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इंटरनेट के सहारे बढ़ता बाल शोषण

७ दिसम्बर २०१३

इंटरनेट पर ज्यादा समय बिताने वाले किशोर आनलाइन धोखाधड़ी, ब्लैकमेल और यौन शोषण के शिकार हो रहे हैं. एक ताजा सर्वेक्षण में इसका खुलासा हुआ है.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

एंटीवायरस बनाने वाली कंपनी मैकऐफी की ओर से कराए गए इस सर्वेक्षण में अभिभावकों से कहा गया है कि अगर उनका बच्चा इंटरनेट पर ज्यादा समय गुजारता है तो उनको सावधान हो जाना चाहिए. कोलकाता, दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, बैंगलोर, हैदराबाद और अहमदाबाद में आठ से 12 साल की उम्र के बच्चों के बीच किए गए इस सर्वेक्षण के आधार पर जारी मैकऐफीज ट्वीन एंड टेक्नोलॉजी रिपोर्ट 2013 में कहा गया है कि इंटरनेट पर छोटे बच्चों के शिकारी खुलेआम घूम रहे हैं. वह लोग ऐसे बच्चों को बहला-फुसला कर उनसे अपना मतलब साधते हैं. इंटरनेट पर दोस्ती बढ़ाने के बाद उनका यौन शोषण किया जाता है और कई मामलों में इसी के जरिए अपहरण भी कर लिया जाता है.

बच्चों को बहला कर वेब कैम के सहारे ली गई नंगी तस्वीरों और मुद्राओं के आधार पर उनको ब्लैकमेल कर पैसे वसूलने के तो कई मामले सामने आ रहे हैं. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि इंटरनेट के बढ़ते खतरों के प्रति कोलकाता के लोगों में जागरुकता सबसे कम है. सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक पर खाता खोलने की न्यूनतम उम्र 13 साल है लेकिन 70 प्रतिशत बच्चे अपनी उम्र बढ़ा कर इसके सदस्य बन चुके हैं. महानगर के इस आयु वर्ग के 92 प्रतिशत किशोर फेसबुक पर अपनी तस्वीरें शेयर करते हैं जबकि इस मामले में राष्ट्रीय औसत 88 प्रतिशत है. इसी तरह 25 प्रतिशत बच्चों ने अपरिचितों से दोस्ती गांठ रखी है. विडंबना यह है कि 70 प्रतिशत बच्चों ने कहा कि उनके माता-पिता ही फेसबुक पर उनका खाता खोला है.

इंटरनेट में सुरक्षा

विशेषज्ञों की राय

इस आयु वर्ग के बच्चों में फेसबुक सबसे लोकप्रिय है. लेकिन अब स्काईप और ट्विटर जैसी साइटों की लोकप्रियता भी तेजी से बढ़ रही है. बाल मनोवैज्ञानिक सोमेन महापात्र कहते हैं, "अभिभावकों की दिक्कत यह है कि अब बच्चों के पास स्मार्ट फोन से लेकर आईपैड तक हैं जिनसे सोशल नेटवर्किंग साइटों पर लॉगिन किया जा सकता है. बच्चे इन उपकरणों की सहायता से चौबीसों घंटे इंटरनेट से जुड़े रहते हैं." मानसिक रोग विशेषज्ञ मीरा सेनगुप्ता कहती हैं, "बच्चों के व्यक्तित्व पर ऑनलाइन दुनिया का असर तेजी से बढ़ रहा है लेकिन इस असर को सुरक्षित बनाने में मां बाप की अहम भूमिका है."

रिपोर्ट में कहा गया है कि मां बाप और बच्चे के बीच लगातार संवाद बरकरार रखना जरूरी है. लेकिन महानगरों में मां बांप दोनों के कामकाजी होने की वजह से बच्चों पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पाते. ऐसे में मित्रों या किसी परिचित के कहने पर बच्चों को बहुत कम उम्र में ही इंटरनेट सर्फिंग की लत लग जाती है. वहां वह शिकारियों के जाल में फंस जाते हैं. रिपोर्ट के मुताबिक महानगर के बच्चे तीन से चार ऐसे उपकरण रखते हैं जिनके जरिए इंटरनेट से जुड़ा जा सकता है. कंप्यूटर या लैपटॉप इन बच्चों की पहली पंसद हैं. वहां उन पर नजर रखना आसान है. लेकिन अब मोबाइल फोन, स्मार्टफोन, टेबलेट और आईपैड की लोकप्रियता भी बढ़ रही है. उन पर नजर रखना अभिभावकों के लिए भी मुश्किल है. लगभग 45 प्रतिशत बच्चे रात को आठ बजे के बाद नेट सर्फिंग करते हैं.

Symbolbild Kinder mit Handys
स्मार्टफोन में उलझते बच्चेतस्वीर: Fotolia/Jake Hellbach

सुरक्षा जरूरी

मैकऐफी इंडिया के उपाध्यक्ष (इंजीनियरिंग) वेंकट कृष्णापुर कहते हैं, इंटरनेट के बढ़ते प्रसार और उस तक बच्चों की आसान पहुंच को ध्यान में रखते हुए अभिभावकों में जागरुकता बढ़ाना जरूरी है. भावी खतरों को समझने की स्थिति में ही वह इससे अपने बच्चों को आगाह या उनकी सुरक्षा कर सकेंगे. विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चों के यौन शोषण या ब्लैकमेल के मामलों की सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि पुलिस तब तक हरकत में नहीं आती जब तक पीड़ित रिपोर्ट दर्ज न करे. लेकिन शर्म और डर के मारे बच्चे ऐसे मामले लेकर कभी सामने नहीं आते. संयुक्त राष्ट्र के एक अध्ययन के मुताबिक किसी भी वक्त कंप्यूटर पर बच्चों को अपना शिकार बनाने वाले लगभग साढ़े सात लाख लोग सक्रिय रहते हैं. बच्चों को शिकार बनाने के कई तरीके होते हैं.

मिसाल के तौर पर इंटरनेट पर बच्चे से संपर्क साधना और उस पर नियंत्रण कायम कर उसे अपनी यौन कुंठा पूरी करने के लिए इस्तेमाल करना. कई लोग अपने वेबकैम के सामने बच्चों की काम क्रीड़ा देख कर आनंदित होते हैं, तो कुछ लोग उनको कहीं मिलने के लिए बुलाते हैं और वहां उसे अपनी यौन कुंठा का शिकार बनाते हैं. तमाम कानूनों के बावजूद नए किस्म की यह बाल प्रताड़ना तेजी से बढ़ रही है.ऐसे में अभिभावक अपने बच्चे की गतिविधियों पर नजर रख कर ही उनको गलत हाथों में फंसने से बचा सकते हैं. इसके लिए अभिभवाकों को नई तकनीकों की जानकारी जरूर होनी चाहिए. साथ ही उनको इस मुद्दे पर अपने बच्चों से लगातार बातचीत करते रहना चाहिए.

रिपोर्टः प्रभाकर, कोलकाता

संपादनः मानसी गोपालकृष्णन

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