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७ सितम्बर २०१०फ्लोरिडा के गेन्सविल्ले में डोव वर्ल्ड आउटरीच सेंटर नामक इस प्रोटेस्टेंट समुदाय को इस इलाके में भी बहुत से लोग नहीं जानते हैं. लेकिन 11 सितंबर की बरसी पर अपने गिरजे के अहाते में कुरान की प्रतियां जलाने की घोषणा के साथ वह अचानक सुर्खियों में आ गया है. अमेरिका के ईसाई, यहूदी व मुस्लिम संगठन चिंतित हैं. उन्होंने मीडिया से अपील की है कि वे इस मामले को महत्व न दें. इस बीच इंडोनेशिया में इस योजना के खिलाफ अमेरिकी दूतावास के सामने प्रदर्शन हो चुका है. अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना के जनरल डेविड पेट्रेयस ने चिंता जताते हुए कहा है कि इससे अमेरिकी सैनिकों की जान खतरे में पड़ सकती है.
ऐसे ग्रुपों के निशाने पर खुद राष्ट्रपति ओबामा भी हैं. अमेरिका के बहुत से लोगों को विश्वास है कि वे मुसलमान हैं. एक विरोधी ने एक बड़ा सा कार्टून तैयार किया है, जिसमें लबादा पहने हाथ में कुरान लिए हुए इमाम ओबामा को दिखाया गया है. इसकी वजह यह है कि राष्ट्रपति का मानना है कि न्यूयार्क के ग्राउंड जीरो के पास अन्य धर्मों के पूजास्थलों के साथ एक इस्लामी सेंटर बनाया जा सकता है.
एक सर्वेक्षण से पता चला है कि अधिकतर लोग धार्मिक स्वतंत्रता की संवैधानिक गारंटी के समर्थक हैं. लेकिन साथ ही यह भी पता चला है कि न्यूयार्क के 71 फीसदी लोगों का मानना है कि इस्लामी सेंटर ग्राउंड जीरो के पास नहीं, बल्कि कहीं और बनाया जाना चाहिए. सारे देश में 61 फीसदी लोग इसके निर्माण के खिलाफ हैं, जबकि 26 फीसदी उसके समर्थन में हैं. इसी सर्वेक्षण से यह भी पता चला है कि 55 फीसदी लोगों को इस पर कोई एतराज नहीं होगा, अगर उनके पड़ोस में कोई मस्जिद हो, लेकिन 34 फीसदी इसके खिलाफ हैं.
इस्लाम के मामले पर अमेरिका एक बंटा हुआ देश है.
रिपोर्ट: एजेंसियां/उभ
संपादन: महेश झा