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व्हेल की उलटी, कीमत दो करोड़ रुपये प्रति किलोग्राम

विवेक कुमार
८ सितम्बर २०२२

भारत में पिछले कुछ समय में कई जगह व्हेल की उलटी के तस्कर पकड़े गए हैं. इसका व्यापार खूब बढ़ रहा है. लेकिन यह इतनी महंगी क्यों है?

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व्हेल मछलियों के प्रति इंसान हमेशा से उत्सुक रहा है
व्हेल मछलियों के प्रति इंसान हमेशा से उत्सुक रहा हैतस्वीर: Jakub Mrocek/Zoonar/picture alliance

उत्तर प्रदेश पुलिस ने कहा है कि व्हेल मछली की उलटी (एंबरग्रिस) की तस्करी करते चार लोगों को पकड़ा गया है. उनके पास से करीब चार किलोग्राम एंबरग्रिस बरामद हुई है जिसकी कीमत 10 करोड़ रुपये है.

यूपीएसटीएफ ने ट्विटर पर बताया, "यूपीएसटीएफ के द्वारा दिनांक 05.09.2022 को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वन्य जीव संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत प्रतिबंधित एंबरग्रिस की तस्करी करने वाले गिरोह के 4 सदस्यों को रुपये 10 करोड़ की 4.120 किग्रा एंबरग्रिस सहित थाना गोमतीनगर विस्तार क्षेत्र, लखनऊ से गिरफ्तार किया गया.”

व्हेल मछली की उलटी या एंबरग्रिस की बिक्री वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत प्रतिबंधित है. स्पर्म व्हेल मछली यह पदार्थ बनाती है जिसे ‘ग्रे एंबर' या फ्लोटिंग गोल्ड यानी तैरता सोना भी कहा जाता है. इसे दुनिया के चंद सबसे अनोखी घटनाओं में से एक माना जाता है.

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यह पहली बार नहीं है जबकि एंबरग्रिस की तस्करी करते लोगों को भारत में पकड़ा गया है. हाल के दिनों में ऐसी घटनाएं बढ़ी हैं. पिछले साल दिसंबर में महाराष्ट्र की पिपरी चिंचवाड़ पुलिस ने दो लोगों को पुणे में 550 ग्राम एंबरग्रिस के साथ पकड़ा था. उससे पहले अगस्त में छह लोगों को पुणे में ही तीन किलोग्राम एंबरग्रिस के साथ पकड़ा गया था.

क्या होती है व्हेल की उलटी?

इस पदार्थ को अक्सर व्हेल की उलटी कहा जाता है लेकिन यह सही नहीं है. असल में एंबरग्रिस का फ्रांसीसी में अर्थ होता है ग्रे एंबर. यह मोम जैसा एक पदार्थ होता है जो स्पर्म व्हेल के पाचन तंत्र में बनता है. स्पर्म व्हेल एक संरक्षित प्रजाति है. चूंकि यह व्हेल के पाचन तंत्र में बनता है इसलिए इसे उलटी कह दिया जाता है.

इस बारे में अब भी विज्ञानपूरे यकीन के साथ नहीं कह सकता कि एंबरग्रिस बनता कैसे है. एक सिद्धांत कहता है कि जब व्हेल बहुत बड़ी मात्रा में समुद्री जीव खा लेती और उनका आकार बड़ा होता है तो उन्हें पचाने के लिए उसकी अंतड़ियों में यह पदार्थ बनता है.

एंबरग्रिस व्हेल मछली के शरीर से बाहर कैसे निकलता है, इसके भी कई तरीके हो सकते हैं. कई बार यह मलद्वार से निकलता है और उसका रंग मल जैसा होता है. इसमें मल की तीखी गंध होती है जिसमें समुद्री गंध भी मिली होती है. जब यह व्हेल के शरीर से निकलती है तब इसका रंग हल्का पीला होता है और यह गाढ़ी वसा जैसी होती है. लेकिन समय बीतने के साथ यह गहरी लाल रंग की और कई बार काली या सलेटी रंग की भी हो जाती है. तब इसकी गंध मिट्टी जैसी हो जाती है.

इतनी महंगी क्यों?

अंतरराष्ट्रीय बाजार में एंबरग्रिस की कीमत एक से दो करोड़ रुपये किलो तक हो सकती है. इसकी कीमत इसकी शुद्धता और गुणवत्ता पर निर्भर करती है. जानकार कहते हैं कि चूंकि यह बहुत दुर्लभ चीज है इसलिए इसकी कीमत बहुत ऊंची है.

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पारंपरिक रूप से एंबरग्रिस का इस्तेमाल पर्फ्यूम बनाने में किया जाता है. वैसे पहले इसका प्रयोग खाने, तंबाकू और अल्कोहल में फ्लेवर के लिए भी किया जाता था. एक अवधारणा यह है कि एंबरग्रिस यौनशक्ति बढ़ाती है. इस कारण भी यह पदार्थ काफी मांग में रहता है और खूब ऊंचे दाम पर खरीदा जाता है. मध्य पूर्व, पूर्वी यूरोप और दक्षिण पूर्व एशियाके देशों में इसकी काफी मांग है.

एंबरग्रिस लगभग 40 देशों में प्रतिबंधित है. अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और भारत आदि देशों में इसे रखना और इसका व्यापार पूरी तरह प्रतिबंधित है. भारत में स्पर्म व्हेल एक संरक्षित प्रजाति है और उससे बनने वाले सभी उत्पादों को प्रतिबंधित किया गया है. लेकिन भारत के तटीय राज्यों, खासकर महाराष्ट्र और तमिलनाडु में इसका व्यापार बढ़ा है.

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