वादे के बावजूद, उसके पिछले नियमों की तुलना में इस बार के नियम और भी कठिन हैं. तालिबान ने ऐसे सख्त कानून को लागू किया है जिससे देश की महिलाओं का जीवन मुश्किल हो गया है.
सार्वजनिक जीवन और शिक्षा में लड़कियों की भागीदारी पर प्रतिबंध लगाकर तालिबान ने अफगान लड़कियों और महिलाओं की स्थिति को खराब कर दिया है. अफगान तालिबान ने छठी कक्षा से आगे की लड़कियों की शिक्षा पर प्रतिबंध लगा दिया और औरतों के अकेले बाहर जाने पर भी रोक है.
एए/सीके (एपी,एएफपी)