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अखिलेश बने अवध के युवराज

६ मार्च २०१२

अमर नहीं, अमिताभ नहीं और दूजा कोई मायाजाल नहीं. फिर भी हाथ और हाथी को पटखनी दी है तो सिर्फ पहलवान जी का जोर ही नहीं अखिलेश की नई चमक का भी कमाल है. खांटी देसी परवरिश पर विदेशी तालीम का रंग खूब चढ़ा है.

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तस्वीर: UNI

इस बार के चुनावों में पहली बार हुआ कि समाजवादी के पोस्टर और बैनरों में मुलायम सिंह के बराबर और कई बार केवल अखिलेश यादव का चेहरा चमकता रहा. चुनाव प्रचार में समूचा सूबा उनके दौरों से गुलजार रहा और सिर्फ दिखावे के नहीं पार्टी के नीतिगत फैसलों में रुखाई से फैसले कर उन्होंने सबको हैरत में डाला. प्रमुखता तो उन्हें इससे पहले के चुनावों में भी मिलती रही लेकिन इस बार जैसी नहीं और अब चुनाव के नतीजे बता रहे हैं यह जरूरी भी था. मुलायम सिंह ने भी जीत का सेहरा बेटे के माथे पर बांधने में देर नहीं लगाई. जीत का पूरा श्रेय जनता, पार्टी और अखिलेश को दिया.

Akhilesh Yadav
तस्वीर: UNI

अखिलेश युवा नेताओं की उसी जमात का हिस्सा हैं जिन्हें राजनीति विरासत में मिली है मगर फर्क है. जहां सचिन पायलट, जितिन प्रसाद और ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे युवा अपनी विरासत को बस कांधा दे रहे हैं वही अखिलेश ने पार्टी लाइन में बदलाव का माद्दा दिखाने की कोशिश की है.

मुलायम सिंह के पिछले कार्यकाल को याद कीजिए. पूरे देश में यूपी को अपराधियों का प्रदेश कहा जाने लगा था. समाजवादी पार्टी में डीपी यादव जैसे बाहुबली को घुसने की अनुमति देने के पिता के फैसले का विरोध का जज्बा अखिलेश ने दिखाया और इसकी सब जगह तारीफ हुई. सिर्फ इतना ही नहीं मुलायम ने कभी कंप्यूटर और अंग्रेजी के विरोध में झंडा बुलंद किया था पर अब अखिलेश हर जगह इसे लोगों के लिए जरूरी बता रहे हैं. आश्चर्य नहीं होगा अगर सरकार बनने के बाद उत्तर प्रदेश में इनके विकास के लिए कदम भी उठाए जाएं.

Indien Mulayam Singh Yadav
तस्वीर: AP

मुस्लिम यादव के जिस समीकरण के बल पर लालू यादव ने डेढ़ दशक तक बिहार पर राज किया उसी समीकरण का झंडा उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के हाथ में रहा. बिहार में लालू बदले वक्त को नहीं भांप सके और बाहर कर दिए गए. समाजवादी पार्टी का यह अवतार बदलते वक्त की नब्ज टटोल कर उसके हिसाब से फैसले ले रहा है. मुलायम ने भी सही समय पर कमान उनके हाथों में सौंपी है. सांसद तो वो 2000 से ही है लेकिन इस बार के चुनाव ने उनकी राजनीति चमका दी है. जीत की तस्वीर दिखने लगी तो अखिलेश ने कहा, "लोगों ने जाति और धर्म से ऊपर उठ कर समाजवादी पार्टी को वोट दिया है और इसलिए हम जीत रहे हैं."

अमर सिंह की छाया से निकलने के बाद समाजवादी पार्टी को फिलहाल एक नई सोच और नई ऊर्जा की जरूरत थी, अखिलेश अपने साथ कोई बहुत बड़ा करिश्मा तो लेकर नहीं आए लेकिन उन्होंने रुख बदलने का संकेत जरूर दिया है. युवा उन्हें अपने साथ जोड़ सकें इसके लिए उनके पास जरूरी सामान मौजूद है. एक जैसी हिंदी अंग्रेजी बोलने में दक्ष अखिलेश सार्वजनिक रूप से कभी उत्तेजित नहीं देखे गये न ही किसी ने उन्हें मंच से बोलते समय गरजते सुना है. वह नरमी से अपनी बात कहते हैं और चुनावी दौरों पर बड़ी रैलियों की बजाय छोटी छोटी सभाओं पर ज्यादा ध्यान देते हैं. कार्यकर्ताओं से घिरे रहते हैं पर मौका निकाल कर परिवार और दोस्तों से भी मिल आते हैं. मीडिया उन्हें राहुल गांधी जितनी तवज्जो नहीं देती पर लोग उन्हें सुन रहे हैं और अब नतीजा भी दिख रहा है.

भले ही पूरे चुनाव प्रचार में राहुल गांधी को युवराज कह कर मुखातिब किया गया हो लेकिन इस बार के चुनाव के असली युवराज ते अखिलेश ही हैं.

रिपोर्टः एन रंजन

संपादनः ए जमाल

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