तो क्या पहलू खान को किसी ने नहीं मारा था?
१५ अगस्त २०१९साल 2017 में भीड़ ने गाय की तस्करी के शक में पहलू खान की पीट-पीटकर हत्या कर दी थी. कोर्ट ने इस मामले में संदेह का लाभ देते हुए सभी अभियुक्तों को बरी कर दिया है. इस मामले में कुल आठ अभियुक्तों को गिरफ्तार किया गया था जिनमें से दो नाबालिग हैं. इन दोनों की सुनवाई किशोर न्यायालय में चल रही है.
हालांकि सरकारी वकील का कहना है कि वो इस फैसले को ऊपरी अदालत में चुनौती देंगे जबकि बचाव पक्ष ने अदालत के फैसले को ऐतिहासिक बताया है. अभियुक्तों को सजा न दिला पाने के पीछे मुख्य वजह ये रही कि एक तो सरकारी पक्ष अदालत में सबूतों को साबित करने में नाकाम रहा, दूसरी ओर कुछ गवाह भी पलट गए.
सबसे बड़ा सवाल यही है कि जिस मामले में घटना के वीडियो साक्ष्य रहे हों, पीड़ित ने मरने से पहले खुद बयान दिया हो, सैकड़ों लोग उस घटना के गवाह रहे हों उस घटना को सही साबित करने में सरकारी वकीलों के साक्ष्य कैसे कम पड़ गए और उनकी दलीलें कैसे कमजोर रह गईं? जांच प्रक्रिया पर तो सवाल उठते ही हैं.
सरकारी वकील का कहना है कि उन्हें जो भी साक्ष्य पुलिस से मिले, उनके आधार पर पीड़ित को न्याय दिलाने की पूरी कोशिश की गई लेकिन अदालत ने उनकी दलीलें नहीं मानीं. लेकिन कोर्ट ने अभियोजन पक्ष की दलीलों को कमजोर समझा और साक्ष्य पर्याप्त नहीं रहे तो उसके पीछे कई कारण थे. मसलन, कोर्ट ने घटनास्थल के वीडियो को एडमिसेबल सबूत नहीं माना है क्योंकि वीडियो की फोरेंसिक जांच नहीं कराई गई थी. इसके अलावा पुलिस अदालत को इस बारे में भी संतुष्ट नहीं कर सकी कि वीडियो किसने बनाया था और वो पुलिस को कैसे मिला था.
दो साल पहले हरियाणा के मेवात जिले के रहने वाले पहलू खान जयपुर से दो गाय खरीद कर वापस अपने घर जा रहे थे. शाम करीब सात बजे बहरोड़ पुलिया से आगे निकलने पर भीड़ ने उनकी गाड़ी को रुकवाया और उनके साथ मारपीट की. इस दौरान पहलू खान के बेटे भी उनके साथ थे. इलाज के दौरान पहलू खान की अस्पताल में मौत हो गई.
इस मामले में दो सौ से ज्यादा लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई थी लेकिन राज्य पुलिस की क्राइम ब्रांच ने आरंभिक जांच के बाद सभी को क्लीन चिट दे दी और सिर्फ छह लोगों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया. इसके बाद ये सभी जुलाई से सितंबर 2017 के बीच जमानत पर रिहा हो गए.
इस मामले में नया मोड़ तब आया जब अदालत में सुनवाई के दौरान ही राजस्थान पुलिस ने कहा कि वो पहलू खान और उनके बेटों के खिलाफ गो तस्करी के मामले में केस दर्ज करके इसकी दोबारा जांच करेगी.
दरअसल, पुलिस ने इस मामले में दो एफआईआर दर्ज की थी. एक एफआईआर पहलू खान की हत्या के मामले में आठ लोगों के खिलाफ और दूसरी बिना कलेक्टर की अनुमति के मवेशी ले जाने पर पहलू और उनके दो बेटों के खिलाफ. दूसरे मामले में पहलू खान और उनके दो बेटों के खिलाफ इसी साल चार्जशीट दाखिल की गई है. पहलू खान के दोनों बेटे इस मामले में जमानत पर हैं.
देखा जाए तो घटना की एफआईआर में ही फैसले की पटकथा लिख दी गई थी. अपनी मौत से पहले पहलू खान ने साफ तौर पर छह लोगों की पहचान हमलावरों के रूप में की थी. लेकिन जो एफआईआर पुलिस ने दर्ज की उसमें इन छह में से किसी का भी नाम नहीं डाला. इसके अलावा पुलिस की जांच में ये बात भी आई कि जिस वक्त ये घटना हुई, उनमें से कोई भी व्यक्ति वहां मौजूद नहीं था.
कथित गोरक्षकों के हाथों पहलू खान की हत्या की घटना ने देश भर में राजनीतिक हलचल पैदा की. इस दौरान देश के अन्य हिस्सों से भी ऐसी खबरें आईं. ये घटना जब हुई उस समय राजस्थान में वसुंधरा राजे के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार थी. जाहिर है, विवेचना पुलिस करती है और पुलिस राज्य सरकार के अधीन रहती है. अभियोजन पक्ष भी उन्हीं साक्ष्यों पर निर्भर रहता है जो पुलिस अपनी विवेचना के दौरान उसे मुहैया कराती है.
कांग्रेस पार्टी ने उस समय घटना को लेकर राज्य सरकार को जमकर घेरा था. हालांकि यह भी संयोग ही है कि इस साल जब पहलू खान और उनके बेटों के खिलाफ गो तस्करी के मामले में पुलिस ने चार्ज शीट लगाई तो खुद अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार घिरी नजर आई. हालांकि अशोक गहलोत ने तब दलील दी थी कि पुलिस ने जो जांच की थी वो पहले की है.
अलवर की जिला अदालत के इस फैसले के बाद राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कि उनकी सरकार भीड़ हत्या यानी मॉब लिंचिंग के शिकार हुए पहलू खान के परिवार वालों को न्याय दिलाने के लिए प्रतिबद्ध है और राज्य सरकार इस मामले में निचली अदालत के फैसले को चुनौती देगी.
सरकार भले ही इस फैसले को ऊपरी अदालत में चुनौती दे लेकिन जिन गवाहों, सबूतों और साक्ष्यों के आधार पर अदालतें फैसले देती हैं, उनमें किसी तरह के बदलाव की संभावना ना के बराबर है. ऐसी स्थिति में इस बात का पता शायद ही चल सके कि आखिर पहलू खान की हत्या किसने की?
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