थोड़ा सा नुकसान, फायदा बड़ा
२३ नवम्बर २०१३मार्च से लेकर अब तक दसियों लाख विदेशी सऊदी अरब से जा चुके हैं. वीजा की गड़बड़ियों पर दशकों से आंख मूंदे बैठे देश ने स्थिति बदलने का फैसला किया. चेतावनी दी गई, स्थिति सुधारने के लिए वक्त और फिर शुरू हुई धरपकड़. इसी महीने शुरू हुई अवैध प्रवासियों के खिलाफ कार्रवाई के बाद दफ्तरों और बाजारों में छापे मार कर दसियों हजार लोगों को पकड़ा गया. हालांकि एक करोड़ से ज्यादा प्रवासियों में ज्यादातर लोग यहीं रहेंगे लेकिन सरकार चाहती है कि दो करोड़ की मूल आबादी की नौकरियों में हिस्सेदारी बढ़े. दुनिया का शीर्ष तेल निर्यातक देश इसके जरिए अपनी सबसे बड़ी चुनौती से निबटना चाहता है.
लोगों की एक बड़ी संख्या काम करने की उम्र में बेकार बैठी है और जो काम कर रहे हैं वो सरकारी महकमे में हैं. बेरोजगारों का आधिकारिक आंकड़ा तो महज 12 फीसदी है लेकिन इसमें वो लोग शामिल नहीं हैं जो काम मांगने के लिए हाथ पांव नहीं चला रहे. सऊदी अरब में ऐसे लोगों की तादाद काफी बड़ी है. देश का सत्ताधारी परिवार लंबे समय से सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरी का इस्तेमाल तेल से होने वाली कमाई को अपने लोगों में बांटने के रूप में करता आया है. पूरी तरह से राजशाही वाले देश के शासक इसके जरिए अपनी सत्ता को वैध बनाते हैं.
2011 में जब अरब वसंत के विरोधों ने इलाके के तानाशाह शासकों को चुनौती देनी शुरू की तो शाह अब्दुल्लाह ने हजारों नई नौकरियों का एलान किया, वेतन और बोनस बढ़ाए गए, बेरोजगारी भत्ता बढ़ा, सस्ते घर दिए गए. हालांकि आबादी बढ़ने और स्थानीय ऊर्जा के इस्तेमाल ने तेल निर्यात में सेंध लगाई है और अब देश के लिए सरकारी कर्मचारियों के वेतन पर बड़ी रकम लुटाना मुश्किल हो रहा है. सऊदी के लोगों को निजी क्षेत्र की नौकरियों में ज्यादा जगह दिलाने की पहले की गई कोशिशें कुछ खास असर नहीं दिखा सकीं.
कारोबारियों की भी यह शिकायत रहती है कि सऊदी के लोग ज्यादा मेहनत नहीं करते और बहुत से कामों को छोटा बता कर करने से इनकार करते हैं.
वीजा की अनियमितता के खिलाफ कदम उठा कर और सऊदी युवाओं की ट्रेनिंग पर भारी रकम खर्च कर अधिकारी उम्मीद कर रहे हैं कि उनकी नीति कारगर रहेगी. कुछ अर्थशास्त्रियों को उम्मीद है कि नई नीति से फिलहाल भले ही उथल पुथल हो लेकिन लंबे समय में इससे फायदा होगा.
वर्तमान का दर्द
छोटी कंपनियां, कार्यशाला, सस्ते रेस्त्रां, राशन की दुकानें, फिलहाल सबसे बड़ी दिक्कतें इन्हीं के लिए हैं. यहां के अखबारों ने रोजमर्रा के कामों पर पड़ने वाले असर की जो फेहरिस्त बनाई है उनमें पीने के पानी की डिलीवरी रद्द हो रही है, फसलों की कटाई नहीं हो पा रही और स्कूलों में क्लास नहीं लग रही. हालांकि इनमें से ज्यादातर कहीं दर्ज नहीं हो रहा. फिश रेटिंग्स के निदेशक पॉल गैम्बल का कहना है, "इनमें से ज्यादातर लोग औपचारिक अर्थव्यवस्था में काम नहीं कर रहे इसलिए आप इन्हें आंकड़ों में नहीं देख सकते." बहुत से छोटे कारोबारों के मालिक अवैध तरीके से विदेशी हैं. किसी सऊदी नागरिक को पैसे दे कर कागजात उसके नाम पर बनवा दिए जाते हैं.
मजदूरों की कमी से बहुत सी सेवाएं महंगी हो गई हैं लेकिन सबसे बुरा असर पड़ा है निर्माण क्षेत्र पर जो सस्ते मजदूरों पर बहुत ज्यादा निर्भर है. एक तरफ मजदूरों की कमी है दूसरी तरफ नए विदेशी मजदूर को काम पर रखने के लिए कंपनियों को 640 अमेरिकी डॉलर की सालाना फीस देनी होगी. इसकी वजह से उनकी परियोजनाओं में देरी होगी और खर्चा और बढ़ेगा. नतीजा यह भी हो सकता है कि कई कंपनियां इस पेशे से ही बाहर हो जाएं. सऊदी चैम्बर्स ऑफ कॉमर्स में ठेकेदारों की कमेटी के प्रमुख फहद अल हम्मादी का कहना है, "मध्यम और छोटी कंपनियों में 40 फीसदी पर इसका असर पड़ा है. नए ठेके और महंगे हो गए हैं."
कल का फायदा
मजदूरों के वैध तरीके से दर्ज होने का सबसे पहले फायदा तो यह होगा कि आर्थिक योजनाएं पक्के तौर पर बनाई जा सकेंगी. श्रम सुधारों को लागू करने के लिए पारदर्शिता बेहद जरूरी है और रिटेल जैसे कुछ क्षेत्र में सऊदी नागरिकों के लिए रोजगार की बड़ी संभावनाओँ की उम्मीद लगाई गई है. अर्थशास्त्रियों का कहना है कि अगर श्रम महंगा होता हो तो निजी क्षेत्र की उत्पादकता बढ़नी चाहिए.
विदेशी मजदूरों की जगह स्थानीय लोगों को लाने का सबसे बड़ा फायदा होगा कि इससे सऊदी अरब के परिवारों के पास ज्यादा पैसा आएगा और उनका खर्च बढ़ेगा. यह पैसा विदेश जाने की बजाय देश की दुकानों में खर्च होगा. इससे रोजगार के मौके भी बढ़ेंगे. श्रम मंत्रालय ने इस साल मई में कहा कि नई नीतियों ने पिछले साल सऊदी अरब में 6 लाख नई नौकरियां पैदा कीं. हालांकि अभी यह साफ नहीं है कि ये नौकरियां कितने दिनों तक बनी रहेंगी.
बीते दिनों में कई बार सऊदी नागरिकों को बेकार नौकरी पर रख लिया गया, सिर्फ इसलिए ताकि कोटा पूरा हो सके. कुछ कंपनियों ने कहा कि ये लोग काम करने को तैयार नहीं या फिर इसके लायक नहीं. कोई भी यह उम्मीद नहीं रखता कि सऊदी अरब के नागरिक निर्माण क्षेत्र में मजदूरी या घरेलू नौकर का काम करेंगे लेकिन पिछले कुछ सालों में युवा सऊदी नौकरी के लिए आगे आ रहे हैं. दुकानों पर सहयोग करने में उन्हें अब कोई परेशानी नहीं जबकि पहले वो इसके लिए तैयार नहीं होते थे. निजी क्षेत्र में नौकरी बढ़ी तो सरकार पर भी लोगों को ज्यादा वेतन देने का दबाव घटेगा.
एनआर/एजेए (रॉयटर्स)