जिंदगी की जंग में एसिड हमले की पीड़ित
६ सितम्बर २०१५तेजाब का हमला न सिर्फ शरीर को बल्कि आत्मा को भी झुलसा देता है. तेजाब बाजार में आसानी से मिल जाता और महिलाओं के खिलाफ सबसे सस्ता हथियार है. कई बार जमीन विवाद, शादी या सेक्स का प्रस्ताव ठुकराने पर उन्हें जिंदगी भर की सजा मिल जाती है. ज्यादातर मामले जानने वाले ही अंजाम देते हैं. सगा रिश्तेदार या फिर कोई जानने वाला. ऐसा ही कुछ 22 साल पहले गीता के साथ हुआ.
गीता के पति ने तेजाब से उसपर और उसकी दो बेटियों पर हमला कर दिया. इस हमले में गीता की एक बेटी की मौत हो गई और नीतू बुरी तरह से झुलस गई. नीतू की आंखों की रोशनी चली गई. आज नीतू 25 साल की है. गीता और नीतू आगरा में शीरोज हैंगआउट नाम की कैफे में काम करती है. शीरोज हैंगआउट कैफे को पांच एसिड अटैक पीड़ित चला रही हैं. इस कैफे को स्टॉप एसिड अटैक कैंपेन और छांव फाउंडेशन संचालित कर रही है.
भारत में इस तरह का पहला प्रयोग है और धीरे धीरे लोकप्रिय हो रहा है. कैफे में खाना बनाने और ग्राहकों को भोजन परोसने और प्रबंधन का काम एसिड अटैक पीड़ित ही करती हैं. करीब दस महीने पहले खुली यह कैफे अब इन पीड़ितों को समाज में नई पहचान और लड़ाई लड़ने की ताकत दे रही है. साथ ही साथ आर्थिक मदद भी हो रही है.
‘मुझ जैसी और भी'
नीतू आंखें जाने के कारण पढ़ाई नहीं कर पाई, लेकिन अब उसमें आत्मविश्वास आया है और वह कंप्यूटर कोर्स करना चाहती है. वह कहती है, "जब मैंने होश संभाला तो मुझे लगता था कि सिर्फ मैं ही ऐसी हूं. लेकिन इस कॉफी शॉप में काम करने के बाद मैंने जाना कि मेरी तरह और भी लड़कियां हैं जो इस तरह के हमले की शिकार हुई हैं. कैफे में काम करने के बाद मेरे अंदर नया आत्मविश्वास आया है और मैं अब बिना मुंह ढंके बाहर जाती हूं."
नीतू की मां गीता ने अपने पति के साथ राजीनामा कर लिया और उसकी सजा माफ करा दी. गीता अपनी बेटियों के साथ अपने पति के साथ ही रहती है. लेकिन इतना कुछ होने के बाद भी उसके पति की शराब की लत नहीं गई. नीतू बताती है, "जो होना था तो वह हो गया लेकिन अब हम क्या कर सकते हैं. पिता हमारे साथ ही रहते हैं. शराब पीकर झगड़ा लड़ाई भी करते हैं. हमारी मजबूरी है कि हम उनके साथ ही रह सकते हैं. क्योंकि वही घर के मुखिया है."
जिंदगी का जज्बा
नीतू और गीता की ही तरह यहां पर रूपा, ऋतु और चंचल भी काम करती हैं. इन तीनों पर एसिड हमला हो चुका है. शीरोज हैंगआउट का मकसद पीड़ितों को समाज की मुख्य धारा से जुड़ने के अलावा एसिड हमले के खिलाफ अभियान चलाना है. ऋतु पर 2012 में उसी के बुआ के लड़के ने एसिड से हमला कर दिया था. वजह कुछ और नहीं बल्कि जमीन का विवाद था.
हमले के बाद ऋतु का चेहरा और एक आंख खराब हो गई. ऋतु कहती है कि उसे नहीं पता कि हमले की असली वजह क्या थी. वह कहती है, "मेरा सपना एक खिलाड़ी बनना था. लेकिन मैं अपना यह सपना पूरा नहीं कर सकती. एक दिन मैं जरूर मुझपर तेजाब फेंकने वाले से सवाल करूंगी कि उसने मुझ पर हमला क्यों किया था."
इस कैफे की सोशल मीडिया और ट्रिप एडवाइजर पर भी चर्चा है. इसलिए ज्यादातर विदेशी पर्यटक यहां आते हैं और वह वहां काम करने वाली लड़कियों से बात करते हैं और उनमें सम्मान की भावना पैदा करते हैं. 35 साल के लॉरेंजो साला इटली के मिलान शहर के रहने वाले है. उनकी मां ने उन्हें इटली के एक अखबार में शीरोज के बारे में छपी रिपोर्ट की क्लिप भेजी और पूछा कि आगरा दौरे के वक्त उन्हें इस कैफे में जाने का मौका मिला या नहीं.
लॉरेंजो कहते है, "जब मेरी मां ने मुझे यह रिपोर्ट भेजी तो मेरा मन एक दम से यहां आने का करने लगा. वैसे तो आगरा कुछ दिन पहले ही घूम चुका था लेकिन मैं आज फिर खास तौर पर इस कैफे के लिए आया हूं. भारत में महिलाओं के खिलाफ बहुत अपराध होते हैं लेकिन इस कोशिश को देखकर लगता है कि इस तरह की पीड़ितो के लिए भी संस्थाएं और लोग आगे आ रहे हैं."
तेजाब के खिलाफ मुहिम
लॉरेंजो की ही तरह विदेशी पर्यटकों का एक दल इस कैफे के बारे में सुनने के बाद यहां आया है. विदेशी पर्यटक यहां खाना खाने के अलावा कैफे में रखी किताबें, डिजाइनर कपड़े और हस्तशिल्प के सामान मन मुताबिक कीमत चुकाकर खरीद सकता है. यहां मेन्यू कार्ड पर भी कोई रेट तय नहीं किया गया है. ऋतु बताती है, "हम लोगों की कोशिश है कि यहां समाज के हर तबके के लोग आए और हमारे बारे में जाने और इस मुहिम के साथ जुड़े." कैफे में बिक्री के लिए रखे कपड़े रुपा नाम की पीड़ित डिजाइन करती है. साल 2008 में उनपर तेजाब से हमला हुआ था लेकिन उस हमले के बाद उसके सपने नहीं जले बल्कि कड़ी मेहनत से वह फैशन की दुनिया में अपना नाम बनाना चाहती हैं. इन पांचों पीड़ितों को उम्मीद है कि इस पहल के साथ उनकी जिंदगी भी आम महिलाओं की तरह हो जाएगी और अन्य पीड़ितों के लिए इसके जरिए आर्थिक मदद हो पाएगी.
एसिड हमलों को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने सख्त दिशा निर्देश दिए हैं. इसके अलावा एसिड हमले का दोष साबित होने पर कम से कम 10 साल की सजा हो सकती है. तेजाब की बिक्री के लिए भी कड़े कायदे बनाए गए हैं. लेकिन इन सबके बावजूद तेजाब मासूम जिंदगियां झुलसा रहा. साल 2014 में तेजाब हमले के 309 मामले दर्ज हुए हैं. ये आंकड़े इस बात की ओर इशारा करते हैं कि कहीं न कहीं समाज में तेजाब के खिलाफ अभी भी सोच की कमी है. इसी सोच को जगाने के लिए शिरोज हैंगआउट में काम करने वाली लड़कियां दिन रात मेहनत कर रही हैं.
रिपोर्ट: आमिर अंसारी