ऋषि सुनक हारे, लिज ट्रस होंगी ब्रिटेन की नई प्रधानमंत्री
५ सितम्बर २०२२सोमवार को कंजरवेटिव पार्टी के नेता के लिये हुए चुनाव का नतीजा आया जिसमें ऋषि सुनक की हार और लिज ट्रस की जीत की औपचारिक घोषणा हुई. प्रधानमंत्री पद संभालने की औपचारिकता बुधवार को होगी. ट्रस को सत्तावन फीसदी वोट मिले यानी सुनक से उनका मुकाबला नजदीकी माना जा सकता हैक्योंकि 2001 के बाद ये पहला मौका है जब किसी पार्टी नेता को साठ फीसदी से कम वोट हासिल हुए हैं. इससे पहले बॉरिस जॉनसन करीब 66 और डेविड कैमरन 68 फीसदी वोटों के साथ चुनाव जीते थे.
रिवायत के मुताबिक पुराने प्रधानमंत्री 10 डाउनिंग स्ट्रीट पर अपना अंतिम बयान देने के बाद लंदन में महारानी के निवास स्थान बकिंघम पैलेस जाकर इस्तीफा सौंपते हैं. इसके तुरंत बाद नये प्रधानमंत्री से मुलाकात और सरकार बनाने की औपचारिक बातचीत होती है. फिलहाल महारानी गर्मियों की छुट्टी पर स्कॉटलैंड में हैं.महारानी की खराब सेहत को देखते हुए बोरिस जॉनसन और नई प्रधानमंत्री बुधवार को स्कॉटलैंड के बैलमोरल जाकर ये औपचारिकता पूरी करेंगे.
प्रधानमंत्री पद की रेस तब शुरू हुई जब बॉरिस जॉनसन सरकार की नींव उनके कैबिनेट मंत्रियों के इस्तीफों ने हिला दी और उन्हें पद छोडने का ऐलान करना पड़ा.
लिज ट्रस का राजनीतिक सफर
सैंतालीस साल की लिज ट्रस का पूरा नाम मैरी एलिजाबेथ ट्रस है. वे राजनीति में 1990 के दशक से सक्रिय हैं. गणित के प्रोफेसर पिता और नर्स मां की संतान ट्रस का जन्म ब्रिटेन के ऑक्सफर्ड शहर में 1975 में हुआ. उन्होने जीवन का कुछ हिस्सा ग्लासगो और लीड्स शहरों में बिताया है जहां उनकी स्कूली पढ़ाई हुई. ट्रस ने ऑक्सफर्ड विश्वविद्यालय से दर्शन, राजनीति और अर्थशास्त्र में पढ़ाई की और लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी के साथ जुड़ गईं. 1996 में उन्होंने कंजरवेटिव पार्टी का रुख किया.
ट्रस ने एकाउंटेंट के तौर पर शेल और केबल ऐंड वार्यस कंपनियों में काम किया है. अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षाओं के मद्देनजर ट्रस ने 2001 और 2005 के आम चुनाव लड़े लेकिन सांसद नहीं बन सकीं. आखिरकार डेविड कैमरन के कार्यकाल में ट्रस को पार्टी में प्राथमिकता मिली और 2010 में वो नॉरफोक से संसद पहुंची. कैमरन के कार्यकाल में ही वो साल 2014 में पर्यावरण, खाद्य और ग्रामीण मामलों की कैबिनेट मंत्री बनीं.
ट्रस ब्रिटेन के यूरोपियन यूनियन में बने रहने की समर्थक रही हैं लेकिन जनता के फैसले के बाद से वो ब्रेक्सिट के समर्थन में आ गईं. 2016 में कैमरन के इस्तीफे के बाद टेरीसा में सरकार में वो न्याय मंत्री रहीं और 2019 में बोरिस जॉनसन सरकार में उन्हें पहले वाणिज्य मंत्रालय मिला.
साल 2021 में उन्हें विदेश मंत्री और यूके-ईयू साझेदारी परिषद के अध्यक्ष का पद भी सौंपा गया और सरकार की तरफ से मथ्यस्थ भी बनाया गया. कुल मिलाकर उनके पास कैबिनेट में काम करने का कूटनीतिक और राजनीतिक अनुभव है लेकिन सवाल ये है कि क्या वो अनुभव ब्रिटेन के वर्तमान परिदृश्य में काफी साबित होगा?
चुनौतियों की लंबी फेहरिस्त
बोरिस जॉनसन की विदाई काफी मुश्किल हालात में हुईथी और नई प्रधानमंत्री के सामने भी चुनौतियों का अंबार है. साधारण शब्दों में इन्हें दो हिस्सों में रख कर देखा जा सकता है- आर्थिक और राजनीतिक. ब्रिटेन इस वक्त बेहद ऊंची मुद्रास्फीति के दौर से गुजर रहा है. गैस और बिजली के बिलों ने आम जीवन को बुरी तरह प्रभावित किया है. खाने-पीने की चीजों के बढ़ते दामों ने भी लोगों की कमर तोड़ रखी है. आम जनता और व्यवसायों को राहत पहुंचाने के लिए तुरंत प्रभावी कदम उठाना फिलहाल चुनौतियों की लिस्ट में सबसे ऊपर है.
नई प्रधानमंत्री पर बहुत ज्यादा दबाव इस बात का है कि वो ऊर्जा बिल की अधिकतम सीमा तय करके लोगों को फौरी राहत पहुंचाएं. फिलहाल गैस और बिजली के घरेलू बिल सालाना चार हजार पाउंड यानी तकरीबन चार लाख रुपए तक पहुंच चुके हैं. लिज ट्रस ने प्रधानमंत्री बनने से ठीक पहले रविवार को बीबीसी से बातचीत में कहा, "अगर मैं चुनाव जीती तो ऊर्जा बिलों पर लगाम लगाने और दीर्घावधि में आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए कदमों की घोषणा करूंगी” हालांकि उन्होंने अपनी रणनीति पर कोई भी बात साफ तौर पर सामने नहीं रखी.
प्रधानमंत्री पद की दौड़ में उनके प्रतिद्वंद्वी रहे ऋषि सुनक ने इस दिशा में एक कदम सुझाते हुए विंडफॉल टैक्स की घोषणा की थी जिसका मकसद ऊर्जा कंपनियों के मुनाफे पर एकमुश्त अधिभार लगाकर पैसा जुटाना है हालांकि लिज ट्रस इस टैक्स के खिलाफ रही हैं. चुनाव के इस पूरे दौर में उन्होंने लगातार कम टैक्स वाली अर्थव्यवस्था का अपना नारा बुलंद रखा है. नेता चुने जाने के तुरंत बाद उन्होंने यही बात दोहराई कि वो टैक्स कटौती के साथ अर्थव्यवस्था की दिक्कतों को सुलझायेंगी.
ऊर्जा की आपूर्ति और महंगाई पर लगाम
यूक्रेन-रूस युद्ध के चलते गैस की आपूर्ति में बाधाएं पैदा हुई हैं जिसके मद्देनजर आने वाली सर्दियों के लिए व्यवस्था दुरूस्त करने का काम अब करना ही होगा. इसके साथ ही अगर खाने-पीने की चीजों के दामों को काबू में लाने का सटीक प्रयास नहीं हुआ तो पिछले चालीस सालों में पहली बार 10.1 प्रतिशत का स्तर छू चुकी मुद्रास्फीति दर आम जिंदगी और दुश्वार कर देगी.
आने वाले वक्त की एक बड़ी चुनौती राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा यानी एनएचएस की आर्थिक बदहाली भी है. कोविड के दौरान एनएचस की कमजोरियां खुल कर सामने आईं और ये साफ हो गया कि नर्सों, डॉक्टरों और अस्पतालों पर बेहिसाब बोझ को कम किए बिना इस सेवा के सुचारू रूप से काम करने की उम्मीद नहीं रखी जा सकती.
इसके साथ ही ब्रेक्जिट से उपजी आर्थिक दिक्कतें नई सरकार के सामने मुंह बाए खड़ी हैं. चुनाव के दौरान सुनक और ट्रस दोनों ने ही ब्रिटेन के यूरोपियन यूनियन से अलग होने से पैदा हुए अवसरों का पूरा फायदा देने का दम भरा था लेकिन ईयू से और ज्यादा अलगाव व्यापार समेत कई क्षेत्रों में दिक्कतें पैदा कर सकता है. वह भी तब जब उत्तरी आयरलैंड का सवाल जस का तस बना हुआ है.
एक सवाल ब्रिटेन की वैश्विक साख को लौटाने का भी है. बोरिस जॉनसन सरकार के दिए ग्लोबल ब्रिटेन के नारे के बीच सच ये भी है ब्रिटेन ने अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक मदद के अपने कार्यक्रमों से हाथ खींचते हुए, गैर-जरूरी करार दी गई सहायता में कटौती की है. इसके पीछे वजह ये थी कि यूक्रेन में आपातकालीन हालात देखते हुए ब्रिटेन की तरफ से निर्धारित अंतर्राष्ट्रीय सहायता राशि अधिकतम सीमा पार हो जाने का शक था.
पार्टी को एकजुट रखने की चुनौती
राजनीतिक चुनौतियों की तरफ देखें तो नए प्रधानमंत्री के सामने कंजरवेटिव पार्टी को एकजुट करने सबसे बड़ा मसला है. एक नतीजा तो इसी बात से निकाला जा सकता है कि सत्तावन प्रतिशत मतों के साथ नेता का चुनाव हुआ है यानी चालीस फीसदी से ज्यादा सदस्यों ने उन पर भरोसा नहीं जताया है. इसके अलावा कोविड के दौरान प्रधानमंत्री कार्यालय में पार्टी की घटना पर सरकारी कमेटी की जांच जल्द होनी है. अगर कमेटी ने जॉनसन को कुसूरवार पाते हुए सजा की सिफारिश की तो इस पर भी पार्टी नेताओं की वोटिंग होगी और ये नए प्रधानमंत्री के अपनी ही पार्टी के भीतर एक विकट स्थिति पैदा कर सकता है.
कंजरवेटिव सदस्यों के देशव्यापी मतदान से पहले पार्टी सांसदों की पांच दौर की वोटिंग में लिज ट्रस हमेशा ऋषि सुनक के पीछे रही हैं यानी वो पहली पसंद नहीं थीं. अंदाजा लगाया जा सकता है कि बहुत से सांसदों को शायद उनकी नुमाइंदगी नागवार हो.
कुछ मसले जो नेपथ्य में चले गए लगते हैं लेकिन वो फिर सिर उठाएंगे उनमें स्कॉटलैंड की आजादी पर रेफरेंडम भी है. दीगर है कि सत्ता संभालते ही पूर्व प्रधानमंत्री टेरीसा मे स्कॉटलैंड गई थीं और बोरिस जॉनसन ने भी प्रधानमंत्री बनने के एक हफ्ते के अंदर ही इस मसले पर बातचीत की थी. फिलहाल स्कॉटलैंड का मुद्दा गर्म नहीं है लेकिन आगे इस दिशा में हलचल शुरू हो सकती है. इसके अलावा इंटरनेट रेग्यूलेशन और 2050 तक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को नेट जीरो स्तर पर लाने का ब्रिटेन का वायदा भी ठोस उपायों के बिना पूरा होना संभव नहीं होगा.
बेहद जटिल परिस्थितियों में देश की कमान संभाल रहीं लिज ट्रस के लिए यह पद इस वक्त वाकई कांटों का ताज है. यह उनके अनुभव, कर्मठता और राजनैतिक दृढ़ता की अग्निपरीक्षा जैसा होगा.