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कांग्रेस और डीएमके ने एक दूसरे को मनाया

८ मार्च २०११

तमिलनाडु विधान सभा के चुनाव में सीटों के बंटवारे को लेकर कांग्रेस और डीएमके के बीच मतभेद दूर हो गए हैं. इसके चलते डीएमके ने यूपीए सरकार से अलग होने की धमकी दी थी और सरकार के लिए संकट पैदा हो गया था.

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तस्वीर: UNI

डीएमके के नेता दयानिधि मारन और एमके अड़ागिरी ने संकट की गुत्थियों को सुलझाने के लिए वरिष्ठ कांग्रेसी नेता व वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी से बात की थी. बातचीत के बाद डीएमके के नेताओं ने पत्रकारों को बताया कि सरकार का संकट अब दूर हो गया है.

तमिलनाडु में कांग्रेस के प्रभारी गुलाम नबी आजाद ने पत्रकारों को बताया कि दोनों पार्टियों के नेता सीटों के बंटवारे पर सहमत हो चुके हैं. यह जीत हासिल करने वाला एक मोर्चा होगा.

लोकसभा में डीएमके के 18 सदस्य हैं व उनके समर्थन से मनमोहन सिंह की सरकार के पास एक सदस्य का बहुमत है. समर्थन वापस लेने से यह अल्पमत सरकार बन जाती व उसे दूसरी पार्टियों के अस्थाई समर्थन पर भरोसा करना पड़ता.

वैसे डीएमके की ओर से कहा गया था कि मंत्रियों की वापसी के बाद भी वह सरकार को सशर्त समर्थन देता रहेगा. सीटों के बंटवारे के किस फार्मुले के आधार पर दोनों पार्टियों का मतभेद दूर हुआ है, यह अभी पता नहीं चला है.

प्रेक्षकों के अनुसार संकट का कारण सिर्फ सीटों का बंटवारा नहीं था. 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले के बाद डीएमके के मंत्री ए राजा के इस्तीफे के बाद से ही दोनों दलों के संबंध काफी कटु हो चुके थे. ए राजा इस समय इसी मामले में तिहाड़ जेल में हैं.

माना जाता है कि यूपीए व कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी के हस्तक्षेप से यह संकट निपटाया जा सका है. दोनों पक्षों की बातचीत शुरू करवाने में भी उनकी एक प्रमुख भूमिका थी.

रिपोर्ट: एजेंसियां/उभ

संपादन: एस गौड़

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