भारत में निवेश से क्यों हिचक रहे हैं विदेशी मैनेजर
२३ फ़रवरी २०२३जर्मनी, यूरोप में भारत का सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार है. बर्लिन स्थित भारतीय दूतावास के मुताबिक 2020-21 में दोनों पक्षों के बीच 21.76 अरब डॉलर का द्विपक्षीय कारोबार हुआ. जर्मन सरकार के डाटा के मुताबिक इस वक्त भारत में 1,700 से ज्यादा जर्मन कंपनियां काम कर रही हैं. इन कंपनियों ने सीधे तौर पर करीब 4,00,000 भारतीयों को रोजगार दिया है.
भारत और जर्मनी के बीच एक अरब यूरो के प्रोजेक्ट पर सहमति
जनसंख्या के मामले में भारत दुनिया का दूसरा बड़ा देश है. भारत की आधी से ज्यादा आबादी फिलहाल 35 साल से कम उम्र की है. अर्थशास्त्रियों के मुताबिक इस युवा आबादी के लिए भारत को हर महीने लाखों नौकरियां पैदा करने की जरूरत है. विदेशी निवेश के सतत बहाव और भारतीय अर्थव्यवस्था की तेज रफ्तार के बिना इतने बड़े पैमाने पर नौकरियां पैदा करना संभव नहीं है. ये बात भारत सरकार भी अच्छी तरह समझती है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में भारत में विदेशी निवेश काफी बढ़ा है. देश खुद को दुनिया का मैन्युफैक्चरिंग हब बनाना चाहता है. वहीं दूसरी तरफ जर्मन कारोबारी भी नया बाजार खोज रहे हैं. भूराजनीतिक तनाव के चलते पश्चिमी निवेशकों का चीन से मोहभंग हो रहा है.
इंडो पेसिफिक में अब जर्मनी भी आया भारत के साथ
फिलहाल भारत खुद को चीन के विकल्प के रूप में पेश करने की पुरजोर कोशिश कर रहा है. लेकिन इस जुगत में लगा वह अकेला देश नहीं है. बीते एक दशक में भारत में कारोबार करना पहले के मुकाबले आसान जरूर हुआ है. वर्ल्ड बैंक की 'इज ऑफ डूइंग बिजनेस लिस्ट' में भी भारत की रैकिंक चार स्थान ऊपर गई है. लेकिन कई चुनौतियां अब भी बाकी है.
भारत में मौजूद बैरियर
जर्मन अखबार फ्रांकफुर्टर अल्गेमाइने साइंटुग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के "71 फीसदी मैनेजर भारत में निवेश तो करना चाहते हैं, लेकिन लालफीताशाही अब भी उन्हें डराती है." आयात शुल्क में अचानक होने वाला बदलाव, कस्टम क्लीयरेंस और ड्यूटी में निरंतर उतार चढ़ाव को भी बिजनेस फ्रेंडली नीतियों का विरोधी माना जाता है.
सिंगापुर में चैंबर ऑफ कॉमर्स के एक सर्वे में यह बात सामने आई कि सिर्फ 12 फीसदी मैनेजर भारत को कारोबार के लिए बाधामुक्त देश के रूप में देखते हैं. अपने बड़े बाजार और युवा कामगारों के चलते भारत विदेशी निवेशकों के लिए एक चुंबक सा बन सकता है, लेकिन देश की रुढ़िवादी लालफीताशाही, दशकों पुराने कानून और सरकारी दफ्तरों में फाइलों से पिंग पॉन्ग खेलने की आदत अब भी एक बड़ी समस्या है.
बांग्लादेश इनवेस्टमेंट डेवलपमेंट अथॉरिटी के एक्जीक्यूटिव चैयरमैन लोकमन हुसैन के मुताबिक, बांग्लादेश में नया कारोबार शुरू करने के लिए जरूरी अनुमतियां लेने में कारोबारियों को छह महीने का समय लग जाता है. वहीं भारत में इस प्रक्रिया में 60 दिन लगते हैं, वियतनाम में 35 और इंडोनेशिया में 49 दिन.
चीन से सरकते भरोसे में कितनी संभावना
फिलहाल चीन जर्मनी का सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार है. 2022 में दोनों देशों के बीच 297.9 अरब यूरो का कारोबार हुआ. चीन यूरोपीय संघ का भी सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर है. ईयू के साथ बीजिंग 847.3 डॉलर का व्यापार करता है. आसियान और ईयू के बाद चीन का तीसरा बड़ा कारोबारी साझेदार अमेरिका है. दोनों पक्षों के बीच 759.4 अरब डॉलर का कारोबार है.
अगर इन आंकड़ों को भारत के साथ होने वाले कारोबार के समानांतर देखें तो नई दिल्ली के साथ कारोबार का हिस्सा करीब 10 फीसदी के आसपास है. अवसर और संभावना बहुत है. 90 फीसदी आगे बढ़ने की. फरवरी के आखिर में भारत की यात्रा करने वाले जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्त्स, भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मिलकर इस संभावना का ज्यादा से ज्यादा फायदा उठाना चाहेंगे.