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एक तेंदुए की मौत का फरमान

२९ नवम्बर २०१०

रोज इतने इंसान मर रहे हैं कि तेंदुए का मरना या मारा जाना कोई खास खबर नहीं मगर जब सारा देश बाघों को बचाने की अपील कर रहा है तब खबर आई है कि सूरत के वन विभाग ने एक तेंदुए को आदमखोर घोषित कर उसकी मौत का फरमान जारी किया है.

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तस्वीर: WWF/Michael-Evers

गुजरात में सूरत जिले के माडवी वन के अधिकारियों ने इस तेंदुए को आधिकारिक रूप से आदमखोर घोषित किया है. तेंदुए पर आरोप है कि उसने पिछले दो सप्ताह में चार लोगों की जान ली है. उसकी तलाश में लगभग पाँच किलोमीटर के क्षेत्र को सील कर दिया गया है और हथियारों से लैस वन विभाग के कर्मचारी 'मौत के फरमान' को अमल में लाने के लिए उसकी तलाश कर रहे हैं.

अब तक चार लोगों को अपना शिकार बना चुके इस तेंदुए की तलाश जारी है और हो सकता है कि जब तक आप यह लेख पढ़ रहे हो तब तक उसे मारा जा चुका हो. यह भी हो सकता है कि उसके बजाए उस इलाके में रह रहे किसी और तेंदुए को भी गलतफहमी में मार दिया जाए, आखिर जानवरों के नाम-पते तो होते नहीं.

क्या यह खबर हमें 'कुछ' सोचने के लिए विवश करती है? यह महसूस करने के लिए मजबूर करती है कि प्राणियों के सिमटते अस्तित्व का यह भयानक संकट हम इंसानों की वजह से ही आ पड़ा है. हम इंसान संवेदनशीलता के स्तर पर इन मूक प्राणियों से अधिक परिपक्व माने जाते हैं. आखिर यह खबर हमारी किस संवेदनशील परिपक्वता को बयान करती है? यही कि मूक और अबोध जीवों के आवास में प्रवेश कर उन्हें खदेड़ कर अपना वर्चस्व बढ़ाते रहो और जब आत्मरक्षा या हड़बड़ाहट में वह मासूम आक्रमण कर दें तो उसे मार डालो.

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तस्वीर: AP

कहाँ मिलेगा इंसाफ?

जानवर एक भी गलती करें इंसान लामबंद होकर सीधे उसकी मौत का फरमान जारी कर देता है.ले‍किन इंसान जब जानवरों के विरूद्ध गलती, अत्याचार से आगे बढ़कर अपराध करें तो जानवर किस न्यायालय में जाकर शरण ले. भारत में तेंदुओं के इंसानों पर हमला करने या आवासीय क्षेत्रों में घुस आने की घटनाएं बहुत आम हैं. हाल ही में खबर मिली थी कि किसी गाँव में एक तेंदुए ने जंगल के किनारे चर रहे मवेशियों पर हमला किया था जिसके बाद ग्रामीणों ने वन विभाग और स्थानीय पुलिस की सहायता से तेंदुए को उस क्षेत्र से आतंकित कर बाहर निकाल दिया.

हालांकि उसे मारा नहीं गया, पर यह एक खतरनाक संदेश है, क्योंकि आशंकित और आतंकित जानवर ज्यादा खतरनाक होता है.शिकार न मिलने और अपने जाने-पहचाने क्षेत्र से निकाले जाने पर वन्यपशु अत्यधिक डर जाते है और आत्मरक्षा के लिए आक्रामक हो उठते हैं. इस वजह से जब भी इंसानों से तेंदुए की मुठभेड़ होती है, तेंदुआ हमला करता है और 'कमजोर इंसान' अपनी जान से हाथ धो बैठता है. हाँ हम इंसानों की 'समझदारी' देखिए कि हम जिन जीवों को बचाने के लिए करोड़ों रुपयों की मुहिम चला रहे हैं, उन्हीं के लिए शांति से जीना भी दूभर कर देते हैं और जब वह अपनी रक्षा के लिए आगे बढ़ता है तो उसे मौत की सौगात भी हम ही देते है. यह तथ्य इंसानों की 'दादागिरी' से आगे बढ़कर सरासर बदसलूकी के दायरे में आता है.

जानवर एक भी गलती करें इंसान लामबंद होकर सीधे उसकी मौत का फरमान जारी कर देता है. ले‍किन इंसान जब जानवरों के विरूद्ध गलती, अत्याचार से आगे बढ़कर अपराध करें तो जानवर किस न्यायालय में जाकर शरण ले. कहाँ गुहार लगाए अपने खत्म होते वजूद के लिए? जहाँ भी जाएगा वहाँ हर तरफ उसे तो इंसान ही मिलेंगे. ईश्वर ने उसे तो जुबान से भी नहीं नवाजा है कि अपने पर आए किसी संकट को वह अभिव्यक्त कर सके. ऐसे में स्वयं को बचाने के लिए उसका आक्रमण ही इतना बड़ा गुनाह हो जाता है कि हम एकजुट होकर उसे मार डालने पर ही उतारू हो जाते हैं. जो कुछ तेंदुए ने किया वह दुर्भाग्यपूर्ण और अनापेक्षित है लेकिन क्या उसकी मौत ही एकमात्र समाधान है या फिर उनके संरक्षण का कोई रास्ता निकल सकता है? जब एक समझदार इंसान किसी की हत्या कर, पेरोल पर छूट सकता है तो इन मूक प्राणियों को मारने के बजाए जिंदा नहीं पकड़ा जा सकता?

इन घटनाओं के पीछे आखिर कौन जिम्मेदार है? वह बेजुबान तेंदुआ, जिसके इलाके में इंसान अतिक्रमण कर उसकी इजाजत, सुरक्षा़ सुविधा को सोचे बिना घुस आए. वह निरीह तेंदुआ, जो अपने आप को और अपनी शरणस्थली को बचाने के लिए 'सर्वशक्तिमान' इंसान से भिड़ गया, या वह घबराया-सहमा तेंदुआ, जो खत्म होते जंगलों में आहार न मिल पाने की वजह से इंसान को ही शिकार बना बैठा. भूख से बिलबिलाते हुए वह भूल गया कि इंसान 'शिकार' कैसे हो सकता है उसे तो 'शिकारी' होने का जन्मजात हक मिला है. भला, जंगलों के भाग्य-विधाता (या भक्षक) इंसान के बनिस्बत तेंदुए की जान की कीमत क्या है?

आदिमकाल से प्रकृति से जूझती और अक्सर जीतती मानव प्रजाति ने इस ग्रह पर अपना एकाधिकार स्थापित कर लिया है. अपना अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष करने का अधिकार हर प्राणी को है. पर संगठित और विकसित मानव प्रजाति ने खुद को सर्वोपरि मानते हुए कुछ नियम-कायदे बना लिए है. जिसका उल्लंघन करने वाले के लिए 'सजा' हर हाल में जरूरी है. चाहे फिर जिन्हें वह 'बचाने' के नारे लगाए उसी को 'खत्म' करने जैसा कदम ही क्यों ना हो.

'सेव टाइगर' के मार्मिक विज्ञापनों में 'नन्हे शावक' को देखकर भावुक होने वाले इंसान भी हम ही हैं और उसकी मौत के लिए हथियार उठाकर उसे दुनिया से उठाते इंसान भी हम ही. है ना अजूबा??

रिपोर्टः संदीप सिसोदिया (सौ. वेबदुनिया)

संपादनः एन रंजन

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