युद्धक्षेत्रों को जंगी हथियार नहीं बेचता है जर्मनी?
९ फ़रवरी २०२२पश्चिमी देशों की खुफिया सेवाओं के मुताबिक रूस ने यूक्रेन से लगती सीमा पर करीब 1,00,000 सैनिकों को तैनात कर रखा है. यूक्रेन और पश्चिमी देशों के नजरिए से इस तैनाती ने सैन्य कार्रवाई का जोखिम पैदा किया है और यही कारण है कि कई देश यूक्रेन को हथियार और दूसरे उपकरणों की सप्लाई कर रहे हैं. जर्मनी ने अब तक 5,000 हेलमेट भेजे हैं.
यूक्रेन की सरकार का कहना है कि इस तरह के बचाव के उपकरण पर्याप्त नहीं हैं. पिछले शुक्रवार यूक्रेन ने आधिकारिक रूप से जर्मन सरकार से अनुरोध किया कि वह हथियार और गोला बारूद भेजे. हालांकि जर्मनी ने उसकी यह मांग ठुकरा दी.
जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्त्स और विदेश मंत्री अनालेना बेयरबॉक, दोनों ने इसके पीछे जर्मन सरकार के संघर्ष के इलाके में हथियार ना भेजने के राजनीतिक सिद्धांत का हवाला दिया है. सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी, ग्रीन पार्टी और फ्री डेमोक्रैटिक पार्टी की गठबंधन सरकार के लिए जो समझौता हुआ है उसमें कहा गया है, "अपवाद को मंजूरी सिर्फ उचित और स्वतंत्र मामलों में दी जा सकती हैं, जिसका पारदर्शी तरीके से लिखित दस्तावेज सार्वजनिक किया जा सके."
हथियारों की सप्लाई पर जर्मनी का रुख
सोशल मीडिया पर कुछ नाराजगी भरी प्रतिक्रियाओं ने ध्यान दिलाया है कि जर्मनी में इससे पहले अपवाद के कुछ मामले हुए हैं. यूक्रेन से एक डीडब्ल्यू यूजर ने पिछले हफ्ते फेसबुक पर लिखा, "जर्मनों से सऊदी अरब, मिस्र, तुर्की और संयुक्त अरब अमीरात को भेजे हथियारों के बारे में पूछिए." एक और यूजर ने लिखा है, "जर्मन हथियार युद्ध और हथियारबंद संघर्षों में धरती पर हर जगह इस्तेमाल हुए हैं, यहां तक कि इस्लामिक स्टेट के हाथों में भी."
लेकिन इस बात में कितनी सच्चाई है?
जर्मन चांसलर शॉल्त्स ने जर्मनी के सरकारी टीवी चैनलर एआरडी से रविवार को कहा, "जर्मन सरकार ने कई सालों से यह स्पष्ट रुख अपना रखा है कि हम संघर्ष वाले इलाकों में हथियार नहीं भेजते हैं और हम यूक्रेन को घातक हथियार नहीं भेजेंगे."
डीडब्ल्यू फैक्ट चेक
विदेश मामलों की जर्मन परिषद यानी डीजीएपी के रक्षा विशेषज्ञ क्रिस्टियान मोएलिंग ने डीडब्ल्यू से कहा, "निश्चित रूप से हमने पहले (हथियार) भेजे हैं लेकिन हमेशा अलग अलग परिस्थितियों के आधार पर. इसका मतलब है कि जर्मनी में हर मामले को अलग रूप में देखने का सिद्धांत है. हम हर मामले को स्वतंत्र रूप से देखते हैं."
स्टॉकहोम इंस्टीट्यूट फॉर पीस रिसर्च (सीपरी) के पेटर वेजेमन ने भी डीडब्ल्यू से इस बात की पुष्टि की है कि जर्मनी ने संघर्ष वाले इलाकों में हाल के कुछ वर्षों के दौरान हथियार भेजे हैं. वेजेमन का कहना है, "जाहिर है इसमें कोई सच्चाई नहीं कि जर्मनी ने संघर्ष वाले देशों को हथियार नहीं भेजे हैं. ऐसे बहुत से उदाहरण हैं जहां हम देख सकते हैं कि खासतौर से जर्मन हथियारों का निर्यात हुआ, निश्चित रूप से इसके लिए जर्मन सरकार से समझौता हुआ या किसी खास मदद के तहत या फिर महज जर्मन सरकार की तरफ से."
यमन की जंग में जर्मन हथियार
उदाहरण के लिए मिस्र 2010 से ही जर्मन हथियारों का सबसे बड़ा खरीदार रहा है. सीपरी के आंकड़ों से यह जानकारी मिलती है. जर्मनी के आर्थिक और जलवायु मंत्रालय से मिले आंकड़ों के मुताबिक 1 जनवरी 2021 से 14 दिसंबर 2021 के बीच ही मिस्र के लिए करीब 4.34 अरब यूरो के निर्यात की अनुमति दी गई.
इनमें से ज्यादातर मंजूरी पिछली जर्मन सरकार में चांसलर अंगेला मैर्केल के आखिरी दिनों के दौरान दी गई हालांकि सच्चाई यह है कि मिस्र की सेना यमन और लीबिया के संघर्ष में शामिल है और बड़े पैमाने पर मानवाधिकारों के उल्लंघन के लिए उसकी आलोचना होती रही है.
वेजेमन का कहन है कि संभव है कि मिस्र भी जर्मन हथियारों का इस्तेमाल यमन और लीबिया में कर रहा होगा. वेजेमन ने कहा, "जर्मनी ने मिस्र को जो सप्लाई दी है उसे दो हिस्से में बांटा जा सकता है. इनमें से एक है एयर डिफेंस सिस्टम. जहां तक मैं देख सकता हूं इसका यमन की जंग से कम ही लेना देना है."
हालांकि जो दूसरे सामान हैं जैसे कि जंगी जहाज से वहां समस्या हो सकती है. वेजेमन का कहना है, "जिस तरह की जंग हमने यमन में पहले देखी है उसमें फ्रिगेट निश्चित रूप से भूमिका निभा सकते हैं, इसका एक जरूरी हिस्सा रहा है नौसैनिक घेराबंदी." इसके साथ ही वेजेमन ने यह भी कहा कि बड़े स्तर पर इस तरह के हथियारों की सप्लाई से मिस्र की सैन्य सरकार को वैधानिकता और मजबूती भी मिल रही है.
सऊदी अरब को मिले जर्मन हथियार
कई दूसरे देश जो यमन के सघर्ष में 2015 से ही शामिल हैं उन्हें भी जर्मनी से हथियार मिले हैं. इनमें सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, कुवैत और कतर शामिल हैं. जर्मन सरकार की साल 2020 की हथियार निर्यात रिपोर्ट के मुताबिक कतर को तोप, राइफल, शॉटगन और हॉवित्जर के गोलाबारूद के हिस्सों के निर्यात को मंजूरी दी गई थी. जर्मनी के वॉर वेपंस कंट्रोल एक्ट के मुताबिक ये सब युद्ध के हथियारों की सूची में शामिल हैं. 2020 में ही जर्मन सरकार ने कतर को 15 गेपार्ड एंटी एयरक्राफ्ट टैंक भेजे थे.
2019 में खोजी परियोजना #GermanArms ने यह साबित किया कि जर्मन हथियार यमन की जंग में अहम भूमिका निभा रहे हैं. वेजेमन ने बताया कि जर्मन सरकार को मानना पड़ा था कि हथियारों की सप्लाई की कुछ मंजूरियों में गलती हुई थी. वेजेमन का कहना है, "या कम से कम, जब इन हथियारों की सप्लाई दी गई तब यह साफ हो चुका था कि इनमें जोखिम बहुत ज्यादा हो सकता है और फिर हथियारों की सप्लाई रोकी गई. खासतौर से सऊदी अरब के मामले में तो यही हुआ था, उदाहरण के लिए जहां गश्ती बोटों के लिए एक बड़ा सौदा हुआ था."
2018 में सऊदी सरकार के आलोचक पत्रकार जमाल खशोगी की इस्तांबुल में सऊदी अरब के वाणिज्य दूतावास में हत्या के बाद, सऊदी अरब को हथियारों के निर्यात की सारी मंजूरियां स्थगित कर दी गईं और फिर बाद में उन्हें रद्द कर दिया गया. उसके बाद से ही जर्मनी ने सऊदी अरब को हथियारों के निर्यात पर रोक लगा दी है, जिसे कई बार आगे बढ़ाया जा चुका है.
हालांकि इस रोक के भी कुछ अपवाद हैं. जर्मन हथियार बनाने वाले कंपनियों को सऊदी अरब के संयुक्त रक्षा परियोजनाओं के लिए हथियारों के हिस्से की सप्लाई को मंजूरी दी गयी है. उदाहरण के लिए नाटो के सहयोगी देशों के साथ लड़ाकू विमान बनाने की परियोजना में.
तुर्की के साथ मुश्किल साझेदारी
नाटो का सहयोगी देश तुर्की भी जर्मन हथियारों का एक बहुत विवादित खरीदार है. डीजीएपी के विशेषज्ञ क्रिस्टियान मोएलिंग कहते हैं कि यह देश हाल के दशकों में बहुत बदल गया है, इसके बाद से जर्मन हथियारों की सप्लाई गलत साबित हुई है. हालांकि उनकी दलील है, "सरकार का यह अधिकार है कि उसके आकलन गलत साबित हों क्योंकि आखिरकार यह महज आकलन हैं."
जर्मनी ने तुर्की को कई सालों तक सैन्य हथियार दिए हैं. इनकी कीमत करोड़ों यूरो में है. मानवाधिकारों के उल्लंघन के लिए उनकी आलोचना होती है. संयुक्त राष्ट्र तुर्की को उन देशों में गिनता है जो हथियारों की सप्लाई के जरिए लीबिया की जंग में दखल दे रहे हैं. कई दशकों से तुर्क सरकार तुर्की और आसपास के देशों में कुर्दिश वर्कर्स पार्टी के खिलाफ भी सैन्य कार्रवाई कर रही है.
2018 में जब उत्तरी सीरिया में तुर्की ने कुर्द वाईपीजी मिलिशिया के खिलाफ सैन्य अभियान शुरू किया तो हालात बहुत ज्यादा बिगड़ गए. उस समय मीडिया में यह सवाल पूछा गया कि क्या, "जर्मन एंटी टैंक मिसाइल अब जर्मन टैंकों को ही निशाना बना रहे हैं?" यह सवाल इस वजह से था क्योंकि 2014 में कुर्द पेशमर्गा का उत्तरी इराक में "इस्लामिक स्टेट" के खिलाफ जंग में जर्मनी सहयोग कर रहा था.
उन्हें ना सिर्फ हेलमेट, रक्षा जैकेट और रेडियो सेट बल्कि असॉल्ट राइफल, मशीनगन, पिस्टल, बजूका एंटी टैंक वीपंस और ग्रेनेड भी दिए गए थे. जर्मन सरकार के आंकड़ों में इनकी कीमत नौ करोड़ डॉलर बताई जाती है. क्षेत्रीय कुर्द सरकार ने उस समय यह वचन दिया था कि इन हथियारों का इस्तेमाल केवल इस्लामिक स्टेट के खिलाफ करेगी." हालांकि इन दावों की कभी निगरानी नहीं की गई. 2016 में जर्मन सांसद आग्निएस्त्सका ब्रुगर के एक सवाल के जवाब में जर्मन सरकार ने कहा था कि वह इस बात से इनकार नहीं कर सकती कि जर्मन हथियार ब्लैक मार्केट में पहुंच गए हों जैसे कि उत्तरी इराक में.
डीडब्ल्यू ने जिन विशेषज्ञों से बात की है उनके मुताबिक हथियार कहां हैं इस पर नजर रखने के लिए बनाए गए तथाकथित सप्लाई के बाद नियंत्रण के जो उपाय हैं, वो भी इस जोखिम को नहीं मिटा सकते कि हथियार ऐसे संघर्षों में इस्तेमाल हों, जिनके लिए उन्हें नहीं भेजा गया है.
सच्चाई यह है कि फिलहाल हथियारों के निर्यात के लिए ऐसा कोई कानूनी ढांचा नहीं है जिसे जर्मन सरकार बदलना चाहती है. ग्रीन पार्टी के विदेश नीति प्रवक्ता युएर्गन ट्रिटिन का कहना है कि आर्थिक मामलों के मंत्रालय ने शुरुआती विचार के लिए इस मामले में एक कानून का प्रस्ताव दिया है. ट्रिटिन का कहना है इसका मकसद, "हथियार निर्यात के सिद्धांतों को गैरबाध्यकारी से बाध्यकारी बनाना है."
नतीजा: जर्मनी संघर्ष के क्षेत्रों में हथियार की सप्लाई नहीं करने के सिद्धांत से हमेशा बंधा नहीं रहा है. कई बार जर्मन सरकार ने ऐसे देशों को हथियारों की सप्लाई की मंजूरी दी है, जो संघर्ष में शामिल रहे हैं या फिर जहां संघर्ष रहा है.