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इंफोसिस विवाद: पाञ्चजन्य से खुद को दूर किया आरएसएस ने

६ सितम्बर २०२१

पहले 'पाञ्चजन्य' ने इंफोसिस को 'देश विरोधी' ताकतों का जरिया बताया और अब आरएसएस ने खुद को पत्रिका से ही दूर कर लिया है. दीनदयाल उपाध्याय को प्रेरणा स्रोत माने वाली पत्रिका से क्या संघ को अलग किया जा सकता है?

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Narayan Murthy Günder von Infosys
तस्वीर: DW/P.Tiwari

'पाञ्चजन्य' के अगस्त 2021 के अंक में छपे एक लेख में सरकारी वेबसाइटों को ठीक से ना चला पाने के लिए भारत की दूसरी सबसे बड़ी आईटी कंपनी इंफोसिस को देश विरोधी ताकतों का जरिया बता दिया गया.

पत्रकार चंद्र प्रकाश द्वारा लिखे गए इस लेख में कहा गया, "कहीं ऐसा तो नहीं कि कोई देशविरोधी शक्ति इंफोसिस के माध्यम से भारत के आर्थिक हितों को चोट पहुंचाने में जुटी है?" लेखक ने यह भी कहा की उनके "पास यह कहने के कोई पुख्ता साक्ष्य नहीं हैं, किंतु कंपनी के इतिहास और परिस्थितियों को देखते हुए इस आरोप में कुछ तथ्य दिखाई दे रहे हैं."

इंफोसिस पर आरोप

कंपनी की जिन गतिविधियों पर लेखक ने संदेह व्यक्त किया उनमें 'द वायर', 'ऑल्ट न्यूज' और 'स्क्रॉल' जैसी वेबसाइटों को पैसे देना शामिल है. कंपनी के मालिकों को कांग्रेसी और 'वर्तमान सत्ताधारी विचारधारा' का विरोधी बताया गया है.

साथ ही यह आरोप भी लगाया गया है कि कंपनी "अपने महत्वपूर्ण पदों पर विशेष रूप से एक विचारधारा विशेष के लोगों को बिठाती है", जिनमें "अधिकांश बंगाल के मार्क्सवादी हैं."

दो आरोप और लगाए गए हैं. पहला यह कि इंफोसिस "अराजकता' पैदा करना चाहती है, "ताकि सरकारी ठेके स्वदेशी कंपनियों को ही देने की नीति बदलनी पड़े." दूसरा, कंपनी भारतीय करदाताओं का डाटा चोरी करना चाहती है.

'पाञ्चजन्य' को हमेशा से आरएसएस के मुखपत्र के रूप में जाना जाता रहा है, इसलिए इस लेख को इंफोसिस पर संघ के ही हमले की तरह देखा गया. कंपनी के बचाव में जिन लोगों ने खुल कर बयान दिए उनमें कंपनी के पूर्व निदेशक मोहनदास पाई भी शामिल हैं.

आरएसएस और पाञ्चजन्य 

एनडीए सरकार के मुखर समर्थकों के रूप में जाने जाने वाले पाई ने ट्विट्टर पर इस लेख के लेखक को "पागल" बताया और उनकी सोच को "कॉन्सपिरेसी थियरी" बताया.

जब विवाद काफी बढ़ गया तो संघ ने एक बयान जारी कर खुद को पाञ्चजन्य से ही दूर कर लिया. आरएसएस के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने ट्वीट कर इंफोसिस की प्रशंसा भी की और कहा कि कंपनी ने देश की प्रगति में एक बुनियादी भूमिका अदा की है.

हालांकि पत्रिका के सम्पादक हितेश शंकर ने लेख का समर्थन किया और पत्रिका के संघ से संबंध के बारे में बस इतना कहा कि यह लेख इंफोसिस के बारे में है, ना की संघ के बारे में.

पाञ्चजन्य और अंग्रेजी पत्रिका 'ऑर्गनाइजर' को नई दिल्ली स्थित कंपनी भारत प्रकाशन छापती है, जिसे आरएसएस की ही प्रकाशन संस्था माना जाता है. पाञ्चजन्य के पहले संपादक पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी थे. पत्रिका आरएसएस विचारक दीनदयाल उपाध्याय को अपना प्रेरणा स्रोत मानती है.

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