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ईरान के सामने जब 444 दिनों तक लाचार रहा अमेरिका

४ नवम्बर २०१९

40 साल पहले आज ही के दिन तेहरान की अमेरिकी दूतावास को ईरानी प्रदर्शनकारियों ने घेर लिया. वहां मौजूद 98 कर्मचारियों को बंधक बना लिया. यह घटना ईरान और अमेरिका के संबंधों का निर्णायक पल बन गई जिसकी गूंज आज भी सुनाई देती है.

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USA prüfen Bericht über Ahmadinedschad als Geiselnehmer
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Irna

1979 में आखिर ऐसा क्या हुआ जिसकी वजह से अमेरिकी दूतावास के कर्मचारियों को बंधक बना लिया गया? इस बारे में अमेरिका के लोग आज भी अंधेरे में हैं. उस वक्त तो कई महीनों तक अमेरिका के लोग बस टीवी चैनलों पर लोगों की भीड़ में घिरे दूतावास को ही देखते रहे. जानकार मानते हैं कि अमेरिका को ऐसी किसी घटना की बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी और बहुत दिनों तक उसे समझ में ही नहीं आया कि हुआ क्या है. 

1953 में अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए ने ईरान के चुने हुए प्रधानमंत्री मोहम्मद मुसद्दिक को देश में तख्तापलट के जरिए हटवा दिया. इसके बाद ईरान की सत्ता पर शाह मोहम्मद रजा पहलवी काबिज हुए. मध्यपूर्व के जानकार सईद नकवी बताते हैं, "1930-40 के दशक में तेल का औद्योगिक उत्पादन शुरू होने के बाद अमेरिका ईरान के रिश्तों में नई बात आ गई. सही तरीके से चुने हुए मोहम्मद मुसद्दिक को अमेरिकी तेल कंपनियों के इशारे पर सत्ता से हटा दिया गया. उसके बाद रजा पहलवी के दौर में अमेरिका, ईरान और इस्राएल में बहुत करीबी रिश्ते रहे. शाह का सावाक, इस्राएल का मोसाद और अमेरिका का सीआईए आपस में सहयोग करने लगे, उनके बीच बहुत बनने लगी. यहां तक कि अमेरिकी सहयोग से इस्राएल के हथियार भी ईरान को बेचे गए हैं."

अमेरिका, ईरान की दोस्ती अच्छी चलती रही लेकिन इस बीच एक तरफ अमेरिकी तेल कंपनियों का प्रभुत्व और ईरान में असंतोष बढ़ा तो दूसरी तरफ निर्वासन में रह रहे अयातोल्लाह खोमैनी के समर्थकों का प्रभाव बढ़ने लगा. देश में प्रदर्शनों और समस्याओं की आंधी चलने लगी.

Studenten stürmen US-Botschaft in Teheran 1979
तेहरान में अमेरिकी दूतावास पर ईरानी छात्रों का घेरातस्वीर: picture-alliance/AP/Gg

इसी आंधी के बीच कैंसर से पीड़ित शाह मोहम्मद रजा पहलवी देश छोड़ कर अमेरिका चले गए और इस तरह से ईरान में इस्लामी क्रांति का रास्ता साफ हो गया. अशांति, असुरक्षा और उथल पुथल वाले ऐसे माहौल में ही तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने शाह पहलवी को न्यूयॉर्क में इलाज के लिए आने की अनुमति दी थी. हालांकि जानकार मानते हैं कि ईरान के लोगों में इसके बाद अमेरिका को लेकर नाराजगी बेइंतहा बढ़ गई.

इस्लामी नेता अयातोल्लाह खोमैनी ईरान में वापस लौट चुके थे और क्रांति अपने चरम पर पहुंच गई थी. अमेरिका के खिलाफ नाराजगी का इस्तेमाल खौमैनी ने अपनी ताकत बढ़ाने में किया. कई महीनों तक ईरान में भारी अशांति और अस्थिरता रही, इसमें अलगाववादियों के हमले, कामगारों का विद्रोह और आंतरिक सत्ता के लिए संघर्ष चलता रहा. पुलिस रजिस्टरों में हाजिरी लगा रही थी लेकिन काम पर नहीं आ रही थी इससे अशांति को और सिर उठाने का मौका मिला. इसी बीच मार्क्सवादी छात्रों ने कुछ दिनों के लिए अमेरिकी दूताावास की घेरेबंदी भी की.

4 नवंबर 1989 को ईरान के इस्लामी छात्रों का उग्र दल अमेरिकी दूतावास के बाहर जमा हो गया. पहले योजना दूतावास के बाहर धरना देने की थी. लोगों की नाराजगी इतनी ज्यादा थी कि यह देखते ही देखते धरना अनियंत्रित हो कर दूतावास की घेरेबंदी में तब्दील हो गया. मध्यपूर्व के जानकार फज्जुर रहमान बताते हैं, "घेरा डालने वाले छात्रों में महमूद अहमदीनेजाद भी थे जो आगे चल कर ईरान के राष्ट्रपति बने. कट्टरता और अमेरिकी विरोध के बीज ने उनके अंदर तभी जड़ें जमा ली थीं." 

Iran Besetzung der US-Botschaft 1979
यह तस्वीर घेरेबंदी के दौरान 4 नवंबर 1979 की है.तस्वीर: picture-alliance/AP Photo

खौमैनी ने दूतावास की घेरेबंदी करने वालों का समर्थन किया और लोगों की भड़की हुई भावना का भरपूर इस्तेमाल किया. प्रदर्शन करने वाले छात्र अमेरिका से शाह पहलवी को वापस भेजने की मांग कर रहे थे जिसे अमेरिका ने ठुकरा दिया. शाह पहलवी का उस वक्त न्यूयॉर्क के एक अस्पताल में इलाज चल रहा था. अयातोल्लाह खोमैनी ने दूतावास की घेरेबंदी को "पहली क्रांति से बड़ी क्रांति कहा" जिसमें उसी साल ईरान के राजा को सत्ता से बाहर किया गया था. खोमैनी के समर्थकों ने इसके अगले दिन ब्रिटिश दूतावास की भी घेराबंदी कर दी थी. प्रदर्शनकारियों का कहना था कि ब्रिटेन अमेरिका का "दुष्ट" साथी है. हालांकि कुछ घंटों बाद यह घेराबंदी खत्म कर दी गई. हालांकि कुछ दिनों बाद ही ब्रिटेन ने तेहरान में अपना दूतावास बंद कर दिया.

संकट बढ़ने के बाद दूतावास में बंद कई लोगों को वहां से बाहर जाने दिया गया जबकि कई लोग मौके का फायदा उठा कर भाग निकले और कनाडा के राजदूत के साथ सीआईए की योजना का हिस्सा बन कर निकल गए. पूरा माहौल बहुत ही नाटकीय था. 2012 में आई फिल्म आर्गो में इसे विस्तार से दिखाया गया है. उधर अमेरिका ने ईरान से पेट्रोलियम का आयात बंद कर दिया जो उस वक्त हर दिन की अमेरिकी जरूरत का करीब 4 फीसदी थी. राष्ट्रपति जिमी कार्टर के आदेश पर अमेरिका में ईरानी लोगों की सभी संपत्तियों को जब्त कर लिया गया. अमेरिका ने सभी 183 ईरानी राजनयिकों को देश से बाहर जाने का आदेश दिया और ईरान से कूटनीतिक संबंध खत्म कर लिए.

दिसंबर महीने में ईरानी शाह पहले टेक्सस फिर पनामा और फिर मिस्र चले गए. इसी बीच पेरिस में उनके भतीजे को गोली मार दी गई. इधर ईरान में नए संविधान को लेकर जनमत संग्रह हुआ और भारी बहुमत से देश की सत्ता पर अयातोल्लाह खोमैनी का पूरा अधिकार हो गया. अमेरिका के लिए यह स्थिति बिल्कुल अप्रत्याशित थी. सईद नकवी बताते हैं, "अमेरिका ने नहीं सोचा था कि नई सत्ता उसके इतने खिलाफ चली जाएगी लेकिन ऐसा हुआ, अमेरिकी दूतावास के लोग 444 दिन तक वहीं बंद रहे."

Bruce Laingen
ईरानी छात्रों की घेराबंदी से छूटने के बाद अमेरिका पहुंचे अमेरिकी राजदूत ब्रुस लाइंगेनतस्वीर: picture-alliance/AP Photo

संयुक्त राष्ट्र ने अमेरिकी राजनयिकों की रिहाई के लिए कई प्रस्ताव पास किए और समय सीमाएं तय की लेकिन उनकी रिहाई नहीं हो सकी. खोमैनी की इच्छा से बंधक आतंकवादियों के कब्जे में थे. वास्तव में ईरान की सत्ता का भी नियंत्रण उस वक्त उन लोगों पर नहीं था जिन्होंने अमेरिकी लोगों को बंधक बना रखा था.

फज्जुर रहमान बताते हैं, "ईरान खुद उन लोगों पर अपना नियंत्रण खो चुका था और बड़े धैर्य के साथ इस पूरे ऑपरेशन को अंजाम दिया गया जिसकी पहले से किसी को कानोंकान खबर नहीं थी.अमेरिका की मुश्किल यह थी कि उस वक्त वहां इलाके में उसका कोई ऐसा साथी नहीं था जिसकी मदद से वह या तो सैन्य कार्रवाई कर अपने लोगों को छुड़ाता या फिर मध्यस्थता के जरिए उनकी रिहाई सुनिश्चित कराता." उस वक्त अमेरिका के इराक से रिश्ते अच्छे थे लेकिन इराक और ईरान के बीच अलग ही युद्ध छिड़ा था ऐसे में मध्यस्थता की बात सोची भी नहीं जा सकती थी. 

अमेरिका और ईरान का टकराव बढ़ता गया. लगभग सवा साल के इस वक्त में ईरान और इराक के बीच भयानक युद्ध भी छिड़ गया लेकिन बंधकों की रिहाई नहीं हो सकी. अमेरिका ने इसके लिए सैन्य कोशिश भी करनी चाही लेकिन वह भी नाकाम रही. दूतावास की घेराबंदी शुरू होने के करीब एक साल बाद शाह पहलवी का मिस्र में निधन हो गया उन्हें, उन्हें वहीं राजकीय सम्मान के साथ दफना दिया गया.

Abdolrahim Mousavi - Kundgebung im Iran zum 40. Jahrestag US-Botschaftsbesetzung
ईरान के सेना प्रमुख अब्दुलरहीम मुसावीतस्वीर: picture-alliance/AP/V. Salemi

इसके बाद भी 52 अमेरिकी बंधक दूतावास में फंसे रहे. खोमैनी अपनी तरफ से रिहाई के लिए शर्तें रखते रहे, अमेरिका प्रतिबंधों से लेकर जो कुछ भी कूटनीतिक रास्ते से संभव था, आजमाता रहा लेकिन बंधक फंसे रहे. आखिरकार अमेरिका में चुनाव हुए नए राष्ट्रपति ने कार्यभार संभाला. रोनाल्ड रीगन की अमेरिका के राष्ट्रपति पद पर ताजपोशी के बाद ही बंधकों की रिहाई हो सकी. यह घटना भले ही चार दशक पुरानी हो लेकिन आज परमाणु करार से अमेरिका के बाहर होने के बाद जो हालात बने हैं उनमें इसका असर साफ देखा जा सकता है. 

तेहरान में अमेरिकी दूतावास के बाहर सोमवार को भी प्रदर्शनकारी जमा हुए हैं और सरकारी टीवी चैनल दूसरे शहरों में हो रहे प्रदर्शनों की तस्वीरें भी दिखाई जा रही हैं. मुख्य कार्यक्रम अमेरिका के पूर्व दूतावास के बाहर ही हो रहा है जहां कट्टरपंथी बड़ी संख्या में जमा हो कर "डेथ टू अमेरिका" और "डेथ टू इस्राएल" के नारे लगा रहे हैं. यहां जमा भीड़ को ईरानी सेना के कमांडर जनरल अब्दुलरहीम मुसावी संबोधित करने वाले हैं.

तेहरान के वली ए अस्र चौक का कट्टरपंथी अकसर राजनीतिक विचारों का प्रदर्शन करने के लिए इस्तेमाल करते हैं. यहां एक बड़ा बिलबोर्ड लगा है जिसमें दुनिया भर के लोग अमेरिकी झंडा जलाते नजर जा रहे हैं. इस बिलोबोर्ड पर लिखा है, "हम लोग सुपरपावर हैं."

रिपोर्ट: निखिल रंजन (एपी)

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