संतरे के छिलके से टीशर्ट
२१ अक्टूबर २०१३डुसेलडॉर्फ में रबर और प्लास्टिक का वार्षिक ट्रेड फेयर के2013 शुरू हुआ है. बायर मटेरियल साइंसेस के मानफ्रेड रिंक फोम क्यूब दिखाते हुए कहते हैं कि यह क्यूब खास है. इसका 20 फीसदी हिस्सा भूरे कोयले वाले ऊर्जा संयंत्र से निकले कार्बन डाय ऑक्साइड से बना है. रिंक ने डॉयचे वेले को बताया, "सीओ2 का सी केमिस्टों के लिए काफी रोचक है."
तेल में कार्बन अहम तत्व होता है, और इसलिए प्लास्टिक बनाने के लिए मुख्य तत्व. प्लास्टिक अभी तक कच्चे तेल से बनता रहा है. वैज्ञानिकों ने कार्बन डाय ऑक्साइड से कार्बन निकालने की तरकीब ढूंढी है. रिंक के मुताबिक, "पिछले कुछ साल में हम अपने सपने के बहुत करीब पहुंचे हैं. आखेन की तकनीकी यूनिवर्सिटी के साथ हम शुरुआती शोध में काफी आगे पहुंच गए हैं."
ऊर्जा बचाने वाले एंजाइम
रिंक और यूनिवर्सिटी में उनके साथियों के लिए सबसे बड़ी शुरुआती चुनौती यही थी कि सीओ2 को कैसे तोड़ा जाए कि उसमें अतिरिक्त ऊर्जा की जरूरत नहीं हो. कम ऊर्जा के इस्तेमाल और पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाने के लिए ऊर्जा की बचत संभव हुई एंजाइम या प्रोटीन से. ये एंजाइम कुछ बैक्टीरिया में मिलते हैं. सिर्फ 30 या 40 डिग्री सेल्सियस पर ये उत्प्रेरक का काम करने लगते हैं. इतना तापमान औद्योगिक प्रक्रिया से पैदा हो जाता है, इसे प्रोसेस हीट कहते हैं.
इस ग्रुप का शोध इतना आगे बढ़ गया है कि आने वाले कुछ ही साल में वे इस तरीके से बने हुए फोम बाजार में ले आएंगे. रिंक बताते हैं, "हमारा उद्देश्य है, 2015 से प्लास्टिक उत्पादों की बहुत सारी किस्में बनाना, जिसका कार्बन सीओ2 से लिया हुआ हो."
एक आदमी का कचरा
फ्राउनहोफर संस्थान में इंटरफेशियल इंजीनियरिंग और बायोटेकनॉलोजी विभाग के शोधकर्ता टोबियास गैर्टनर ने ऐसा ही तरीका अपनाया है. वे कोशिश कर रहे हैं कि अलग अलग तरह के कचरे से प्लास्टिक बनाया जा सके. इसमें एक पदार्थ है लिगनिन, जो लकड़ी के प्रोसेसिंग में बनता है. गैर्टनर ने डीडबल्यू को बताया, "हम बायोटेक्नॉलोजी और रासायनिक उत्प्रेरक से लेगनिन को छोटे छोटे टुकड़ों में तोड़ देते हैं."
ऐसा करने से उन्हें मोनोमर मॉलिक्यूल मिलते हैं, जिन्हें पोलिमर में बदला जाता है या फिर हाइड्रोकार्बन्स की लंबी चेन में, जो कि प्लास्टिक का मूल हिस्सा है. गैर्टनर के कच्चे माल में संतरे के छिलके, या फिर पेड़ में मिलने वाला हाइड्रोकार्बन टेरपीन शामिल है. वह बताते हैं, "प्रकृति ने हमें ये मॉलिक्यूल दिए हैं, तय स्ट्रक्चर को फिल्टर किया जा सकता है. यूरोप में हर साल यह हजारों टन बनते हैं."
केंकड़े पालने के दौरान बना कचरा भी फायदेमंद साबित हो सकता है. गैर्टनर कहते हैं कि केंकड़े के कवच को भी प्लास्टिक बनाने में इस्तेमाल किया जा सकता है, "केंकड़े के कवच में चिटिन होता है, एक ऑर्गेनिक पोलिमर जिसे निकाला जा सकता है. खुले में पड़े ये कवच परेशानी हैं क्योंकि जब ये सड़ते हैं तो इनसे जहरीली गैसें निकलती हैं."
ब्रेड का इस्तेमाल
आज ऑर्गेनिक प्लास्टिक को भी उतने ही अलग अलग तरीके से इस्तेमाल किया जा सकता है जैसे परंपरागत प्लास्टिक को. उनसे कपड़े भी बनाए जा सकते हैं. पोट्सडाम के फ्राउनहोफर संस्थान के अप्लाइड पोलिमर रिसर्च विभाग में शोध कर रहे राइनर रीम ने फेंके जा सकने वाले रेजर, पोलो शर्ट और बेसबॉल कैप बनाए हैं. ये सभी मक्के या गन्ने से मिलने वाले पोलीलेक्टिक एसिड से बने हैं. इंजीनियर रीम ने बताया, "आप इससे कार के हिस्से या दीवार भी बना सकते हैं. मेडिकल एप्लीकेशन भी संभव है, एक ऐसा स्क्रू जो शरीर में घुल जाए. एक पदार्थ जो शरीर में रहे और फिर विघटित हो जाए."
ब्रेड में भी लेक्टिक एसिड होता है, जिसके कारण पुरानी ब्रेड का इस्तेमाल किया जा सकता है. रीम बताते हैं, "पोट्सडाम में एक संस्थान है जिसका आदर्श वाक्य है, ब्रेड से ब्रेड के लिए. पुरानी ब्रेड से आप लेक्टिक ऐसिड निकाल लें और इससे पोलिलेक्टिक एसिड बना लें. फिर इससे ब्रेड भरने के लिए थैलियां बनाई जा सकती हैं.
फाइबर की मजबूती
एजेंसी फॉर रिन्यूएबल रॉ मैटेरियल में काम करने वाली गाब्रिएले पीटरेक कहती हैं कि जैविक पदार्थों से प्लास्टिक बनाने के और भी आसान तरीके हैं. जैसे कि पोलीप्रॉपलीन, तेल से बनने वाला प्लास्टिक इसका सबसे अच्छा उदाहरण है. वे बताती हैं कि इसे और प्राकृतिक बनाने के लिए लकड़ी से बने फाइबर यानी सेल्यूलोज का इस्तेमाल किया जा सकता है.
चाहे वह गाड़ी का अंदरूनी हिस्सा हो या गैस टैंक को बंद करने के लिए बनाई गई कैप हो, इनमें 20 फीसदी लकड़ी वाले फाइबर इस्तेमाल हो सकते हैं. संभावनाएं बहुत हैं. फायदा यह है कि सेल्यूलोज के कारण प्लास्टिक में मजबूती आती है.
आज कारों के लिए बनाए जाने वाले हाईस्पीड टायरों में सेमी सिंथेटिक फाइबर, रेयॉन विस्कोस का इस्तेमाल होता है. ये पदार्थ लकड़ी के बुरादे से मिलता है. इस तरह के फाइबर प्राकृतिक रेशे या कार्बन फाइबर से भी ज्यादा टिकते हैं.
रिपोर्टः फाबियान श्मिट/आभा मोंढे
संपादनः महेश झा