काले धन की जानकारी नहीं देगा भारत
२५ जनवरी २०११प्रणब मुखर्जी ने इन आशंकाओं को खारिज कर दिया कि वह खाताधारकों के नाम इसलिए नहीं सार्वजनिक कर रहे हैं क्योंकि इससे सरकार गिरने का खतरा पैदा हो जाएगा. दिल्ली में एक प्रेस कांफ्रेंस में प्रणब मुखर्जी ने बताया, "पहले इस मुद्दे को ध्यान से समझना चाहिए. जब तक कानूनी रूप रेखा तय न हो तब तक ऐसी जानकारी को सार्वजनिक नहीं किया जा सकता है. कोई भी संप्रभु देश कानूनी सरंचना के अभाव में जानकारी को नहीं बांटेगा."
ग्लोबल फिनेंशियल इंटीग्रिटी संस्था के मुताबिक साल 2000 से 2008 के बीच भारत से बाहर जाने वाला काला धन लगभग 104 अरब डॉलर (4.8 लाख करोड़ रुपये) है. सरकार को लिष्टेनश्टाइन के बैंकों में खाता रखने वाले कुछ भारतीयों के नाम मिले हैं लेकिन सरकार उन्हें सार्वजनिक नहीं कर रही हैं.
इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट भी सरकार को झिड़क चुकी है कि यह टैक्स चोरी का नहीं बल्कि देश की संपत्ति की लूट खसोट का मामला है. विपक्ष भी इसे मुद्दा बनाए हैं और सरकार पर जानकारी सार्वजनिक करने का दबाव बढ़ रहा है.
सरकार का पक्ष रखने के लिए ही प्रणब मुखर्जी मंगलवार को सामने आए और उन्होंने कहा कि डबल टैक्सेशन समझौता और एक्सचेंज ऑफ टैक्सेशन इन्फोर्मेशन एग्रीमेंट ही वो रास्ते हैं जिसके तहत अन्य देशों से जानकारी हासिल की जा सकती है.
सरकार ने 23 देशों के साथ समझौता किया है ताकि बैंकों से खाताधारकों की जानकारी हासिल की जा सके. "लेकिन दिक्कत यह है कि जो जानकारी हम हासिल करेंगे वह गोपनीयता की शर्तों के दायरे में आती है. आज अगर हम लोगों के नाम सार्वजनिक करते हैं तो फिर हमें जानकारी मिलनी बंद हो जाएंगी. हम पर अंतरराष्ट्रीय समझौतों का पालन न करने का आरोप लगेगा."
हालांकि प्रणब मुखर्जी ने जनता को आश्वस्त करने की कोशिश की है कि काले धन को वापस लाने का एक तरीका है.
"एक रास्ता है. अगर इनकम टैक्स विभाग टैक्स चोरों के खिलाफ केस दर्ज करने में कामयाब होती है तो फिर लोगों को उनके नाम पता चल जाएंगे. मेरे पास भी अधिकार नहीं है कि मुझे पता चल सके कि किसने काला धन बैंकों में छिपा कर रखा है. आयकर अधिकारियों के पास कानूनी ताकत है जिसके तहत वह काम करते हैं लेकिन मंत्रालय के अधिकार क्षेत्र में यह नहीं आता."
रिपोर्ट: एजेंसियां/एस गौड़
संपादन: आभा एम