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क्या कांग्रेस का गांधी परिवार के इतर भी भविष्य है?

चारु कार्तिकेय
२१ अगस्त २०२०

प्रियंका गांधी वाड्रा ने एक साक्षात्कार में कहा है कि कांग्रेस पार्टी का अगला अध्यक्ष नेहरू-गांधी परिवार से नहीं होना चाहिए. उनकी टिप्पणी से एक बार फिर यह सवाल खड़ा हो गया है कि क्या वाकई ऐसा मुमकिन है?

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Indien Priyanka Gandhi Vadra beim Wahlkampf in Varanasi
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Deep

कांग्रेस पार्टी की महासचिव ने यह बात एक किताब के लेखकों को दिए साक्षात्कार में कही. प्रदीप छिब्बड़ और हर्ष शाह द्वारा लिखित किताब "इंडिया टुमॉरो: कॉनवर्सेशन्स विद द नेक्स्ट जनरेशन ऑफ पॉलिटिकल लीडर्स" 13 अगस्त को छपी. लेखकों को दिए साक्षात्कार में प्रियंका ने कहा कि यही बात उनके भाई और पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी कही है और वो इस बात का समर्थन करती हैं.

ये कोई नया विचार नहीं है, लेकिन यह बयान दे कर पार्टी को नेहरू-गांधी परिवार के बाहर अपना नेतृत्व तलाशने की सलाह देने वाली खुद उसी परिवार की वो दूसरी सदस्य बन गई हैं, और इस वजह से इस मुद्दे पर देश में फिर से चर्चा शुरू हो गई है. 2019 में लोक सभा चुनावों में हारने के बाद राहुल ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था और पार्टी को नया अध्यक्ष चुनने को कहा था. बताया जाता है कि उन्होंने पार्टी के अंदर कहा था कि अगला अध्यक्ष नेहरू-गांधी परिवार से नहीं होना चाहिए.

उसके बाद कई दिनों तक ऐसी अटकलें भी लगीं कि वाकई इस बार पार्टी अध्यक्ष परिवार से बाहर का कोई व्यक्ति होगा. कई नाम भी चर्चा में आए, लेकिन अंत में ऐसा कुछ हुआ नहीं और राहुल और प्रियंका की मां और पूर्व पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को ही अगले अध्यक्ष के चुने जाने तक अंतरिम अध्यक्ष बना दिया गया.

Indien Politiker Rahul Gandhi
2019 में लोक सभा चुनावों में हारने के बाद राहुल ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था और पार्टी को नया अध्यक्ष चुनने को कहा था.तस्वीर: Ians

कांग्रेस अध्यक्षों का इतिहास

यूं तो आजादी के पहले और उसके बाद भी कांग्रेस पार्टी के कई अध्यक्ष नेहरू-गांधी परिवार से बाहर के रहे हैं. आजादी के तुरंत बाद जे बी कृपलानी, पी सीतारमैया, पुरुषोत्तम दास टंडन, यू एन धेबार और बाद के दशकों में नीलम संजीव रेड्डी, के कामराज, एस निजलिंगप्पा, जगजीवन राम, शंकर दयाल शर्मा, देवकांत बरुआ, के ब्रह्मानंद रेड्डी, पी वी नरसिम्हा राव और सीताराम केसरी के नाम इस सूची में शामिल हैं.

लेकिन जवाहरलाल नेहरू, उनकी बेटी इंदिरा गांधी, उनके बेटे राजीव गांधी, उनकी पत्नी सोनिया गांधी और फिर उनके बेटे राहुल गांधी के बीच पार्टी की अध्यक्षता सबसे ज्यादा समय तक नेहरू-गांधी परिवार में ही रही. अकेले सोनिया गांधी ही 19 वर्षों तक उस पद पर रहीं और सबसे लंबे कार्यकाल वाली कांग्रेस अध्यक्ष बनीं.

नेहरू 17 साल तक प्रधानमंत्री रहने के बावजूद आजादी के बाद पार्टी अध्यक्ष सिर्फ तीन साल रहे, लेकिन इंदिरा गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष के ही प्रधानमंत्री भी होने की परिपाटी स्थापित की. इसे राजीव ने भी आगे बढ़ाया और नरसिम्हा राव ने भी. सीताराम केसरी की अध्यक्षता में कांग्रेस कभी सत्ता में नहीं आई, इसलिए उन्हें ये मौका भी नहीं मिला. 2009 में मनमोहन सिंह के रूप में पार्टी ने कई दशकों बाद कांग्रेस अध्यक्ष और प्रधानमंत्री पदों पर अलग अलग व्यक्तियों को नियुक्त किया.

Deutschland | Indischer Premierminister  Narasimha Rao in Bonn 1991
पी वी नरसिम्हा राव. यूं तो आजादी के पहले और उसके बाद भी कांग्रेस पार्टी के कई अध्यक्ष नेहरू-गांधी परिवार से बाहर के रहे हैं, लेकिन पार्टी की अध्यक्षता सबसे ज्यादा समय तक नेहरू-गांधी परिवार में ही रही.तस्वीर: imago images/Sepp Spiegl

लेकिन बीते 22 सालों से पार्टी की अध्यक्षता नेहरू-गांधी परिवार के ही पास है, जिसकी वजह से यह माना जाने लगा है कि अब पार्टी परिवार के ही इर्द-गिर्द घूमती है और परिवार के बिना शायद ही पार्टी का कोई वजूद हो.

नेहरू-गांधी परिवार से इतर

साक्षात्कार में दिए गए प्रियंका के बयान के बाद इस सवाल पर फिर से चर्चा शुरू हो गई है कि क्या नेहरू-गांधी परिवार के बाहर से भी कोई कांग्रेस का अध्यक्ष बन सकता है. हालांकि साक्षात्कार पर पार्टी की प्रक्रिया देख कर ऐसा लगता है कि पार्टी खुद इसके लिए तैयार नहीं है. कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने एक बयान जारी कर कहा कि प्रियंका की टिप्पणी एक साल पुरानी है और आज के हालात में पार्टी चाहती है कि राहुल ही फिर से पार्टी की बागडोर संभालें.

जानकारों का कहना है कि पार्टी लगातार दो लोक सभा चुनाव हारने के बाद संकट से गुजर रही है और ऐसे में नए नेतृत्व पर विचार होना ही चाहिए, लेकिन ऐसा होने की संभावना कम ही नजर आती है. वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश ने डीडब्ल्यू को बताया कि कांग्रेस में नेहरू-गांधी परिवार के बाहर पार्टी की कमान संभालने की काबिलियत रखने वाले लोग तो बिलकुल हैं, लेकिन पार्टी ही उनका नेतृत्व स्वीकार करेगी या नहीं इस पर संदेह है.

वो कहते हैं कि चूंकि कांग्रेस अब कोई विचारधारा वाली पार्टी नहीं रह गई है बल्कि परिवार-केंद्रित पार्टी बन गई है, ऐसे में यह तभी हो पाएगा जब ऐसे किसी व्यक्ति को अध्यक्ष पद के लिए नेहरू-गांधी परिवार की तरफ से पूरा समर्थन और पूरी स्वायत्तता मिले. यानी पार्टी का ढांचा ही अब कुछ ऐसा हो गया है कि परिवार के बाहर किसी को सत्ता सौंपनी है या नहीं इस निर्णय के केंद्र में भी परिवार ही रहेगा.

वरिष्ठ पत्रकार संजय कपूर कहते हैं कि जब भी पार्टी इस विचार को गले लगाने के लिए करीब होती है तब नरसिम्हा राव और सीताराम केसरी जैसे पूर्व अध्यक्षों का बाद में पार्टी में हुआ हश्र याद आ जाता है और फिर यह धारणा ऊपर आ जाती है कि नेहरू-गांधी परिवार ही पार्टी को एकजुट रख सकता है. लेकिन संजय कहते हैं कि पार्टी के लिए परिवार की भूमिका अब सिमट गई है, क्योंकि परिवार के सदस्यों के अब ना तो पहले की तरह जनता के बीच चमत्कारी लोकप्रियता है, ना वो वोट ही ला पा रहे हैं और ना ही पार्टी के लिए धन जुटा पा रहे हैं.

Indien Politikerin Sonia Gandhi
अकेले सोनिया गांधी ही 19 वर्षों तक कांग्रेस अध्यक्ष-पद पर रहीं और सबसे लंबे कार्यकाल वाली अध्यक्ष बनीं.तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/A. Qadri

नेतृत्व में बदलाव पर इतनी चर्चा इसलिए भी हो रही है कि पार्टी इस समय कई तरह के संकटों से गुजर रही है. सिर्फ लोक सभा चुनाव ही नहीं, पार्टी पिछले छह सालों में कई विधान सभा चुनाव भी हारी है और कई राज्यों में सत्ता को गंवा चुकी है. इसकी वजह से राज्य सभा में भी पार्टी की संख्या घटती जा रही है. पार्टी के अंदर कलह भी बढ़ रही है और नेता पार्टी छोड़ कर भी जा रहे हैं. ऐसे में पार्टी को एक मजबूत नेतृत्व की जरूरत हो सकती है.

संजय कहते हैं कि नेहरू-गांधी परिवार इस हालत के लिए जिम्मेदार है और अब उसे ये निर्णय ले लेना चाहिए कि अगर पार्टी की सत्ता उसे अपने पास ही रखनी है तो वो मजबूती से उसे संभाल ले और अगर ऐसा नहीं है तो रास्ते से हट जाए.

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