जर्मनी में जासूसी के आरोप में भारतीय दंपति पर मुकदमा
२२ नवम्बर २०१९50 साल के मनमोहन एस और 51 साल की उनकी पत्नी कंवलजीत पर इसी साल मार्च में जासूसी के आरोप लगे थे. फ्रैंकफर्ट के हायर रीजनल कोर्ट में इनके खिलाफ मुकदमा शुरू हुआ है. मुकदमे की पहली सुनवाई गुरुवार को हुई और अगली सुनवाई के लिए मध्य दिसंबर तक 6 तारीखें तय की गई हैं.
अभियोजकों ने इसी साल की शुरुआत में बयान जारी कर कहा था, "मनमोहन एस ने माना है...जर्मनी के सिख समुदाय और कश्मीर अभियान के बारे में उन्होंने अपने रिश्तेदारों को जानकारी दी थी जो भारतीय खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग में काम करते हैं."
आरोप है कि मनमोहन एस ने साल 2015 से जर्मनी में रह रहे सिख और कश्मीरी समुदाय के लोगों के बारे में जानकारी जुटानी शुरू की थी. अभियोजकों के मुताबिक वह फ्रैंकफर्ट स्थित भारतीय वाणिज्य दूतावास में काम करने वाले कर्मचारी को यह जानकारी दिया करते थे.
अभियोजकों का कहना है कि फ्रैंकफर्ट के भारतीय वाणिज्य दूतावास में खुफिया एजेंसी के दो एजेंटो को कर्मचारी के रूप में रखा गया था. इनसे इस दंपति की हर महीने में मुलाकात होती थी. आमतौर पर ये मुलाकातें अधिकारियों के निजी आवास पर होती थी. पहले सिर्फ मनमोहन एस ही एजेंटों से मिला करते थे, बाद में उनकी पत्नी भी इन बैठकों में शामिल होने लगीं. मनमोहन एस की पत्नी भारतीय खुफिया अधिकारियों के साथ वाली उनकी बैठक में जुलाई से दिसंबर 2017 के बीच शामिल हुईं.
इस दंपति ने खुफिया अधिकारियों को कोलोन और फ्रैंकफर्ट में रहने वाले विपक्षी गुटों के बारे में जानकारी दी. 2017 में जब प्रधानमंत्री का हैम्बर्ग दौरा तय हो गया तो इन लोगों ने बताया कि कश्मीरी समुदाय के लोग किस तरह के विरोध प्रदर्शन की तैयारी कर रहे हैं. एक और मौके पर इन्होंने 14 लोगों के नाम पता कर भारतीय अधिकारियों के दिए. ये नाम उन लोगों के थे जो इससे पहले 2015 में भी प्रधानमंत्री के खिलाफ विरोध प्रदर्शन में शामिल हो चुके थे. उन्होंने एक रैली की तस्वीर भी ली थी और उसे अधिकारियों को दिया.
इस दंपति को कुल मिला कर 7,200 यूरोप की रकम दी गई. अभियोजकों को यकीन है कि ये लोग यह काम पैसे के लिए करते थे. फिलहाल यह दंपति नॉर्थ राइन वेस्टफालिया राज्य के मोएंशनग्लाडबाख में रहता है.
मनमोहन एस 1992 में पहली बार जर्मनी आए और तब उन्होंने यहां शरण पाने के लिए आवेदन दिया. गुरुवार को सुनवाई के दौरान वह अनुवादक और अपने वकील के बीच शांति से बैठे थे. इतने साल जर्मनी में बिताने के बावजूद उन्हें जर्मन भाषा की बहुत कम जानकारी है. कोर्ट की सुनवाई के दौरान वह अनुवादक से बार बार सवाल पूछते रहे और फिर उसका उत्तर बहुत कम शब्दों में दिया.
उन्होंने खुद जो जानकारी दी है उसके मुताबिक वह भारत में 8 महीने कैद की सजा भी काट चुके हैं. सिखों के धार्मिक हितों के प्रति राजनीतिक प्रतिबद्धता की वजह से उन्हें यह सजा मिली थी. 1984 में जब भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हुई तब वह बहुत दबाव में आ गए थे. इसी वजह से जर्मनी आए लेकिन शरण पाने की उनकी कोशिशें यहां नाकाम होती रहीं. जर्मन सरकार ने उन्हें सिर्फ इसलिए प्रत्यर्पित नहीं किया है क्योंकि कथित रूप से इसमें कुछ बाधा है. इस दंपति के दो बच्चे भी हैं.
जर्मनी में सिख समुदाय की आबादी 10-20 हजार के बीच है. ब्रिटेन और इटली के बाद यूरोप में सबसे ज्यादा सिख समुदाय के लोग जर्मनी में रहते हैं.
रिपोर्ट: सोन्या जॉर्डन्स/एनआर
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