जान गंवाती यमनी लड़कियां
११ सितम्बर २०१३उत्तर पश्चिमी यमन के हज्जा प्रांत के मीडी शहर में रावान नाम की इस लड़की की पिछले हफ्ते ही शादी हुई थी. पति की उम्र 40 साल है. महिला अधिकारों के लिए काम करने वाले आरवा ओथमान ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया, "शादी की रात सहवास के दौरान उसे बहुत रक्तस्राव हुआ और गुप्तांगों को नुकसान पहुंचा जिससे उसकी मौत हो गई. वे लोग उसे क्लिनिक ले कर गए लेकिन उसकी जान नहीं बच सकी." ओथमान ने यह भी बताया कि लड़की के घर वालों या उसके पति के खिलाफ प्रशासन ने कोई कार्रवाई नहीं की है.
प्रांतीय शहर हराध के एक स्थानीय सुरक्षा अधिकारी ने ऐसी घटना से साफ इनकार किया है. प्रेस में बोलने का अधिकार नहीं होने के कारण उसने अपना नाम जाहिर करने से इनकार कर दिया. हालांकि मीडी के कम से कम दो निवासियों ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से इस घटना की पुष्टि की है. उनका यह भी कहना है कि जब पहली बार इसके बारे में खबर आई तो स्थानीय कबीलों के मुखिया उसे दबाने की कोशिश में जुट गए. एक स्थानीय पत्रकार को इसके बारे में खबर न देने की चेतावनी भी दी गई.
यमन के कई गरीब परिवार अपनी बेटियों की समय से बहुत पहले ही शादी कर देते हैं जिससे कि उनके पालने पोसने पर होने वाला खर्च बच जाए और लड़की को मिलने वाले दहेज के रूप में कमा भी सकें. इसी साल जनवरी में जारी संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट से देश की गरीबी का पता चलता है. 2.4 करोड़ की आबादी वाले देश में करीब 1.05 करोड़ लोग ऐसे हैं जिनके पास पर्याप्त खाना नहीं है. इसके अलावा 1.3 करोड़ लोगों के पास साफ पानी और शौचालय जैसी सुविधाओं का अभाव है.
मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच ने दिसंबर 2011 में यमन की सरकार से अनुरोध किया कि 18 साल से कम उम्र की लड़कियों की शादी पर प्रतिबंध लगा दे. ह्यूमन राइट्स वॉच ने चेतावनी दी कि कम उम्र में ब्याह दी गई लड़कियां शिक्षा से महरूम रह जाती हैं साथ ही उनकी सेहत पर भी इसका बुरा असर पड़ता है. संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों का हवाला दे कर इस संगठन ने बताया कि यमन की 14 फीसदी लड़कियों की शादी 15 साल से पहले और 52 फीसदी लड़कियों की शादी 18 साल से पहले ही हो जाती है. ह्यूमन राइट्स वॉच ने बताया कि जवानी में कदम रखते ही लड़कियों को स्कूल से निकाल लिया जाता है ताकि उनकी शादी की जा सके.
इन मुद्दों पर वहां बातचीत चल रही थी लेकिन राजनीतिक उठा पटक के कारण वह बीच में ही रुक गई. 2011 में राष्ट्रपति अली अब्दुल्लाह सालेह के खिलाफ भारी प्रदर्शनों के बाद उन्हें पद छोड़ना पड़ा.
एनआर/एमजे (रॉयटर्स)