युवाओं को कुशल बनाने में क्यों पिछड़ रहा है भारत
९ अप्रैल २०२१भारत दुनिया में सबसे ज्यादा कार्यबल वाले देशों में से एक है. देश में कामकाजी उम्र वाले लोगों की संख्या 50 करोड़ से अधिक है. घरेलू श्रम बाजार के मामले में भारत चीन के बाद दूसरे स्थान पर है. साथ ही अमेरिका और यूरोपीय संघ की तुलना में भारत का घरेलू श्रम बाजार बहुत बड़ा है.
भारत की आबादी की औसत उम्र 26.8 है. दूसरे शब्दों में कहें तो भारत युवाओं का देश है. हर साल देश के कॉलेजों से करोड़ों बच्चे स्नातक करके कार्यबल में शामिल हो जाते हैं. इसके बावजूद जब युवाओं को रोजगार देने के लिए जरूरी कौशल उपलब्ध कराने की बात आती है, तो भारत अपने जैसे कई देशों से पीछे रह जाता है.
फरवरी में जारी एक अध्ययन के अनुसार भारत के आधे से भी कम स्नातक रोजगार पाने के योग्य थे. इंडिया स्किल रिपोर्ट 2021 से पता चलता है कि करीब 45.9% युवाओं को रोजगार योग्य माना जाएगा. 2020 में यह संख्या 46.2% और 2019 में 47.4% थी.
भारत में बेरोजगारी दर 2020 में सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गई. इसके लिए कई कारक जिम्मेदार थे. इनमें कोरोना वायरस महामारी की वजह से लगे लॉकडाउन को भी जिम्मेदार माना गया है.
कुशल कार्यबल की मुख्य बधाएं
नई दिल्ली स्थित इंस्टीट्यूट फॉर ह्यूमन डेवलपमेंट में प्रोफेसर और अर्थशास्त्री सारथी आचार्य कहते हैं कि भारतीय स्नातकों में कौशल की कमी के कई कारण हैं. उन्होंने डॉयचे वेले से बात करते हुए कहा, "मुख्य समस्याओं में से एक ब्रेन ड्रेन है. सबसे अच्छे तरीके से प्रशिक्षित लोग हमारे देश में नहीं रहते हैं. वे विदेश चले जाते हैं." उन्होंने कहा कि भारत जैसे विकासशील देशों के कुशल श्रमिक बड़े पैमाने पर विदेश जाते हैं.
यह समस्या तकनीक से जुड़े क्षेत्रों में ज्यादा है. उदाहरण के लिए, नेशनल एम्पलॉयबिलिटी रिपोर्ट फॉर इंजीनियरिंग की 2019 की रिपोर्ट के मुताबिक लगभग 80% भारतीय इंजीनियरों के पास नौकरी देने वालों की जरूरतों को पूरा करने के लिए आवश्यक कौशल नहीं था. आचार्य कहते हैं, "हमारे देश में काफी संख्या में ऐसे इंजीनियरिंग कॉलेज हैं जहां कुछ भी नहीं पढ़ाया जाता. इन कॉलेजों का संचालन राजनेता करते हैं. इक्का-दुक्का निजी इंजीनियरिंग कॉलेज को छोड़ दें, तो ज्यादातर की हालत काफी दयनीय है."
आचार्य कहते हैं कि समस्या का एक हिस्सा यह भी है कि तकनीकी क्षेत्र से जुड़े लोगों को काम के बदले पर्याप्त पैसा भी नहीं दिया जाता है. उन्होंने टॉप बिजनेस स्कूल से स्नातक करने वाले लोगों के वेतनमान का संदर्भ देते हुए कहा, "भारत एकमात्र ऐसा देश है जहां मैंने देखा कि स्नातक करने के तुरंत बाद इंजीनियरिंग का छात्र, मार्केटिंग या प्रबंधन के क्षेत्र में अपना करियर बनाने के लिए एमबीए करने चला जाता है."
आचार्य आगे कहते हैं, "अधिकांश जगहों पर संगठनात्मक संरचना ऐसी है कि गैर-तकनीकी क्षेत्रों के लोगों को बेहतर वेतन दिया जाता है. इनमें मार्केटिंग मैनेजर, सेल्स मैनेजर या ह्यूमन रिसोर्स प्रोफेशनल हैं, जिन्हें निर्माण क्षेत्र से जुड़े इंजीनियरों से ज्यादा पैसा मिलता है."
अर्थव्यवस्था और समाज के लिए गंभीर लागत
भारत की अर्थव्यवस्था और समाज पर कुशल श्रम शक्ति की कमी का गंभीर असर होता है. आचार्य कहते हैं, "बेरोजगारी अधिक है. देश में असमानता बढ़ रही है. यह संकट गांव और शहर दोनों जगहों पर है. माइग्रेशन भी बढ़ रहा है, जमीन जायदाद की कीमतें गिर गई हैं, खर्च बढ़ रहा है और मजदूरी स्थिर है. और ये हालात पिछले कुछ समय से ऐसे ही बने हुए हैं. हमारे पास अच्छे इंजीनियरों और डॉक्टरों की कमी है. हमारे पास डिग्री धारक बहुत हो सकते हैं लेकिन गुणवत्ता की कमी है."
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2015 में स्किल इंडिया की शुरुआत की थी. इस कार्यक्रम का उद्देश्य, 2022 तक 40 करोड़ से अधिक लोगों को प्रशिक्षित करना था. हालांकि कार्यक्रम के प्रभाव और नतीजे पर पिछले कुछ वर्षों में कई विशेषज्ञों ने सवाल उठाए हैं.
जनवरी में जारी की गई वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की रिपोर्ट से पता चला है कि कौशल को बढ़ावा देने के लिए निवेश करने से 2030 तक वैश्विक अर्थव्यवस्था में 6.5 ट्रिलियन डॉलर और भारत की अर्थव्यवस्था में 570 बिलियन डॉलर की बढ़ोतरी हो सकती है. रिपोर्ट के मुताबिक कौशल को बढ़ावा देने से भारत रोजगार देने वाला दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश बन सकता है. इससे भारत में 2030 तक 23 लाख अतिरिक्त लोगों को नौकरियां मिल सकती हैं. वहीं, अमेरिका में 27 लाख नई नौकरियां पैदा हो सकती हैं.
इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन डिसेंट वर्क टेक्निकल सपोर्ट टीम फॉर साउथ एशिया की डायरेक्टर डैगमर वॉल्टर ने डॉयचे वेले को बताया, "कौशल की कमी से जुड़ी चुनौतियों को पूरा करने के लिए भारत को अपने कार्यबल के लिए एक ऐसा इकोसिस्टम बनाने पर विचार करना चाहिए जिसमें पूरी जिंदगी सीखने की गुंजाइश बनी रहे. सीखने की प्रक्रिया को आर्थिक, राजकोषीय, सामाजिक और श्रम बाजार की नीतियों और कार्यक्रमों का अभिन्न हिस्सा बना देना चाहिए. सभी व्यक्तियों को अपना कौशल बेहतर करने का अवसर मिलना चाहिए ताकि वे दुनिया में हो रहे विकास और काम करने के तरीकों में हो रहे बदलाव के साथ तालमेल बना पाएं."
वॉल्टर यह भी कहती हैं कि कौशल और भविष्य की जरूरतों के बीच जो अंतर है उसकी पहचान भी होनी चाहिए, "एक ऐसा नेशनल क्वॉलिफिकेशन फ्रेमवर्क बनाने का सुझाव दिया जाता है जिससे व्यावसायिक प्रशिक्षण और औपचारिक शिक्षा को एक दूसरे से जोड़ा जा सके. कौशल की पहचान करने, मौजूदा कार्यबल को प्रशिक्षण देने और आने वाले समय की जरूरतों को ध्यान में रखकर कौशल विकास कार्यक्रम को तैयार करने से कौशल की कमी से जुड़ी चनौतियों से निपटा जा सकता है."