रूस ने 2014 में क्राइमिया को अलग करने के साथ यूक्रेन के खिलाफ जो युद्ध शुरू किया था, उसमें मारियोपोल एक मिसाल है. इससे पहले 2014-15 में सिर्फ दोनेत्स्क के एयरपोर्ट की रक्षा में ही सैनिक इससे ज्यादा लंबे समय तक टिके रहे थे. हालांकि, मारियोपोल की स्थिति उसकी तुलना में बहुत ज्यादा खराब थी, क्योंकि घेरेबंदी में फंसे सैनिकों की यूक्रेन कोई सैन्य मदद नहीं कर पा रहा था.
कुछ यूक्रेनी लड़ाके स्टील प्लांट के नीचे बने बंकरों से खुद निकलकर आये, तो कुछ को स्ट्रेचर पर लाया गया. जबकि कुछ ने तय कर लिया था कि वे यहां से निकलने वाले आखिरी सैनिक होंगे.
जिन लोगों ने रूस के हाथों पकड़े जाना स्वीकार किया है, उन्हें उम्मीद है कि यूक्रेन की गिरफ्त में रूसी सैनिकों के बदले उनकी रिहाई हो जायेगी. यह उम्मीद कितनी उचित है, इस वक्त इसकी भविष्यवाणी मुश्किल है. रूस यूक्रेनी युद्धबंदियों को अपने अपमानजनक दुष्प्रचार के लिए इस्तमाल कर रहा है और उसे कोई जल्दी नहीं है.
अजोव सागर के तट पर बसा मारियोपोल आज वो नाम बन गया है, जो घर-घर में सुनाई देता है. यूक्रेन को खत्म करने के रूसी युद्ध के इतिहास की किताबों में उसका जिक्र प्रमुखता से होगा.
मारियोपोल यूक्रेन का पहला बड़ा शहर है, जिसे रूसी सेना ने आम लोगों की जान की परवाह किये बगैर पूरी तरह तबाह कर दिया. इस पर घेरेबंदी बहुत जल्दी शुरू हो गई, लेकिन प्रतिरोध जारी रहा और यह खुद यूक्रेन के लिए उसकी दृढ़ता का प्रतीक बन गया.
युद्ध शुरू होने से पहले 40 लाख से ज्यादा लोगों का घर रहे मारियोपोल में कितने लोगों की जान गई है, इसका अब तक कोई पता नहीं है. लेकिन, आशंका है कि यह संख्या दसियों हजार हो सकती है. कई हफ्तों तक अंधाधुंध गोलाबारी का निशाना रहे शहर में शायद ही कोई इमारत हो, जो युद्ध के पहले जैसी हालत में हो. यह युद्ध अपराध है, इसमें कोई संदेह नहीं है.
रूस ने मारियोपोल पर इतना कहर क्यों ढाया?
लड़ाई के पहले दिन से ही मारियोपोल, खारकीव और कीव के साथ उन तीन शहरों में था, जिन पर युद्ध की आग सबसे ज्यादा बरसी.
इसे रणनीतिक लिहाज से अहम होने के कारण सबसे पहले निशाना बनाया गया. मारियोपोल डोनबास के इलाके में दोनेत्स्क के बाद दूसरा सबसे बड़ा औद्योगिक केंद्र होने के साथ ही प्रमुख कारोबारी बंदरगाह भी है.
2014 के वसंत में इसका हाल भी दोनेत्स्क और लुहांस्क जैसा ही हुआ था और रूस समर्थित अलगाववादियों ने कुछ हफ्ते के लिए इस पर कब्जा कर लिया. हालांकि, जल्दी ही यूक्रेनी सेना ने इसे आजाद करा लिया. उसके बाद से युद्ध का मोर्चा शहर से कुछ किलोमीटर की दूरी पर ही रहा है. हालांकि, अजोव स्टील और इलीच स्टील एंड आयरन वर्क्स अपना उत्पादन जारी रखने में सफल रहे.
आठ साल तक मारियोपोल के लोग बारूद के ढेर पर बैठे रहे. उधर 2015 में 30 लोगों की जान लेने वाले एक हमले के अलावा शहर मोटे तौर पर हिंसा और तबाही से बचा रहा.
इस दौरान मारियोपोल रूसी बोलने वाले, लेकिन यूक्रेनी विचारधारा के डोनबास का केंद्र बन गया. नीले और पीले रंगों वाले झंडे उनके लिए कांटों की तरह चुभने लगे, जो मारियोपोल को उन इलाकों में देखना चाहते थे, जिन्हें रूस अलगाववादियों की मदद से कब्जा करने में लगा है. रूसी सेना ने इतनी अधिक क्रूरता जो इस शहर में दिखाई है, इसकी एक वजह यह भी है.
इसके साथ ही मारियोपोल की स्थिति ऐसी है कि यह रूसी कब्जे वाले क्राइमिया प्रायद्वीप और रूस के बीच एक जमीनी पुल का काम कर सकता है. इस तरह का जमीनी संपर्क बनाना इस युद्ध में रूस के प्रमुख लक्ष्यों में से एक है.
आखिरी में सबसे जरूरी कारण है अजोव रेजिमेंट का यहां मुख्यालय होना, जिसका गठन कट्टर राष्ट्रवादियों ने यहां मारियोपोल में किया था. इन्हीं लड़ाकों ने 2014 में मारियोपोल को आजाद कराने में निर्णायक भूमिका निभाई थी. अजोव रेजिमेंट का अस्तित्व एक छोटे, मगर बढ़िया हथियारों से लैस यूक्रेनियन नेशनल गार्ड की एक ईकाई के रूप में थी. वह बीते सालों में रूसी दुष्प्रचार का प्रमुख विषय रहा है. जब से रूस ने युद्ध के आधिकारिक लक्ष्यों में "डिनाजीफिकेशन" की घोषणा की, तभी से क्रेमलिन इस तरह के "नाजी" लेबल को मटियामेट करने में जुटा है.
रूसी युद्ध अपराधियों पर मारियोपोल में मुकदमा
इन सारी चीजों के लिए मारियोपोल ने जो कीमत चुकाई है, वह बहुत बड़ी है. मारियोपोल दुनिया के उन शहरों में शामिल हो गया है, जिन्हें युद्ध में पूरी तरह तबाह कर दिया गया. मारियोपोल की लड़ाई को उस मैटर्निटी हॉस्पिटल पर बमबारी के लिये याद रखा जायेगा, जहां से लहूलुहान मांओं को बाहर निकाला गया और उस थियेटर के लिए भी, जिसके अंदर आमलोगों ने पनाह ले रखी थी. मगर रूसी हमले में न थियेटर बचा, न उनकी जान. ये तस्वीरें भुलाई नहीं जा सकेंगी. मारियोपोल रूसी शर्म क शहर बन गया.
हालांकि, रूसी कब्जा इस शहर से यूक्रेन के इतिहास के खात्मे की शुरुआत नहीं कर सकेगा. जिस तरह से अजोव स्टील प्लांट से फिर लोहा निकलेगा, उसी तरह कभी न कभी यहां यूक्रेनी झंडा भी फिर लहरायेगा.
शहर के इतिहास का काला अध्याय तभी पूरा होगा, जब युद्ध अपराधियों के साथ न्याय होगा. द हेग के बजाय मारियोपोल में एक अंतरराष्ट्रीय ट्राइब्यूनल की मांग पहले से ही बुलंद हो रही है. यूक्रेन में रूसी सेना के अपराधों के पर्याप्त गवाह मौजूद हैं.