कुवैत में लाखों प्रवासी भारतीयों पर संकट
६ जुलाई २०२०कुवैत में एक नए विचाराधीन कानून को लेकर देश में रहने वाले लगभग 10 लाख भारतीय नागरिक चिंता में हैं. कुवैत की सरकार अब देश में काम करने वाले विदेशी नागरिकों की संख्या कम करना चाह रही है, जिसके लिए एक कानून का मसौदा तैयार किया गया है.
हालांकि इस कानून का असर कुवैत में काम करने वाले सभी देशों के नागरिकों पर होगा, लेकिन इसका सबसे बड़ा असर भारतीय नागरिकों पर होगा क्योंकि कुवैती प्रवासियों में सबसे बड़ी संख्या भारतीयों की ही है. कुवैत में 10 लाख से भी ज्यादा भारतीय नागरिक रहते हैं और काम करते हैं. अगर यह कानून पारित हो गया तो संभावना है कि तीन से चार लाख प्रवासी भारतीयों को देश छोड़ना पड़ सकता है.
कुवैत की समस्या
धीरे धीरे बड़ी संख्या में प्रवासियों को अपनी तरफ आकर्षित करते करते कुवैत एक प्रवासी-बहुल देश बन गया है. देश की कुल 48 लाख आबादी में सिर्फ 30 प्रतिशत कुवैती और 70 प्रतिशत प्रवासी हैं. लेकिन आर्थिक चुनौतियों की वजह से अब वहां प्रवासी-विरोधी भावनाएं गहरा रही हैं, जिसकी वजह से सरकार को इस समस्या पर ध्यान देना पड़ा. सरकार ने लक्ष्य बनाया है कि आबादी में प्रवासियों की संख्या को 70 प्रतिशत से कम कर के 30 प्रतिशत पर लाना है.
मीडिया में आई खबरों के अनुसार प्रस्तावित कानून में देश की आबादी में प्रवासी भारतीयों की संख्या घटा कर आबादी का 15 प्रतिशत करने की बात की गई है. अगर यह कानून लागू हो गया तो सिर्फ लगभग सात लाख प्रवासी भारतीयों को ही कुवैत में रहने की अनुमति मिल पाएगी और कम से कम तीन से चार लाख भारतीयों को कुवैत छोड़ना पड़ेगा. स्थानीय मीडिया में कहा जा रहा है कि करीब आठ लाख भारतीयों को देश छोड़ना पड़ सकता है. इस कानून को अभी तक कुवैती संसद की दो महत्वपूर्ण समितियों से स्वीकृति मिल चुकी है और एक और समिति से स्वीकृति मिलना बाकी है.
बिगड़ते रिश्ते?
जानकार इसे भारत के लिए एक गंभीर चिंता का विषय मान रहे हैं. लाखों भारतीय कुवैत में काम तो करते ही हैं, वे हर साल भारत में अपनी परिवारों के लिए पैसे भी भेजते हैं, जो भारत की ही अर्थव्यवस्था के काम आता है. एक अनुमान के अनुसार 2018 में कुवैत से भारत वापस भेजी हुई यही रकम 4 अरब 80 करोड़ रूपये के आस पास थी. मध्य-एशिया के मामलों के जानकार डॉक्टर जाकिर हुसैन कहते हैं कि सिर्फ पैसों की बात नहीं है बल्कि लोगों की आजीविका और दोनों देशों के बीच रिश्तों का सवाल है.
हुसैन कहते हैं कि 90 के दशक में भी इसी तरह कुवैत से प्रवासियों को निकाला गया था लेकिन उस समय कई दूसरे देशों के नागरिकों को निकाल कर भारतीयों को उनका स्थान दिया गया था. हुसैन का मानना है कि इसमें खाड़ी के देशों की बदलती राजनीति की भी झलक है. वो कहते हैं कि जहां बीते कुछ सालों में खाड़ी के देशों के साथ भारत के संबंध काफी मजबूत हो गए थे, वहीं अब उन रिश्तों में गिरावट देखने को मिल रही है, नहीं तो क्या वजह है कि भारत-चीन सीमा पर चीनी सेना की कार्रवाई के खिलाफ अभी तक खाड़ी के किसी भी देश ने भारत के साथ एकजुटता नहीं जताई?
जानकारों का मानना है कि अभी भी अगर भारत कूटनीतिक स्तर पर कुवैत सरकार से बात करे तो लाखों भारतीयों पर आने वाला संकट टल सकता है. लेकिन भारत सरकार ने इस विषय पर अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है.
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