जॉर्ज फ्लॉयड की मौत से यूरोप में अश्वेतों के जख्म हरे हुए
३ जून २०२०जॉर्ज फ्लॉयड की मौत शायद इकलौता ऐसा मौका है जब मेरे कई दोस्तों और परिचितों ने एक नस्लवादी हत्या के बारे में मुझे लिखा. कुछ ने लिखा कि वे कैसा महसूस कर रहे हैं, जबकि बाकी ने यह कहा कि वे मेरे साथ हैं. लेकिन एक मैसेज मेरे दिमाग में अटक गया. "तुम तो अभी खुश होगे कि तुम इस वक्त अमेरिका में नहीं रह रहे हो." एक जर्मन दोस्त ने मुझे व्हाट्सऐप पर यह बात लिखी. उसने कहा, "हालिया घटनाएं दुर्भाग्य से बहुत दुखी करने वाली हैं."
यह सोचने में मुझे एक दिन लगा कि इस मैसेज का क्या जवाब दूं.
जर्मनी में रहते हुए मुझे कोई राहत नहीं है. मैं दुखी हूं. मैं हताश हूं. बरसों से अमेरिका और यूरोप में काले लोगों की हत्याएं हो रही हैं, यहां तक कि वे पुलिस के हाथों भी मारे जा रहे हैं, सिर्फ इसलिए कि वे काले हैं. जॉर्ज फ्लॉयड की असामयिक मौत हमें फिर याद दिलाती है कि नस्लीय हिंसा का नतीजा कभी कभी मौत के रूप में भी सामने आता है.
पश्चिम में अश्वेत विरोधी नस्लवाद
अमेरिकी शहरों और अब कुछ यूरोपीय देशों की राजधानियों में हो रहे प्रदर्शन उस हताशा और बेबसी को दिखाते हैं, जो अश्वेत लोग संस्थागत और ढांचागत नस्लवाद की वजह से महसूस करते हैं. हमें इस गलतफहमी में नहीं रहना चाहिए कि यह सिर्फ अमेरिकी समस्या है. अश्वेत विरोधी नस्लवाद पूरे पश्चिमी जगत में मौजूद है.
2011 में लंदन में एक अश्वेत मार्क डगन को पुलिस ने गोली मारी थी जिससे उसकी मौत हो गई. इसके बाद वहां प्रदर्शन हुए. इसी तरह फ्रांस में 2005 में लोगों का गुस्सा उबला जब दो किशोरों बौन त्रारो और जायद बेना को पुलिस से बचकर भागने की कोशिश करने पर एक इलेक्ट्रिक सबस्टेशन में बिजली का करंट लगाकर मार दिया गया. उसी साल सिएरा लियोन का एक शरणार्थी जर्मनी के देसाऊ शहर में पुलिस हवालात में आग की वजह से मारा गया.
अमेरिका में हो रहे घटनाक्रम को देखकर कुछ यूरोपीय लोगों के लिए यह कहना बहुत आसान है कि यहां ऐसा नहीं होता. लेकिन यूरोप में रहने वाले अश्वेत लोग यह नहीं कह पाएंगे. उनके लिए यूरोप में भी नस्लवाद है, भले ही पुलिस द्वारा यहां होने वाली हिंसा को खबरों में इतनी जगह ना मिलती हो. यही वजह है कि जॉर्ज फ्लॉएड की हिंसक मौत को लेकर अमेरिका से बाहर भी इतने प्रदर्शन हो रहे हैं. यहां भी पुराने घाव फिर से हरे हो गए हैं.
अश्वेत लोगों के प्रति पश्चिमी समाजों के रवैये में ज्यादा अंतर नहीं है. इस बारे में उनके विचार कुछ ऐतिहासिक घटनाओं से प्रेरित हैं: गुलामी और उपनिवेशवाद.
ब्रिटिश लेखकर जॉनी पिट्स ने अपनी किताब "एफ्रोपियन: नोट्स फ्रॉम ब्लैक यूरोप" में लिखा है कि गुलामों के ट्रांस अटलांटिक व्यापार ने पश्चिम में नस्ल की अवधारणा को आकार देने में अहम भूमिका अदा की है. दुर्भाग्य से मीडिया और स्कूली पाठ्यक्रमों में नस्ल के प्रति लोगों के नजरिए को बदलने के लिए बहुत कोशिश नहीं की गई है.
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यूरोप में हर दिन नस्लवाद
जब मेरे दोस्त ने पूछा कि मैं जर्मनी में रह कर खुश महसूस कर रहा हूं तो वह इस देश में रोजमर्रा की जिंदगी में मौजूद नस्लवाद को खारिज कर रहा था. जर्मनी में 2017 में नस्लवाद के खिलाफ राष्ट्रीय कार्ययोजना तैयार की गई. इसमें अश्वेत लोगों को उन पांच समूहों में रखा गया जिनके साथ नस्लीय भेदभाव होने का ज्यादा खतरा रहता है. लेकिन कार्य योजना बनाने का कदम भी संयुक्त राष्ट्र की नस्लीय भेदभाव उन्मूलन कमिटी की तरफ से बरसों से डाले जा रहे दबाव के बाद उठाया गया. कमिटी का कहना है कि जर्मनी इस भेदभाव को खत्म करने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठा रहा है.
यूरोप में जर्मनी अकेला नहीं है. पूरे महाद्वीप में नस्लवाद को लेकर जागरूकता की बहुत कमी है. और बारीकी से यह समझना भी मुश्किल है कि इस महाद्वीप में नस्लीय भेदभाव कैसे अश्वेत लोगों को प्रभावित कर रहा है क्योंकि इस तरह का कोई डाटा जमा नहीं किया जाता है. हालांकि ब्रिटेन इस मामले में अपवाद है.
अमेरिका में चल रहे प्रदर्शन के मद्देनजर यूरोपीय लोग यह नहीं कह सकते कि उनके यहां स्थिति बेहतर है. जरा ग्रीस को देखिए कि वह शरणार्थियों के साथ किस तरह का व्यवहार कर रहा है. खासकर अफ्रीकी और अश्वेत लोगों को वहां अधिकारी भी परेशान कर रहे हैं और वहां का पूरा समाज भी. हाल ही में नस्लवाद के खिलाफ यूरोपीय नेटवर्क ने कहा कि पूरे महाद्वीप में कोविड-19 के दौरान नस्लीय प्रोफाइलिंग और पुलिस हिंसा जातीय रूप से अल्पसंख्यक समुदायों को बहुत ज्यादा प्रभावित कर रही है.
जॉर्ज फ्लॉयड की मौत फिर संस्थागत और ढांचागत नस्लवाद की याद दिलाती है. जर्मन राजनीति में उभरती अफ्रीकी मूल की राजनेता अमीनाता तूरे भी इस तरफ इशारा करती हैं. बेंटो पत्रिका में उन्होंने लिखा, "हो सके तो किसी से यह मत कहिएगा कि तुम्हें तो खुश होना चाहिए कि तुम्हें गोली नहीं मारी जा रही है."
अगर हम मौतों के बारे में नहीं पढ़ रहे हैं तो इसका यह मतलब नहीं है कि यूरोप में नस्लवाद की समस्या नहीं है. नाइंसाफी किसी ना किसी रूप में हर जगह मौजूद है. हां, हम जॉर्ज फ्लॉयड का नाम लेकर एकजुटता दिखा सकते हैं और नस्लीय अन्यायों पर चर्चा कर सकते हैं कि वह कैसे हमारे अपने समाजों में जिंदगी को प्रभावित कर रहा है. इसी तरह हम उन्हें रोक सकते हैं.
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