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जर्मनी में आए दिन हड़ताल क्यों हो रही है

७ फ़रवरी २०२४

बीते कुछ हफ्तों में आए दिन की हड़तालों से जर्मनी के पैर थम जा रहे हैं. ये सब ऐसे समय में हो रहा है जब यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था विकास के लिए संघर्ष कर रही है और ग्राहक ऊंची कीमतों की मार सह रहे हैं.

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आमतौर पर जर्मनी में इतनी हड़ताल नहीं होती
जर्मनी में आए दिन कभी बस, तो कभी ट्रेन तो कभी एयरोपोर्ट पर हड़ताल हो जा रही हैतस्वीर: Liesa Johannssen/REUTERS

जर्मनी में आमतौर पर मजदूर संगठनों से सरकार और कंपनियों के रिश्ते अच्छे रहते हैं. हालांकि वेतन पर मोलभाव में असहमतियों के बीच बीते महीनों में रेल, बस और एयरपोर्ट के कर्मचारी एक के बाद एक कर काम पर नहीं आ रहे हैं. जर्मन एयरलाइंस लुफ्थांसा बुधवार को इसकी ताजा शिकार बनी जब एयरपोर्ट पर ग्राउंड स्टाफ की हड़ताल के कारण उसे हर 10 में से 9 उड़ानें रद्द करनी पड़ीं. आखिर एक के बाद एक इतनी हड़ताल क्यों हो रही हैं?

हड़ताल की वजहें

2022 के आखिर से ही जर्मनी में मजदूरों की चिंता बढ़ गई है. यूक्रेन में युद्ध शुरू होने के बाद जर्मनी में मजदूरी चार फीसदी तक गिर गई. पिछले साल कुछ सेक्टरों में वेतनमान बढ़ा था. कुछ जगहों पर तो यह 10 फीसदी तक बढ़ाया गया. हालांकि इससे ज्यादा फायदा इसलिए नहीं हुआ क्योंकि महंगाई 5.3 फीसदी की ऊंची दर पर बनी रही. महंगाई के दबाव ने वेतन पर बातचीत को तनावपूर्ण बना दिया है और इसकी वजह से हड़तालों की संख्या बढ़ती जा रही है.

जर्मनी में रेल ड्राइवरों की हड़ताल से किस किस को होगा नुकसान

जनवरी के आखिर में ट्रेन ड्राइवर पांच दिन की हड़ताल पर चले गए. उसके बाद एयरपोर्ट के कर्मचारी और लोकल ट्रांसपोर्ट की सेवाएं हड़ताल की वजह से ठप्प रहीं. कासल यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान पढ़ाने वाले प्रोफेसर आलेक्जांडर गलास ने समाचार एजेंसी एएफपी से बातचीत में कहा, "कर्मचारियों को सचमुच आय में कमी महसूस हो रही है, महीने के आखिर में उनकी जेब में बहुत कम पैसा बच रहा है."

आए दिन की हड़ताल से जर्मन अर्थव्यवस्था परेशान है
कुछ दिन पहले रेल ड्राइवर हड़ताल पर चले गएतस्वीर: Fabrizio Bensch/REUTERS

कर्मचारियों की कमी

दूसरी तरफ जर्मन उद्योग जगत में कर्मचारियों की भारी कमी के कारण पैदा हुए गंभीर संकट से मजदूर संघों के हाथ में ज्यादा ताकत आ गई है. मजदूर संघों की मांग और उद्योग जगत के इस संकट के बीच टकराव हो रहा है. इकोनॉमिक थिंक टैंक आईडब्ल्यू के हागेन लेश का कहना है, "संकट से जूझ रहे उद्योग जगत के पास बांटने के लिए ज्यादा कुछ है नहीं," यही वजह है कि तुरंत समाधान नहीं निकल पा रहा है.

जर्मनी में मजदूरों के साथ संबंध आम सहमति पर आधारित रहा है, लेकिन इन हड़तालों की वजह से अब इस रिश्ते के भविष्य पर सवाल उठ रहे हैं. लेश का कहना है, "यह जर्मन मॉडल के लिए सच्चाई का सामना करने वाला पल है. मजदूर संघ कोरोना वायरस की महामारी के दौरान ज्यादा समझौते के लिए तैयार थे लेकिन अब वह दौर खत्म हो चुका है."

जर्मनी में हड़ताल

ऐतिहासिक रूप से जर्मनी यूरोप के उन देशों में रहा है जहां मजदूर बहुत कम हड़ताल पर जाते हैं. साल 2012 से 2021 के बीच हरेक 1,000 कामकाजी दिन में हड़ताल की वजह से सिर्फ 18 दिन काम बाधित हुआ. दूसरी तरफ फ्रांस में यह आंकड़ा इसी दौर में 92 दिन का था.

कर्मचारियों की कमी के कारण मजदूर संघ फिलहाल समझौता करने में ज्यादा मोलभाव कर रहे हैं
मजदूर संगठनों की सदस्यता बढ़ रही हैतस्वीर: iesa Johannssen/REUTERS

सामूहिक समझौतों ने लंबे समय से जर्मनी को हड़तालों से बचाए रखा है. हालांकि 2010 में इन समझौतों के दायरे में जहां 56 फीसदी कर्मचारी थे वहीं अब केवल 48 फीसदी कर्मचारी ही इनमें शामिल हैं.

कर्मचारियों का समर्थन

इसके अलावा कुछ विशेषज्ञों के मुताबिक हड़तालों को कर्मचारियों का व्यापक समर्थन मिल रहा है, हालांकि इसके बारे में पक्के आंकड़े फिलहाल मौजूद नहीं हैं. जर्मनी में आर्थिक और सामाजिक शोध संस्थान, डब्ल्यूएसआई के रिसर्चर थॉर्स्टेन शुल्टेन ने समाचार एजेंसी एएफपी से कहा, "हम उच्च स्तर पर भागीदारी देख रहे हैं, इसकी वजह से मजदूर संघों की सदस्यता भी बढ़ गई है."

मजदूर संघों और प्रबंधन के बीच कुछेक निर्णायक समझौते ही हुए हैं. इसका मतलब है कि हड़तालों की लहर अभी आगे भी जारी रह सकती है. हाल ही में हड़ताल पर जाने वाले रेल कर्मचारियों के संघ का कहना है, "कुछ भी संभव है." दूसरी तरफ हाल के वर्षों में कठिन दौर देखने वाले रसायन उद्योग में आने वाले महीनों में वेतन पर बातचीत का नया दौर शुरू होने वाला है.

एनआर/वीएस (एएफपी)