कोरोना काल में क्यों बढ़ी भारत में गरीबों की तादाद
४ जून २०२१साल 2020-21 के GDP आंकड़ों के मुताबिक भारत की अर्थव्यवस्था 7.3 फीसदी सिकुड़ गई है. हालांकि देश में इसे राहत की बात बताया जा रहा है क्योंकि केंद्रीय सांख्यिकी संगठन एनएसओ ने साल 2021 में अर्थव्यवस्था के 8 फीसदी सिकुड़ने का अनुमान लगाया था लेकिन विश्व बैंक के चीफ इकॉनमिस्ट रहे कौशिक बसु इसे राहत की बात नहीं मानते.
सरकार की नीतिगत असफलता की ओर इशारा करते हुए वे लिखते हैं, "साल 2020-21 के GDP ग्रोथ के आंकड़े के साथ भारत 194 देशों की रैंकिंग में 142वें नंबर पर आ गया है, जो कभी दुनिया के सबसे तेजी से बढ़ते देशों में एक था. जो ऐसा कह रहे हैं कि कोविड के चलते सभी देशों के साथ ऐसा हुआ है, उन्हें मैं सलाह दूंगा कि वे जाएं और फिर से अपनी स्कूली किताबों में रैंकिंग का मतलब पढ़ें."
बेरोजगारी और गरीबी चरम पर
साल 2021 में सिर्फ कृषि और बिजली को छोड़कर बाकी सभी सेक्टर कोरोना महामारी और लॉकडाउन से बुरी तरह प्रभावित हुए. व्यापार, निर्माण, खनन और विनिर्माण सेक्टर में भारी गिरावट दर्ज की गई. भारत में असंगठित क्षेत्र के 40 करोड़ कामगारों में से ज्यादातर इन्हीं सेक्टर में काम करते है. इन सेक्टर में आई बड़ी गिरावट के चलते बड़ी संख्या में ये कामगार बेरोजगार हुए. CMIE के आंकड़ों के मुताबिक अब भी देश में बेरोजगारी दर फिलहाल 11% से ज्यादा है.
कमाई न होने के चलते ये या तो गरीबी के मुंह में चले गए हैं या जाने वाले हैं. Pew के एक रिसर्च के मुताबिक महामारी के दौरान दुनिया भर में गरीबी के स्तर पर चले गए लोगों में 60 प्रतिशत लोग भारतीय हैं. भारत में मिडिल क्लास में आने वाले लोगों की संख्या में 3.2 करोड़ की गिरावट आई है और गरीब लोगों की संख्या में 7.5 करोड़ की बढ़ोतरी हुई है. ऐसा तब हुआ, जबकि वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की 2020 की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में किसी गरीब परिवार को मिडिल क्लास में आने में 7 पीढ़ियों का समय लग जाता है.
सरकार का चुनावी लाभ पर ध्यान
जवाहरलाल नेहरू विश्विविद्यालय के प्रोफेसर और अर्थशास्त्री संतोष मेहरोत्रा कहते हैं, "अक्टूबर से ही जो अर्थव्यवस्था की रिकवरी का शोर मचाया गया, वो सिर्फ रिबाउंड था यानि अर्थव्यवस्था को हुए नुकसान की भरपाई हो रही थी. रिकवरी का मतलब होता है, अर्थव्यवस्था का फिर से ग्रोथ पा लेना. अब भी सरकार V-शेप रिकवरी की बात कह रही है. जबकि यह साफ है कि यह K-शेप रिकवरी होगी. यानी अर्थव्यवस्था के कुछ हिस्से तो फिर से अपनी गति पा लेंगे लेकिन कुछ हिस्से लगातार बर्बाद होते जाएंगे. यही वजह है कि लॉकडाउन में जो विनिर्माण इकाइयां बहुत घाटे में गईं, वे बंद हो गईं और वहां काम करने वाले रोजगार से हाथ धो बैठे."
मेहरोत्रा इसके लिए केंद्र में शासन कर रही बीजेपी को जिम्मेदार ठहराते हैं. उनके मुताबिक, "फिलहाल सरकार के हर फैसले में राजनीति शामिल है. केंद्र की ओर से समाज के सबसे कमजोर वर्ग के लिए शुरू की गई उज्ज्वला, पीएम आवास, पीएम किसान जैसी योजनाओं का मकसद चुनावी फायदा कमाना है. इनमें लाभार्थी को सीधा लाभ देकर सरकार चुनावी फायदा ले लेती है और उनके शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के मूलभूत ढांचे पर खर्च करने से बच जाती है. गांवों में फैली कोरोना की दूसरी लहर ने यह सच्चाई उजागर कर दी."
वैक्सीन और आर्थिक मदद प्राथमिकता
कोरोना के चलते बेरोजगार होने वाले लोगों के लिए क्या किया जाना चाहिए, इस सवाल पर अर्थशास्त्री विवेक कौल कहते हैं, "फिलहाल युद्धस्तर पर वैक्सीनेशन का प्रबंध करना भारत सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए. इसी के जरिए लोगों के अंदर बैठे कोरोना के डर को खत्म कर उन्हें काम पर वापस लाने और मांग बढ़ाने में मदद मिलेगी." इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च के मुताबिक भारत में 18 से ज्यादा उम्र की कुल जनसंख्या का वैक्सीनेशन करने में सरकार पर करीब 670 अरब रुपये का खर्च आएगा. यह रकम कुल जीडीपी की मात्र 0.36 फीसदी है.
विवेक कौल कहते हैं, "कोविड की दूसरी लहर से करोड़ों लोग प्रभावित हुए हैं. ज्यादातर की जमा पूंजी का बड़ा हिस्सा खर्च हो गया है. कई परिवार कर्ज में भी डूब गए हैं. ऐसे में जिस तरह पिछले साल महिलाओं के जनधन खातों में लगातार तीन महीने तक 1500 रुपये डाले गए थे, इस बार सभी जनधन खातों में रुपये डाले जाने चाहिए. इससे उन लोगों को बुरी तरह गरीबी के चक्र में फंसने से बचया जा सकेगा, जिनकी नौकरियां गई हैं. यह रकम पर्याप्त तो नहीं होगी लेकिन थोड़ी आर्थिक मदद भी, कुछ न मिलने से अच्छी है. इसके अलावा मनरेगा के अंतर्गत भी कामगारों को बढ़ाने पर जोर दिया जाना चाहिए."