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खाने में थूक पर कानून: क्या है यूपी सरकार का उद्देश्य

समीरात्मज मिश्र
१७ अक्टूबर २०२४

यूपी सरकार खाने-पीने की चीजों में 'थूकने' या किसी तरह की गंदगी मिलाने जैसी कथित गतिविधियां रोकने के लिए कानून लाने जा रही है. इसमें तीन से पांच साल तक की जेल और एक लाख रुपये तक के जुर्माने की सजा हो सकती है.

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Indien Oberster Minister des indischen Bundesstaates Uttar Pradesh, Yogi Adityanath
तस्वीर: SANJAY KANOJIA/AFP via Getty Images

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 15 अक्टूबर की शाम गृह, खाद्य और नागरिक आपूर्ति और कानून विभाग समेत कई महकमों के वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों की एक उच्च स्तरीय बैठक बुलाई.

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इसमें खाद्य पदार्थों को दूषित करने वालों के खिलाफ कड़े कानून लाने संबंधी प्रावधानों पर चर्चा की गई. सीएम आदित्यनाथ ने गृह विभाग और राज्य विधि आयोग की ओर से तैयार प्रस्तावित कानून के ड्राफ्ट पर मंथन किया. उन्होंने जल्द-से-जल्द इसे अंतिम रूप देने के निर्देश भी दिए हैं.

बैठक के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने खुद सोशल मीडिया अकाउंट एक्स के जरिए इस बात की सूचना दी. उन्होंने लिखा, "खाद्य एवं पेय पदार्थों में अखाद्य और गंदी चीजों की मिलावट असभ्य और अमानवीय आचरण है. ऐसे वीभत्स, स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालने और सामाजिक सौहार्द को बिगाड़ने वाले कुत्सित कृत्यों को कतई स्वीकार नहीं किया जा सकता है. खाद्य पदार्थों की पवित्रता सुनिश्चित करने और सार्वजनिक व्यवस्था के बारे में उपभोक्ताओं में विश्वास बनाए रखने के लिए यूपी सरकार अति शीघ्र कठोर कानून लाने जा रही है. प्रदेश के हर नागरिक की आस्था और स्वास्थ्य का संरक्षण आपकी सरकार की शीर्ष प्राथमिकता है."

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वायरल वीडियो बने कानून लाने का आधार?

बताया जा रहा है कि इस संबंध में दो अध्यादेश पेश किए जाएंगे. इन्हें अस्थायी तौर पर 'छद्म और सद्भाव विरोधी गतिविधियों की रोकथाम और थूकने का निषेध अध्यादेश 2024' और 'उत्तर प्रदेश खाद्य में संदूषण की रोकथाम (उपभोक्ता को जानने का अधिकार) अध्यादेश 2024' नाम दिया गया है.

हालिया समय में राज्य में सोशल मीडिया पर कई ऐसे विडियो वायरल हुए थे जिनमें जूस, दाल, रोटी जैसी खाने-पीने की चीजों में दुकानदार या रसोईये कथित तौर पर थूकते हुए देखे गए थे. कुछ जगहों पर गंदगी मिलाने की भी शिकायतें थीं. बीते दिनों गाजियाबाद की एक हाउसिंग सोसायटी में एक घरेलू सहायिका पर आटे में पेशाब मिलाने का आरोप लगा और एक वायरल वीडियो के बाद संदिग्ध को गिरफ्तार भी किया गया है. अन्य कई मामलों में भी गिरफ्तारियां हुई हैं.

पिछले दिनों सहारनपुर का एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें आरोप है कि एक नाबालिग लड़के को रोटियों पर थूकते हुए देखा गया था. वीडियो आने के बाद रेस्तरां के मालिक को गिरफ्तार कर लिया गया था. इसी तरह नोएडा में दो लोगों को मूत्र से जूस को दूषित करने के आरोप में हिरासत में लिया गया था. गाजियाबाद में एक दुकानदार को फलों के जूस में थूकने के इल्जाम में गिरफ्तार किया गया था.

बताया जा रहा है कि इसी तरह की घटनाओं का संज्ञान लेते हुए सीएम योगी ने दोषियों पर सख्त कार्रवाई के लिए कानून तैयार करने को कहा था. उन्होंने होटल, रेस्तरां, ढाबा, सड़क किनारे खाने-पीने की चीजें बेचने वाले विक्रेताओं से जुड़ी इन कथित गतिविधियों के संबंध में सुस्पष्ट कानून तैयार करने को कहा था.

उत्तर प्रदेश के अयोध्या शहर में सड़क किनारे अखबार पढ़ रहे दो मुसलमान. यह तस्वीर 2019 की है.
कई आलोचक आशंका जता रहे हैं कि प्रस्तावित कानून मुसलमानों के लिए प्रचलित सामाजिक पूर्वाग्रह, अविश्वास और भेदभाव को और मजबूत कर सकता हैतस्वीर: Rajesh Kumar Singh/AP Photo/picture alliance

कानून के प्रारूप पर उपलब्ध जानकारियां

प्रस्तावित कानून के मुताबिक, सभी खाद्य प्रतिष्ठानों और दुकानों पर विक्रेताओं के लिए साइनबोर्ड लगाना अनिवार्य होगा. साथ ही वहां काम करने वाले कर्मचारियों को भी पहचान पत्र रखना होगा, जिसमें उनका पूरा नाम लिखा होगा. छद्म नाम रखने और गलत जानकारी देने वालों के विरुद्ध कठोरतम सजा का प्रावधान होगा.

यह कवायद कुछ उसी तरह है, जब पिछले दिनों प्रशासन ने पश्चिमी यूपी सहित कई जिलों में कांवड़ के रास्ते में आने वाली दुकानों पर साइनबोर्ड और विक्रेता का नाम लिखना अनिवार्य कर दिया था. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी थी, लेकिन खबरों में दावा किया जा रहा है कि प्रस्तावित कानून में इसका भी समाधान निकाला जाएगा. इन अपराधों को संज्ञेय और गैर-जमानती श्रेणी में रखने को कहा गया है.

इसके अलावा प्रस्तावित कानून में साफ-सफाई बरतने संबंधी प्रावधान भी शामिल किए जाएंगे. मसलन, रसोई घर में भोजन पकाते और परोसते समय सिर ढकना, अनिवार्य रूप से मास्क और दस्ताने पहनना. रसोई घर और भोजन कक्ष में पर्याप्त कैमरे लगाने होंगे. मांगे जाने पर फुटेज उपलब्ध कराना होगा. इसके अलावा खाद्य प्रतिष्ठानों को तय करना होगा कि वहां पर कोई भी भोजन दूषित न हो. यही नहीं, यदि किसी प्रतिष्ठान में किसी कर्मचारी के अवैध विदेशी नागरिक होने की पुष्टि होती है, तो उनके विरुद्ध सख्त सजा का प्रावधान किया जाएगा.

प्रस्तावित कानूनों पर कई गंभीर सवाल और आलोचना

बताया जा रहा है कि इस कानून के पीछे कुछ हिंदू संगठनों का दबाव भी है. कुछ दिन पहले ही गाजियाबाद में साधु-संतों ने इस बारे में एक बड़ी पंचायत की थी, जिसमें साध्वी प्राची समेत कई जाने-पहचाने चेहरे शामिल थे. यह पंचायत गाजियाबाद के लोनी क्षेत्र में कथित तौर पर जूस में मूत्र मिलाने का मामला सामने आने के बाद हुई थी. इस पंचायत को 'मूत्र और थूक जिहाद के खिलाफ महापंचायत' का नाम दिया गया था. कई मानवाधिकार कार्यकर्ता और नागरिक समूह 'जिहाद' शब्द के इस्तेमाल को मुसलमानों को निशाना बनाने और उनके खिलाफ दुष्प्रचार के रूप में देखते हैं. 

जहां तक प्रस्तावित कानून की बात है, तो एक बड़ा सवाल यह है कि कैसे तय किया जाएगा कि खाने में इस तरह की कोई मिलावट हुई है. कई जानकार कहते हैं कि इन आरोपों का कोई ठोस आधार नहीं है और न ही अब तक की जो घटनाएं सामने आई हैं, उनसे इस बारे में कोई सुस्पष्ट जानकारी मिलती है.

कई आलोचक कहते हैं कि इसका सिर्फ एक ही आधार है, वायरल वीडियो और जरूरी नहीं कि ये वायरल वीडियो सही ही हों. विशेषज्ञों की आशंका है कि वायरल वीडियो के आधार पर तो यह तय करना बड़ा मुश्किल हो जाएगा और कानून का दुरुपयोग भी जमकर होगा. इलाहाबाद हाईकोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता सुभाष राठी कहती हैं कि खाद्य पदार्थों में मिलावट से संबंधित कानून तो पहले से ही मौजूद हैं, लेकिन जूस में पेशाब और खाने में थूक मिलाने जैसे मामलों से संबंधित कानून नहीं हैं.

वह कहती हैं, "ये धारणा भी है कि कुछ लोग थूक कर ही परोसते हैं, शायद इसी से निजात पाने के लिए ये कानून बना रहे हैं. अब कौन लोग परोसते हैं, ये देखना होगा. मिलावट के खिलाफ जो कानून हैं, वो खाद्य सामग्रियों में मिलावट के खिलाफ हैं, लेकिन वायरल वीडियो में जो कुछ दिख रहा है वो वास्तव में यदि सही है, तो ये किसी व्यक्ति या उसके धर्म को डिस्टर्ब करने के लिए है. पर हां, कानून तो हर जगह है और उसका गलत इस्तेमाल भी होता है. जाहिर है, इस कानून का भी हो सकता है. लेकिन कानून बनने के बाद देखा जाएगा कि इसमें क्या कमियां हैं और इन्हें कैसे बेहतर किया जा सकता है."

भारतीय उच्चतम न्यायालय की इमारत.
यूपी में कई जगहों पर कांवड़ के रास्ते में आने वाली दुकानों पर साइनबोर्ड और विक्रेता का नाम लिखना अनिवार्य कर दिया गया था, जिसपर बाद में सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थीतस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/N. Kachroo

मिलावट का मतलब और मौजूदा कानून

कानूनी दृष्टि से मिलावट का मतलब है, किसी चीज में कोई दूसरा पदार्थ मिलाकर उसकी गुणवत्ता खराब करना. संवैधानिक व्यवस्था के तहत खाद्य पदार्थों और अन्य वस्तुओं में मिलावट के मामले को समवर्ती सूची में रखा गया है. इसका मतलब है कि खाद्य पदार्थों में मिलावट के मामले में केंद्र और राज्य, दोनों ही सरकारों के पास कानून बनाने का अधिकार है.

इस संबंध में दो प्रमुख केंद्रीय कानून हैं. पहला है, खाद्य अपमिश्रण निवारण अधिनियम 1954 (पीएफए), जो भोजन में मिलावट या संदूषण से सुरक्षा प्रदान करता है. दूसरा है, खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम 2006 (एफएसएसए).

इसके अलावा भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के तहत एक वैधानिक निकाय है, जो खाद्य पदार्थों के निर्माण, भंडारण, वितरण, बिक्री और आयात को नियंत्रित करता है. साथ ही, खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये मानक भी तय करता है.

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कोई भी व्यक्ति जो भोजन या पेय पदार्थ में मिलावट का दोषी पाया जाता है, उसे छह महीने तक की कैद या जुर्माना या फिर दोनों सजाएं मिल सकती हैं. दुकानों, रेस्तरां, ढाबों पर अक्सर छापेमारी जैसी कार्रवाई होती रहती है, खासकर त्योहारों के समय. ज्यादातर कार्रवाई नमूने इकट्ठा करने, दुकानों को सील करने या फिर जुर्माना लगाने तक सीमित रहती हैं. गिरफ्तारी या सजा मिलने की स्थिति शायद ही कभी आती है. सरकार के पास ऐसे कोई आंकड़े नहीं हैं, जिनसे पता चले कि मिलावट के मामलों में कितने लोगों को सजा हुई है.

यही नहीं, नकली तेल से बनी चीजें और दूसरे खाद्य पदार्थों में मिलावट पकड़ने के लिए खाद्य सुरक्षा विभाग छापेमारी कर सैंपलिंग करता रहता है. इन नमूनों को जांच के लिए प्रयोगशाला भेजा जाता है, लेकिन लैब से उनकी रिपोर्ट आने में महीनों इंतजार करना पड़ता है. जानकारों के मुताबिक, किसी खाद्य पदार्थ में पेशाब की मिलावट को तो पकड़ा भी जा सकता है, लेकिन थूक की मिलावट को पकड़ना आसान नहीं है. दूसरी बात यह भी है कि सरकार कानून बना तो रही है, लेकिन इस तरह की घटनाओं के पीछे कोई ठोस आधार नहीं है.

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राजनीति और दुष्प्रचार की मंशा से प्रेरित होने के आरोप

यूपी सरकार के इस प्रस्तावित कानून पर वरिष्ठ पत्रकार और देशबंधु समूह के ग्रुप एडिटर राजीव रंजन श्रीवास्तव कहते हैं कि इन बातों का कोई ठोस आधार नहीं है. वह बताते हैं, "मैंने भी ऐसे वीडियो देखे हैं. कई वीडियो गलत भी पाए गए. कई बार तो दूसरी जगहों के, विदेशों के वीडियो यहां के बताकर वायरल होते हैं. आखिर इस तरह का कोई ठोस आंकड़ा है, कोई खास आधार है, आखिर क्यों बना रहे हैं कानून? केवल ऐसे वायरल वीडियो के आधार पर कानून बनाया जा रहा है, तो यह ठीक नहीं है क्योंकि मिलावट से संबंधित कानून तो पहले से ही हैं. और अहम बात यह है कि यदि कोई दुकानदार अपना सामान बेचने जा रहा है, तो वह कतई नहीं चाहेगा कि उसके सामान के बारे में गलत जानकारी पहुंचे. आखिर ऐसा कौन करेगा, उसकी तो दुकानदारी ही चली जाएगी."

कई आलोचकों का आरोप है कि इस कानून के पीछे लोगों को साफ-सुथरे खाद्य पदार्थ मुहैया कराने का मकसद कम और राजनीतिक संदेश देने का मकसद ज्यादा लग रहा है. कई आलोचक आरोप लगा रहे हैं कि यह प्रस्तावित कानून राजनीति से प्रेरित है और मुसलमानों के लिए प्रचलित सामाजिक पूर्वाग्रह, अविश्वास और भेदभाव को और मजबूत कर सकता है.

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वरिष्ठ पत्रकार राजीव रंजन श्रीवास्तव भी इसे राजनीति से प्रेरित बताते हैं, "चाहे यह प्रस्तावित कानून हो या फिर कांवड़ यात्रा के दौरान नेमप्लेट लगाने का फरमान हो, ये सब सीधे तौर पर राजनीति से ही प्रेरित हैं. यह प्रस्तावित कानून दो समुदायों के बीच मतभेद और दूरियां बढ़ाने वाला है. समाज को जोड़ने वाला तो कतई नहीं है. आप याद कीजिए, कोरोना काल से पहले ऐसी चर्चा शायद ही कभी हुई हो कि खाद्य पदार्थ को कोई थूककर साफ कर रहा है, थूक मिला रहा है. ऐसे वीडियो सोशल मीडिया पर साझा किए जाते हैं और वायरल किए जाते हैं. एक समुदाय को बहिष्कृत करने के लिए ऐसे वीडियो इस्तेमाल किए गए. तबलीगी जमात के लोगों के खिलाफ कितना वैमनस्य बढ़ गया और यहां तक बढ़ गया कि अब सरकार कानून बनाने जा रही है."

लखनऊ में एक मदरसा चलाने वाले एक मौलवी नाम न बताने की शर्त पर कहते हैं कि मुसलमान समाज की कुछ प्रथाओं को लोगों ने गलत तरीके से प्रचारित किया है और उसे आधार बनाकर पूरे समुदाय को बदनाम किया जाता है. वह कहते हैं, "मुसलमानों में कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो खाना बनते वक्त कुरान की आयतें पढ़कर फूंक देते हैं. हालांकि, सभी मुसलमान ऐसा नहीं करते हैं, लेकिन कुछ लोग करते हैं. और, खास बात यह है कि वे लोग भी उसमें फूंकते हैं, न कि थूकते हैं. थूकने की बातों का कोई वजूद नहीं है, कोई परंपरा नहीं है. पता नहीं कौन ऐसा करता है और क्यों करता है!"

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कई आलोचक इल्जाम लगाते हैं कि वायरल वीडियोज के जरिए ये बातें प्रचारित करने की कोशिश की गई कि मुसलमान समुदाय के लोग ऐसा करते हैं और जानबूझकर करते हैं. ऐसे में उनपर इन आरोपों का ठप्पा कहीं तेजी से लग जाता है. वरिष्ठ मनोवैज्ञानिक डॉक्टर कमलेश तिवारी कहते हैं कि ये सब बातें उसी तरह के प्रोपेगेंडा का हिस्सा हैं, जैसे चर्बी मिलाने का मामला. डीडब्ल्यू हिन्दी से बातचीत में डॉक्टर तिवारी कहते हैं, "पहली बात तो ये कि ये सब एक प्रोपेगेंडा है. और, दूसरी चीज ये कि मूल्यों में ह्रास हुआ है. कुछ लोगों ने इसे दुष्प्रचार की तरह फैलाया कि मुसलमानों में ये परंपरा है कि वो जूठा खिलाते हैं और ऐसा करने से उन्हें जन्नत मिलती है. भ्रामक प्रचार और उसके प्रति लोगों के व्यवहार में बदलाव ये सब इधर बीच काफी बढ़ रहा है."