कैसे बनीं दुनिया की सबसे तेज सड़कें
६ अगस्त २०१२सन 1900 आते आते कार उद्योग रफ्तार पकड़ चुका था. इसी दौरान जर्मनी के मोटर प्रेमी, रईस और प्रभावशाली नागरिकों ने एक समूह सा बना लिया. यह समूह सरकार पर बिना रोक टोक वाली सड़कें बनाने का दबाव डालने लगे. उनका कहना था कि सड़कें बिना धूल धक्कड़, बिना घोड़ागाड़ी और बिना पदयात्रियों वाली होनी चाहिए. वे सिर्फ गा़ड़ियों के लिए होनी चाहिए.
1913 में काम शुरू भी हुआ. बर्लिन के बाहरी इलाके में 'ऑटोमोबाइल ट्रैफिक एंड प्रैक्टिस रोड' नाम से योजना शुरू हुई. 17 किमी सड़क बनाने की योजना थी लेकिन बन पाई सिर्फ 10 किलोमीटर. पहले विश्वयुद्ध की वजह से निर्माण रोकना पड़ा. 1921 के बाद इस सड़क को तेज रफ्तार स्पोर्ट्स कारों को टेस्ट करने के लिए इस्तेमाल किया जाने लगा. यहां मोटर रेस होने लगीं.
1926 में जर्मन शहर हैम्बर्ग को स्विटरलैंड के बाजेल शहर से तेज रफ्तार सड़क के मार्फत जोड़ने की मांग उठी. सड़क का प्रस्तावित नाम 'हैफ्राबा' था, यानि हैम्बर्ग, फ्रैंकफर्ट, बाजेल. लेकिन यह योजना लटकती रही. नाजियों ने शुरू में यह मांग ठुकरा दी. लेकिन 1933 में हिटलर के सत्ता में आते ही ये योजना नए नाम से शुरू कर दी गई.
कई तस्वीरों में अडोल्फ हिटलर को ऑटोबान योजना का उद्घाटन करते दिखाने की कोशिश की गई है. यह नाजियों की विचारधारा को फैलाने के इरादे से खींची गई तस्वीरें थीं. द्वितीय विश्वयुद्ध से पहले ये तस्वीरे पूरे जर्मनी में फैलीं.
तब तक ऑटोबान का बहुत छोटा सा हिस्सा ही बना था. लेकिन तस्वीरों से ऐसे लगा जैसे हिटलर के नेतृत्व में युद्धस्तर पर ऑटोबान बनाए जा रहे हैं. जब कभी अन्य जगहों पर ऑटोबान बनता तो उसका व्यापक प्रचार किया जाता.
कुछ इतिहासकार मानते हैं कि चौड़ी सड़कें हिटलर के सत्ता में आने से पहले ही बनने लगी थी. हिटलर की पार्टी नेशनल सोशलिस्ट जर्मन वर्कर्स ने तो कम्युनिस्ट पार्टी के साथ मिलकर ऐसी सड़कों का विरोध किया. उन्होंने कहा कि ये सड़कें सिर्फ कारों के लिए है. नाजियों ने आरोप लगाया कि इन सड़कों से "सिर्फ राजसी और बड़े पूंजीपति यहूदियों को ही फायदा होगा."
पहला ऑटोबान
सरकारी पैसे से चौड़ी सड़कें बनाने के प्रस्ताव से नाजी दूर रहे. लेकिन 1929 की विश्वव्यापी मंदी ने हाइवे का काम चौपट कर दिया. पहले विश्वयुद्ध के घावों, मंदी और बेरोजगारी की वजह से जर्मनी की हालत खस्ता थी. लेकिन इन मुश्किलों के बीच जर्मन शहर कोलोन के मेयर कोनराड आडेनाउअर ने बढ़िया सड़क बनवाने का काम नहीं छोड़ा.
उन्होंने बॉन और कोलोन के बीच 20 किलोमीटर लंबा पहला फ्री ऑटोबान बनवाया. A555 नाम का यह ऑटोबान छह अगस्त 1932 में तैयार हुआ. तब इस पर गतिसीमा 120 किलोमीटर प्रतिघंटा थी. लेकिन उस जमाने की कारें अधिकतम 60 की स्पीड पर दौड़ पाती थीं. कहा जाता है कि कोलोन इलाके में उस वक्त जर्मनी का सबसे ज्यादा ट्रैफिक था.
इसके बाद नाजी सत्ता में आए. नाजियों ने आते ही A555 से ऑटोबान का दर्जा छीन लिया. उन्होंने इसे 'कंट्री रोड' करार दिया. इतिहासकार मानते हैं कि नाजी यह बर्दाश्त नहीं कर सके कि अच्छे काम के लिए किसी और की वाहवाही हो. नाजी चाहते थे कि देश में पहला ऑटोबान बनाने का श्रेय उन्हें मिले.
सड़क से सियासत
इतिहासकारों के मुताबिक उस वक्त दुनिया भर में परिवहन पर खासा ध्यान दिया जा रहा था. हिटलर को भी यह बात समझ में आ गई. वह समझ गया कि अगर पूरे देश को मोह में बांधकर अपनी सत्ता बनाए रखनी है तो ऑटोबान बनाने होंगे. जिस ऑटोबान की हिटलर और नाजी पार्टी मजाक उड़ाया करती थी, वही ऑटोबान अब उनके लिए सत्ता की चाबी की तरह हो गया.
उस वक्त बहुत ही कम जर्मन कार खरीदने की हैसियत रखते थे. लेकिन इसके बावजूद नाजियों ने वादा किया कि वह परिवहन की सुविधाएं बेहतर कर देंगे. नाजियों ने जनता को समझा दिया कि ऑटोबान सिर्फ रईसों के लिए नहीं, सब के लिए है. यहीं से फोल्क्सवागन कार कंपनी का विचार निकला. जर्मन भाषा में फोल्क्सवागन का मतलब है जनता की कार.
हिटलर परिवहन के महत्व को बड़ी बारीकी से समझ चुका था. उसने जर्मनी में सरकारी रेल कंपनी भी खड़ी कर दी. हिटलर का लक्ष्य हर साल 1,000 किलोमीटर ऑटोबान बनाना था. इसके लिए हिटलर ने सख्त निर्देश दिये थे. 1934 में हिटलर ने कहा कि आगे 'काम का युद्ध' है. उसने बेरोजगारी में कमी लाने का वादा किया. माना जाता है कि ऑटोबान के निर्माण ने छह लाख नौकरियां पैदा की. यह सच है कि जब निर्माण चरम पर था उस वक्त ऑटोबान बनाने में 12 लाख से ज्यादा लोग जुटे थे. इस दौरान अमानवीय बर्बरता भी हुई. कई कामगार भूख, बीमारी और दुर्दशा से मर गए. हड़ताल होने पर हड़तालियों के नेताओं को यातना शिविर में भेज दिया जाता. जनता को इस बारे में कभी भनक भी नहीं लगने दी गई.
युद्ध के दौरान कैदियों और यहूदियों को ऑटोबान के निर्माण के काम में लगाया गया. आम तौर पर ऑटोबान बनाने वाले लड़ाई लड़ रहे थे. 1941 तक 3,800 किलोमीटर ऑटोबान पूरा हो चुका था. लेकिन यह प्रस्तावित योजना का आधा था. 1941 से 1942 तक द्वितीय विश्वयुद्ध की वजह से काम पूरा बंद रहा. 1943 में तो ऑटोबान का ट्रैफिक इतना कम हो गया कि इसे साइकल सवारों के लिए भी खोल दिया गया.
कोनराड आडेनाउअर का ऑटोबान का सपना द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद ज्यादा हकीकत में बदला. युद्ध खत्म होने के बाद पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी में लगातार ऑटोबान लंबे होते चले गए. अब जर्मनी में 12,800 किलोमीटर लंबा ऑटोबान है. यह दुनिया का पांचवा सबसे बड़ा हाइवे नेटवर्क है.
रिपोर्ट: डब्ल्यू डिक, ए लिश्टेनबर्ग/ओ सिंह
संपादन: मानसी गोपालकृष्णन