जलवायु परिवर्तन से कराहते भारत के शहर कुछ सीखेंगे?
२७ अक्टूबर २०२०माइक्रोसॉफ्ट और गूगल के दफ्तर वाले शहर में इस महीने सदी की सबसे घनघोर बारिश हुई. इस बारिश के कारण 70 लोगों की मौत हुई और 5.7 अरब रुपये का नुकसान टूटी सड़कों और नालियों के रूप में हुआ. भारत के ज्यादातर शहर जलवायु परिवर्तन के कारण मौसमों के उग्र तेवरों की आंच झेल रहे हैं, अब वो चाहे भारी बाढ़ हो या फिर सूखा. इन शहरों के विकास के समय योजनाकारों ने शायद ही जलवायू परिवर्तन के बारे में सोचा होगा.
तैयारियों की कमी एक वैश्विक समस्या है और ग्लोबर कमीश ऑन द इकोनॉमी एंड क्लाइमेट ने अंदेशा जताया है कि इसकी वजह से दुनिया भर के शहरों पर 90 लाख करोड़ डॉलर से ज्यादा की रकम खर्च करनी पड़ेगी. भारत को आपदाओं में काफी नुकसान उठाना पड़ा है लेकिन अब उम्मीद जताई जा रही है कि पिछले महीने शुरु हुए एक प्रोजेक्ट के जरिए शहरों को क्लाइमेट स्मार्ट बनाया जाएगा.
भारत के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ अर्बन अफेयर्स के क्लाइमेट सेंटर फॉर सिटीज के प्रमुख उमामाहेश्वरन राजशेखर कहते हैं, "शहर जलवायु के लिहाज से बड़े परिवर्तनों का सामना कर रहे हैं.. एक साल बाढ़ आती है तो दूसरे साल पानी की कमी हो जाती है." यह इंस्टीट्यूट भारत के आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय की इस परियोजना में मदद कर रहा है. राजशेखर ने कहा, "यह अतीत की ओर देखने की बात नहीं, बल्कि भविष्य की ओर देखने वाली बात है.. कैसे हम भविष्य के विकास को एक जानकार कदम के जरिए कर सकते है."
यह कोशिश एक महत्वाकांक्षी योजना का हिस्सा है जिसके तहत शहरों को तेज गति वाले इंटरनेट और बढ़िया परिवहन तंत्र से लैस कर आधुनिक बनाया जाना है. इसमें देश के 139 शहरों को परियोजनाओं की योजना बनाते समय ही जलवायु के जोखिम का सामना करने के लिए तैयार किया जाएगा. सरकार के मुताबिक इसमें तूफान, बाढ़, लू, पानी की कमी और सूखे जैसी स्थिति की बढ़ती घटनाओं के लिए तैयारी की जाएगी. शहर जलवायु के विचार को अपने जल प्रबंधन, कचरा और परिवहन में शामिल करेंगे. ऐसी परियोजनाएं बनाई जाएंगी जिससे कि शहर में पैदल चलने की जगह हो और वहां की हवा सांस लेने लायक रहे. शहर के योजनाकारों और म्युनिसिपल अधिकारियों की इन योजनाओं को लेकर वर्चुअल ट्रेनिंग भी शुरू कर दी गई है.
जलवायु की कीमत
भारत के शहरों के लिए जलवायु के खतरे के कारण संकट बढ़ता जा रहा है. पिछले साल देश ने सामान्य से ज्यादा लंबी गर्मियां देखीं, 25 सालों की सबसे ज्यादा परसात देखी और इसके साथ ही रिकॉर्ड संख्या में तूफान और ठंडी हवाओं का प्रकोप झेला. इस साल अगस्त के महीने में मध्य प्रदेश में बना एक पुल उद्घाटन के पहले ही भारी बरसात के कारण उफनती नदी के पानी में बह गया. भारी बरसात के कारण तटवर्ती शहर केरल के कोच्चि का व्यस्त एयरपोर्ट 2018 और 2019 में कई दिनों तक बंद करना पड़ा. इसी महीने मुंबई के उपनगर में एक नए एयरपोर्ट की जगह भारी बारिश के बाद आए बाढ़ के पानी में डूब गई. इस बाढ़ में उस नदी के पानी का भी योगदान था जिसका रास्ता बदल कर एयरपोर्ट के लिए रास्ता बनाया गया था. दिल्ली और उसका उपनगर गुरुग्राम इस साल भी भारी बारिश के कारण जलमग्न रहा.
संयुक्त राष्ट्र की आपदा जोखिम एजेंसी के मुताबिक भारत दुनिया के उन दस देशों में है जहां आपदा के कारण सबसे ज्यादा लोगों की मौत हुई. इस एजेंसी के मुताबिक 1996 से 2015 के बीच करीब भारत के 98,000 लोगों ने अलग अलग आपदाओं में जान गंवाई है. इसी दौर में आपदा के कारण हुआ आर्थिक नुकसान भी कुल मिला कर 80 अरब डॉलर था.
दामोदर शिवानंद पाई भारत के मौसम विभाग में क्लाइमेट रिसर्च के प्रमुख हैं. उनका कहना है कि पिछले दशक में ज्यादा बरसात जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ते तापमान का एक नतीजा था. हालांकि उनका कहना है जमीन पर इंसानों के किए बदलाव भी बाढ़ की बढ़ती समस्याओं में अपनी भूमिका निभा रहे हैं. उनका कहना है, "पहले बारिश का पानी मिट्टी सोख लेती थी लेकिन अब नालियां जाम हैं और शहरीकरण के कारण इसका असर ज्यादा हो रहा है."
कुछ अलग करने की जरूरत
आजादी मिलने के बाद बीते 70 सालों में भारत की आबादी 32 करोड़ से 130 करोड़ पर जा पहुंची है. इसके साथ ही शहरी इलाकों में रहने वाले लोगों की तादाद में भी भारी उछाल आया है. 2030 तक सरकार का अनुमान है कि भारत कम से कम 7 ऐसे महानरों का घर होगा जिनमें हरेक की आबादी एक करोड़ से ज्यादा होगी.
सरकार शहरी विकास का समर्थन करती है क्योंकि यहां लोगों के लिए आर्थिक मौके बनते हैं. हालांकि हैदराबाद में रहने वाले अर्बन प्लानर और आर्किटेक्ट श्रीनिवास मूर्ति पूछते हैं, "समस्या यह है कि हम कैसे आगे बढ़ना चाहते हैं." शहरों का विकास आस पास की कृषि भूमि को निगलता जा रहा है, झीलों को भर कर उनमें इमारतें खड़ी की जा रही हैं और सागरों से छीनी जगहों पर सड़कें बनाई जा रही हैं ताकि बढ़ती आबादी, उद्योग और ज्यादा ट्रैफिक के लिए को स्थान मिल सके.
इनमें से कुछ बदलावों ने हालांकि शहरों को जलवायु के बढ़ते खतरों के ज्यादा करीब ला दिया है. पर्यावरणवादियों के मुताबिक इनमें समुद्र का जलस्तर बढ़ने के साथ ही पानी की कमी जैसी दिक्कतें शामिल हैं. भारत के पश्चिमी घाट के बीचों को तोड़ने के खिलाफ कई साल तक अभियान चलाने वाली सुमायरा अब्दुलाली कहती हैं, "हम पश्चिम जैसे बनने की होड़ में हैं, जबकि हमें उनसे सीखने की जरूरत है."
एनआर/आईबी (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)
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