यूक्रेन में गेहूं की कम बुवाई, अगले साल भी संकट के आसार
१६ नवम्बर २०२२दुनिया में गेहूं के शीर्ष निर्यातकों में शामिल यूक्रेन का गेहूं के सबसे बड़े खरीदार मिस्र, ट्यूनीशिया, मोरक्को, इंडोनेशिया, पाकिस्तान और बांग्लादेश हैं. सप्लाई में कमी इन्हें वैकल्पिक निर्यातकों की तलाश के लिए विवश करेगी. अनाज की सप्लाई सुनिश्चित करने के लिए देशों के बीच होड़ दुनिया के बाजार में इसकी कीमत बढ़ा देगी और उन देशों पर भी इसका असर होगा जो यूक्रेन से सीधे गेहूं नहीं खरीदते हैं.
उपज में कमी
यूक्रेन ने इस साल करीब 1.9 करोड़ टन गेहूं की फसल काटी है. पिछले मौसम के मुकाबले यह करीब 40 फीसदी कम है जब रिकॉर्ड 3.3 करोड़ टन गेहूं उपजा था. अब इस साल बुवाई ठीक से नहीं होने के कारण 2023 में गेहूं की कमी होना तय है. इतना ही नहीं नकदी की समस्या से जूझ रहे यूक्रेन के किसान खेतों में पर्याप्त खाद जैसी चीजें भी नहीं डाल पा रहे हैं इसका सीधा असर गेहूं की उपज पर होगा.
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मध्य यूक्रेन में 15,000 हेक्टेयर जमीन पर खेती करने वाले डच नागरिक कीस हुइंजिंगा कहते हैं, "किसान यह देखना चाहते हैं कि अगले साल क्या होता है. ऐसे में इस साल के पतझड़ में बहुत कम बुवाई हुई है. लोग जानना चाहते हैं कि आगे क्या होगा, वो पैसा बचा रहे हैं, यह भी हो सकता है कि उनके पास पैसे हो ही ना, कई कारण हैं."
उत्पादन में कमी का असर दुनिया के गरीब देशों पर होगा. यूक्रेन कुछ गेहूं का निर्यात तुर्की को भी करता है. तुर्की में इससे आटा बना कर अफ्रीका भेजा जाता है. इसके साथ ही इससे नरम आटे वाला पास्ता भी बनाता है जो कई विकासशील देशों में बहुत पसंद किया जाता है क्योंकि यह दुरम (पास्ता बनाने में इस्तेमाल होने वाले गेहूं की एक किस्म) से बनने वाले पास्ता की तुलना में सस्ता भी है.
खाद्य संकट का एक और साल
वैश्विक खाद्य सुरक्षा को मजबूत बनाने के लिए जी20 के देशों के बनाए एग्रीकल्चरल मार्केट इनफॉर्मेशन सिस्टम, एएमआईएस ने चेतावनी दी है कि यूक्रेन में एक और खराब फसल का मतलब होगा कि वैश्विक भंडार एक और साल तक संकट से उबर नहीं पाएंगे. इसके नतीजे में बाजार की हालत खराब होगी और महंगाई बनी रहेगी. खाद्य संकट कोविड-19 की महामारी, जलवायु से जुड़ी आपदाओं और ऊर्जा संकट के साथ मिल कर ज्यादा बुरा साबित हो रहा है.
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मोरेक्स सॉल्यूशंस के विश्लेषक जॉर्जी स्लावोव ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा, "मुझे डर है कि केवल यूक्रेन की समस्या के कारण ही भोजन की ऊंची कीमतें बनी रहेंगी. दूसरे उत्पादक भी खाद, ईंधन, मजदूर और परिवहन की ऊंची कीमतों का सामना कर रहे हैं."
यूक्रेन में किसानों को बहुत कम कीमत मिल रही है क्योंकि जंग से जूझते देश से अनाज को निकाल कर निर्यात के केंद्रों तक पहुंचाने की मुश्किल बहुत बड़ी है. यूक्रेन की फार्म कंपनी हार्वईस्ट के मुख्य कार्यकारी अधिकारी दिमित्री स्कोर्नयाकोव ने भी कहा, "हर आदमी पैसा बचा रहा है और कम खर्च में बुवाई कर रहा है जिसका नतीजा अगले साल उपज में भारी कमी के रूप में सामने आएगा."
निर्यात से कम कमाई
उत्पादन में कमी का मतलब है कि यूक्रेन को गेहूं के निर्यात से होने वाली कमाई भी काफी कम हो जायेगी. 2021/22 में इसके करीब 4 अरब डॉलर रहने का अनुमान है. सरकार के आंकड़े दिखा रहे हैं कि 7 नवंबर तक यूक्रेन के किसानों ने करीब 36 लाख हेक्टेयर में गेहूं की फसल बोई है. इस समय तक पिछले साल यह जमीन 60.9 लाख हेक्टेयर थी.
2022 में यूक्रेन ने कुल 61 लाख हेक्टेयर में सर्दी वाली गेहूं बोई थी लेकिन इसका एक बड़ा हिस्सा रूस के हमले के बाद उनके कब्जे में चला गया. यूक्रेन केवल 46 लाख हेक्टेयर जमीन की फसल ही काट सका. गेहूं की तुलना में सफेद सरसों (रेपसीड) की फसल ज्यादा अच्छी साबित हुई. फसल को यूरोप तक ले जाने का खर्च बहुत ज्यादा है लेकिन रेपसीड की ऊंची कीमत की तुलना में यह काफी कम है. एक बार यूरोपीय संघ तक पहुंच जाने के बाद इसे गेहूं के मुकाबले दोगुनी कीमत पर बेचा जाता है. किसानों का इसकी उपज में ज्यादा फायदा है.
वसंत में तिलहन की उपज में फायदा
यूक्रेन आगामी वसंत फसलों की बुवाई के समय इसी रुझान के बने रहने की उम्मीद कर रहा है. इस समय मक्का मुख्य अनाज होता है और सूरजमुखी तिलहन. हालांकि क्या होगा अभी यह कहना मुश्किल है क्योंकि संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व में यूक्रेन से निर्यात के लिए जो समझौता हुआ है उसकी अवधि 19 नवंबर को खत्म हो जायेगी. इसके तहत यूक्रेन के तीन बंदरगाहों से अनाज के निर्यात की अनुमति दी गई है. इसे आगे बढ़ाया जा सकता है लेकिन रूस के रुख को लेकर इस पर चिंता बनी हुई है.
अगर यह आगे नहीं बढ़ा तो यूक्रेन में कीमतें और बढ़ेंगी क्योंकि तब पूर्वी और मध्य यूक्रेन से अनाज का निर्यात नहीं हो सकेगा. केवल पश्चिमी यूक्रेन के किसान ही जमीन के रास्ते अपनी पैदावार यूरोपीय संघ को भेज सकेंगे.
यूक्रेन के एग्रेरियन काउंसिल के उप प्रमुख डेनिस मार्चुक कहते हैं, "सागर के रास्ते निर्यात पर बहुत कुछ निर्भर है." मार्चुक का कहना है कि अगर यूक्रेन से सागर के रास्ते निर्यात नहीं हुआ तो कई फसलों में गिरावट आयेगी, हालांकि उन्हें उम्मीद है कि अनाज के निर्यात का समझौता आगे बढ़ेगा.
एनआर/वीके (रॉयटर्स)