रंगभेदः "फेयरनेस" से छुटकारा पाती कंपनियां!
२७ जुलाई २०२०दुनिया की सबसे बड़ी कॉस्मेटिक कंपनियां कुछ ऐसी परियों की कहानी सुनाकर अपने उत्पाद बेच रही है-जैसे अगर आपके पति की इच्छा आपने में खत्म हो जाती है, अगर आपके साथी दफ्तर में आपके काम को नजरअंदाज कर देते हैं, अगर आपकी प्रतिभा को नजरअंदाज कर दिया जाता है, तो अपनी त्वचा को गोरा करें और अपनी जिंदगी में बदलाव लाएं, करियर में तरक्की पाएं.
यूनिलिवर की तरह किसी और कंपनी को एशिया, अफ्रीका और मध्य पूर्व में अपने प्रोडक्ट फेयर एंड लवली ब्रांड को बेचने के लिए इतनी सफलता नहीं मिली है. भारत में करीब 150 रुपये में मिलने वाली क्रीम फेयर एंड लवली की लाखों ट्यूब एक साल में बिकती है. पिछले 45 साल से भारतीय बाजार में सौंदर्य उत्पाद बेचने वाली यूनिलिवर 50 करोड़ डॉलर सालाना केवल भारतीय बाजार से कमाती है. कंपनी दशकों से हल्के रंग की त्वचा करने वाली क्रीम को लेकर विज्ञापन करते आई है और साथ ही वह बताती है कि त्वचा का हल्का रंग होना कितना फायदेमंद है. कंपनी अब नई ब्रांडिंग के साथ अपने प्रोडक्ट को बाजार में उतार रही है. लेकिन यह संभावना कम ही है कि सौंदर्य की दुनिया के सबसे बड़े ब्रांड द्वारा ताजा विज्ञापन एक खास रंग के खिलाफ पूर्वाग्रहों की गहरी सोच को पलट देगा-यह सोच है कि गोरी त्वचा गहरे रंग की त्वचा से बेहतर है.
यूनिलिवर का कहना है कि वह "फेयर" , "व्हाइट" और "लाइट" जैसे शब्द मार्केटिंग और पैकेजिंग से हटा रही है. हिंदुस्तान यूनिलिवर का कहना है कि "फेयर एंड लवली" ब्रांड अब " ग्लो एंड लवली" किया जा रहा है. फ्रेंच कॉस्मेटिक कंपनी लॉरियल भी इसी तरह से अपने उत्पादों से शब्द हटा लेगी. जॉनसन एंड जॉनसन ने कहा है कि वह न्यूट्रोजेना की फेयरनेस और गोरा करने वाली क्रीम नहीं बेचेगी.
कंपनियों की सोच कैसे बदली?
अमेरिका में अश्वेत नागरिक जॉर्ज फ्लॉयड की पुलिस हिरासत में मौत के बाद जिस तरह से रंगभेद के खिलाफ प्रदर्शन दुनिया भर में हुए हैं, उसका ही नतीजा है कि कंपनियों का नजरिया बदल रहा है. दुनिया भर में ब्लैक लाइव्स मैटर आंदोलन के बाद ही सौंदर्य प्रसाधन उत्पाद सवालों के घेरे में आ गए हैं. दुनिया भर के अधिकार कार्यकर्ता यूनिलिवर के फेयर एंड लवली के लिए आक्रामक विज्ञापन के खिलाफ आवाज उठाते आए हैं. मिस्र से लेकर मलेशिया तक महिला अधिकार समूह इस ब्रांड की आलोचन करते रहे हैं.
''डार्क इज ब्यूटीफुल'' की संस्थापक कविता इमैन्युएल ने करीब एक दशक पहले इस अभियान की शुरूआत की थी. उन्होंने अभियान की शुरूआत इस सोच को चुनौती देने के लिए की थी कि हल्के रंग की त्वचा प्राकृतिक रूप से गहरे रंग की त्वचा से ज्यादा सुंदर है. उनका कहना है कि बहुराष्ट्रीय कंपनियां जैसे कि यूनिलिवर ने त्वचा के रंगों से जुड़े पूर्वाग्रहों को शुरू नहीं किया बल्कि उससे पैसे कमाए हैं. इमैन्युएल कहती हैं, ''45 सालों तक ऐसी धारणा का समर्थन करना निश्चित रूप से नुकसान किया है.''
इमैन्युएल साथ ही कहती हैं कि इस सोच ने भारत की कई युवा महिलाओं का आत्मविश्वास हिलाया है. त्वचा के रंग को हल्का करने के लिए भारतीय बाजार ब्यूटी प्रोडक्ट्स से अटे पड़े हैं. शादी के लिए विज्ञापन में भी त्वचा के रंगों का जिक्र खुलेआम होता है. शादी के लिए लड़की देखते समय लड़का चाहे जैसा हो, लड़की गोरी, दुबली पतली की मांग की जाती है.
एए/सीके (एपी)
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