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१६ फ़रवरी २०११5 जनवरी, 1971 को जब मेलबर्न क्रिकेट ग्राउंड स्टेडियम में ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के बीच पहला वनडे मैच खेला गया था, तो उसे एक अपवाद ही समझा गया था. तीसरे टेस्ट के पहले तीन दिनों के दौरान बारिश की वजह से खेल नहीं हो पाया था.फिर तय किया गया कि दोनों टीमों को 6 बॉल वाले 40 ओवर खेलने दिए जाएंगे. इस मैच में ऑस्ट्रेलिया की पांच विकेटों से जीत हुई थी.
उसके बाद 1970 के दशक के अंत में पैकर का जमाना आया, खिलाड़ी रंगीन जर्सी में मैदान में उतरे, फ्लडलाइट के तले गेंद का रंग सफेद हुआ, खेल को टीवी में दिखाने के लिए पहली तैयारियां की गई, वनडे क्रिकेट को औपचारिक दर्जा दिया गया, 60 ओवरों के साथ शुरुआत की गई, जो बाद में 50 ओवर हुआ, उसमें भी नतीजे को बचाने के लिए बारिश के देवता डकवर्थ-लुईस आए, खेल में जान लाने के लिए पावर प्ले का इंतजाम हुआ, वाइड के नियम कड़े बनाए गए...लगा कि क्रिकेट में इससे बड़ी क्रांति तो संभव ही नहीं है.
और अब ट्वेंटी 20 का जमाना आया है. टेस्ट क्रिकेट तो वनडे के थपेड़ो को झेलते हुए अपनी जगह पर कायम है, पांच दिन का खेल देखने स्टेडियम में तो लोग पहले से कम जाते हैं, लेकिन अपने खानदानी चरित्र के साथ टीवी के पर्दे पर या दूसरे मीडिया में उसका आकर्षण बना हुआ है. खिलाड़ियों के लिए अब भी अपने देश के लिए टेस्ट मैच खेलना सबसे बड़ा सपना है, वनडे के प्रभाव से टेस्ट मैचों के खेलों में भी जान आई है, पहले से कहीं तेजी के साथ रन बनते हैं, ऊबाऊ मेडेन ओवर फेंकने वाले स्पिनरों का जमाना खत्म हो चुका है.
वनडे क्रिकेट की ही बलिहारी है कि बहुपक्षीय मुकाबलों का दौर आ चुका है, जिसकी पराकाष्ठा हमें वर्ल्ड कप में देखने को मिलती है. इनके जरिए क्रिकेट को दूसरी अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं से किसी हद तक बराबरी करने का मौका मिला है, भले ही भागीदार टीमों की संख्या कम हो. क्रिकेट खेलने वाले देशों की संख्या अब भी कम है, लेकिन दायरा अगर बढ़ा है तो इसमें वनडे क्रिकेट की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका रही है.
और वनडे क्रिकेट भी काफी बदल चुका है. आज 10+5+5, यानी कुल मिलाकर 20 ओवर पावर प्ले के होते हैं, जिनके दौरान ट्वेंटी 20 की तरह खेल हो सकता है. लेकिन इसके साथ ही 50 ओवरों तक विकेट बचाकर खेलने की भी रणनीति बनाए रखनी पड़ती है. विकेट लेने के साथ साथ रन बनाने की गति पर अंकुश के लिए भी स्पिनरों का महत्व बढ़ गया है.
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि क्रिकेट के तीनों रूपों के बीच अंतर घटे तो हैं, लेकिन उनके अपने अपने चरित्र बने हुए हैं, जिन्हें पसंद करने वाले भी मौजूद हैं. लेकिन क्रिकेट के तेज व्यवसायीकरण के चलते वनडे क्रिकेट को स्पॉन्सरों के सौतेले व्यवहार का भी शिकार बनना पड़ रहा है. जहां तक खिलाड़ियों का सवाल है तो वे वर्ल्ड कप जैसे आयोजनों में खेलने के लिए तो लालायित रहते हैं, लेकिन आम खेलों में अक्सर बहुत अधिक उत्साह नहीं दिखाते.
लेकिन वनडे क्रिकेट के अहाते से बहुतेरे युवा खिलाड़ी उभर रहे हैं, जो सिर्फ पीटकर नहीं खेलते या रन नहीं रोकते, बल्कि पचास ओवरों के अंदर बैटिंग और बॉलिंग के हुनर को आगे बढ़ाने की कोशिश करते हैं. टेस्ट क्रिकेट की लैबोरेटरी के तौर पर भी वनडे क्रिकेट अपनी भूमिका निभा रहा है, जो ट्वेंटी 20 से फिलहाल संभव नहीं दिख रही है. जाहिर है कि ट्वेंटी 20 के लिए जगह छोड़नी पड़ी है, लेकिन जितनी जगह बची है, शायद जीने के लिए काफी है. वर्ल्ड कप को लेकर उत्साह इसे फिर से साबित कर रहा है.
रिपोर्ट: उज्ज्वल भट्टाचार्य
संपादन: ए कुमार