खुद से संघर्ष करता यमन
२२ जनवरी २०१३2013 की शुरुआत में यमन की राजधानी सना में पुलिस और सुरक्षाकर्मियों ने सड़कों पर चैकिंग शुरू की. रजिस्टर न हुई मोटरसाइकिलें और हथियार जप्त किए गए. अकसर सना में हमलों और लूट पाट के लिए इनका इस्तेमाल खूब होता रहा. यमन में जर्मनी की फ्रीडरिष-एबर्ट-फाउंडेशन के प्रमुख टिम पेट्शूलात का कहना है कि यह "बहुत ही अच्छा संकेत है". पेट्शूलात ने यह भी कहा कि "इस तरह की चैकिंग से सना के मेयर कानून को फिर से स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं". सना के मेयर को देश के नए राष्ट्रपति आबद राब्बो मंसूर हादी ने नियुक्त किया है.
नई शुरूआत
2011 में यमन में तत्कालीन राष्ट्रपति अली अब्दुल्लाह सालेह के खिलाफ विरोध शुरू हुआ. महीनों तक प्रदर्शन हुए और नवंबर 2011 में ही सालेह ने सत्ता को छोड़ने के फैसले को स्वीकार किया. सालेह 30 साल तक यमन के राष्ट्रपति रहे. खाड़ी के देशों ने नेतृत्व परिवर्तन में मध्यस्थता की. 22 जनवरी 2012 को सालेह ने इस्तीफा दिया और तत्कालीन उप राष्ट्रपति हादी को सत्ता सौंप दी. फरवरी 2012 में चुनाव हुए, जिनमें हादी को औपचारिक तौर पर देश का नया राष्ट्रपति घोषित किया गया. हादी को एक ऐसी समिती को तैयार करने की जिम्मेदारी दी गई, जो एक नया संविधान बनाए और चुनावों की तैयारी करे.
सालेह के प्रशंसकों से मिली अड़चनें
यमन विशेषज्ञ टिम पेट्शूला के मुताबिक खाड़ी के देशों की यह पहल "बहुत बड़ी सफलता थी". देश उसके जरिए गृह युद्ध से बच गया. पेट्शूलात का कहना है कि "अप्रैल 2011 में यमन डूबने की कगार पर था." लेकिन बदलाव आसान नहीं है. पूर्व राष्ट्रपति सालेह आज भी सबसे प्रमुख पार्टी के अध्यक्ष हैं, जिसे संसद में बहुमत मिला है. आज भी उनके प्रशंसकों के हाथ में महत्वपूर्ण पद हैं, उदाहरण के लिए सेना और दूसरे सुरक्षा से जुड़ी संस्थानों में. यमन के वरिष्ट पत्रकार मुहम्मद अल कैधी का कहना है कि "सालेह का अब भी बहुत बड़ा प्रभाव है."
नए राष्ट्रपति हादी फिर भी इस लिहाज से सफल रहे कि उन्होंने सालेह के रिश्तेदारों और दोस्तों को कुछ महत्वपूर्ण पदों से हटा दिया, इसके लिए बाहर का दबाव भी जरूरी था. यमन विशेषज्ञ टिम पेट्शूलात कहते हैं कि "अन्य देशों के कूटनीतिज्ञों ने चेतावनी दी थी कि वह विदेश में उन लोगों के खातों तो बंद कर देंगे. आज भी इस वर्ग के पास विदेश में बड़ी मात्रा में पैसा है."
समय बहुत कम
लेकिन अलग अलग वर्गों के बीच विरोध की वजह से यमन में सालेह के इस्तीफे के एक साल बाद भी बदलाव बहुत ही धीमा दिख रहा है. 2012 के अंत तक राष्ट्रीय संवाद शुरू होना था. पेट्शूलात का मानना है कि "फरवरी या मार्च तक ही यह हो पाएगा. समय बहुत ही कम है. दक्षिण अफ्रीका में ऐसे ही बदलाव को सालों लगे थे. यमन के लिए यह कुछ ही महीने फिर कैसे पर्याप्त हो सकता है." देश के लिए एक नया संविधान और चुनाव कानून बनाना चुनौती है और मूल व अहम सवालों पर चर्चा भी होनी है.
एक और समस्या दक्षिणी यमन के साथ जुड़ी हुई है. लंबे समय तक यह स्वतंत्र गणराज्य रहा. लेकिन 1990 के दशक में उत्तरी यमन ने उस पर कब्जा कर लिया. इसीलिए आज तक दक्षिणी यमन के ज्यादातर लोग आजाद होने की इच्छा रखते हैं. पत्रकार अल कैधी का मानना है कि "यह यमन की सबसे बड़ी चुनौती है. यदि किसी तरह का समझौता न हो उदाहरण के तौर पर एक संघीय योजना, तब भविष्य मुश्किल लग रहा है."
आर्थिक और समाजिक मुश्किलें भी
दरअसल यमन के सामने कई दूसरी चुनौतियां भी हैं. अरब जगत में यमन को सबसे गरीब देशों में गिना जाता है. संयुक्त राष्ट्र की मानवीय मामलों के लिए बनाई गई संस्था का अनुमान है कि आधे यमनवासियों के लिए खाना भी कम पड़ता है. कई इलाकों में तो 35 फीसदी बच्चे कुपोषण के शिकार हैं. बेरोजगारी 35 प्रतिशत है. खासकर युवाओं को नौकरी पाने में दिक्कत आती है. कई इलाकों में बिजली की समस्या है, राजधानी सना में भी आए दिन बिजली घंटों गुल रहती है. पेट्शूलात का कहना है कि "अकसर पाइपलाईनों को उड़ा दिया जाता है क्योंकि कोई क्षेत्रीय कबीला किसी चीज का विरोध करना चाहता है या कुछ लोगों को जेल से रिहा करने के लिए इस तरह दबाव बनाया जाता है"
पेट्शूलात यह भी कहते हैं कि वह सना के बाहर नहीं जा सकते हैं. अपहरण का खतरा अभी भी बना हुआ है. क्रांति के महीनों में जब सरकार बहुत ही कमजोर थी, उस वक्त इस्लामी कट्टरपंथियों ने देश के कई इलाकों पर कब्जा कर लिया. कहा जाता है कि कुछ आतंकवादी संगठनों का संबंध अल कायदा से है. अमेरिका इन कट्टरपंथियों के खिलाफ संघर्ष में मदद कर रहा है. साथ ही कबीलों के पास भी लड़ाके हैं. पेट्शूलात बताते हैं कि, "इस सब हालातों को देखते हुए हर एक सरकार के लिए कुछ कर दिखाना मुश्किल है." इसका एक कारण यह भी है कि राष्ट्रपति हादी चुनाव तक जनता के चुने गए एक मात्र जायज नुमाइंदे हैं.
पत्रकार अल कैदी कहते हैं कि "यमन ऐतिहासिक मोड़ पर खड़ा है, यदि इस मौके को गंवा दिया, तो यमन में कभी सुरक्षा, स्थिरता और शांति नहीं होगी." अल कैदी को डर है कि "यमन एक नाकाम देश न बन जाए और इसी तरह यमन कभी भी उजाला नहीं देख पाएगा."
रिपोर्ट: नाओमी कोंराड/पीई
संपादन: ओंकार सिंह जनौटी