नेपाल में पहली बार गिने जाएंगे एलजीबीटी समुदाय के लोग
५ फ़रवरी २०२०नेपाल के केंद्रीय सांख्यिकी ब्यूरो में एक अधिकारी ढुंढी राज लामीछाने का कहना है कि अगली जनगणना जून 2021 में होगी. उनके मुताबिक इसमें एलजीबीटी समुदाय के लोगों को गिने जाने से इन लोगों के सामने मौजूद चुनौतियों से निपटने में मदद मिलेगी. दुनिया के कई विकासशील देशों की तरह नेपाल में भी इस समुदाय के लोगों को सामाजिक भेदभाव झेलना पड़ता है.
उन्होंने बताया कि जनगणना में लोग अपनी पहचान "महिला", "पुरुष" या फिर "अन्य (लिंग/लैंगिक समुदाय)" के तौर पर दर्ज करा सकते हैं. लामीछाने का कहना है कि 2015 में लागू संविधान में एलबीटी समुदाय के लोगों के लिए सरकारी नौकरियों में कोटे समेत कई अधिकारों का प्रावधान किया गया है. अब जनगणना में उनकी गिनती होने से उनके लिए सामाजिक सुरक्षा और अन्य कल्याणकारी योजनाएं बनाने में मदद मिलेगी.
लेकिन पुरूष समलैंगिक अधिकार कार्यकर्ता जनगणना में पहचान के साथ लैंगिक रुझान को जोड़ने का विरोध कर रहे हैं. उनका कहना है कि 2011 में हुई पिछली जनगणना में पहली बार तीसरे लिंग की श्रेणी जोड़ी गई थी ताकि एलजीबीटी समुदाय के सभी लोगों को गिना जा सके. ह्यूमन राइट्स वॉच के काइली नाइट कहते हैं कि पिछली बार जनगणना में भी तीसरे लिंग के तौर पर अपनी पहचान बताने वाले लोगों की संख्या इतनी कम थी कि उन्हें जनगणना के अंतिम आंकड़ों में जगह नहीं दी गई.
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हिमालय के आंचल में बसे नेपाल के समाज को काफी रुढ़िवादी माना जाता है. लेकिन जब से नेपाल राजशाही को छोड़ एक गणतांत्रिक देश बना है, तब से एलजीबीटी समुदाय के लोगों के प्रति वहां प्रगतिशील सोच को बढ़ावा मिला है. 2007 में देश की सुप्रीम कोर्ट ने एलजीबीटी समुदाय के लोगों से होने वाले भेदभाव को रोकने का आदेश दिया और सरकार से नागरिक के तौर पर उनके अधिकारों को सुरक्षित करने को कहा.
नेपाल के साथ साथ पाकिस्तान, भारत और बांग्लादेश में भी कानूनी रूप से ट्रांसजेंडरों को मान्यता दी जा चुकी है, जिनमें आम तौर पर इंटरसेक्स और किन्नरों को तीसरे लिंग के तौर पर शामिल किया गया है. नेपाल और भारत ने तीसरे लिंग के विकल्प के साथ राष्ट्रीय स्तर पर सर्वे भी कराए हैं. लेकिन कानूनी बदलावों के बावजूद नेपाल में समलैंगिकता पर अब भी खुल कर बात नहीं होती है. मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि नेपाल में रहने वाले एलजीबीटी समुदाय के नौ लाख से ज्यादा लोगों को शोषण और भेदभाव झेलना पड़ता है.
सरिता केसी एक एलजीबीटी अधिकार कार्यकर्ता हैं और वह जनगणना पर सरकारी विचार विमर्श का हिस्सा रही हैं. वह कहती हैं अधिकारी फॉर्म पर जगह की कमी के कारण लैंगिक रुझान और लिंग पहचान को एक साथ जोड़ रहे हैं क्योंकि उन्हें "मोटा मोटा डाटा" चाहिए.
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वह कहती हैं, "एलजीबीटी समुदाय पर विस्तृत ब्यौरे के साथ एक सर्वे की भी योजना है. उम्मीद है कि 2022 तक यह होगा. इससे कहीं ज्यादा सटीक डाटा मिलेगा." उनका कहना है कि 2021 की जनगणना में अगर कोई व्यक्ति एलजीबीटी समुदाय से है तो उसे "अन्य" वाला विकल्प चुनना होगा, भले ही वह अपनी पहचान महिला के तौर पर रखता हो या फिर पुरुष के तौर पर. सरिता कहती हैं कि एलजीबीटी समुदाय की गणना से इस समुदाय के लोगों को सामाजिक सुरक्षा योजनाओं और अल्पसंख्यकों के लिए निर्धारित आरक्षण का फायदा मिल पाएगा.
वह यह भी आशंका जताती है कि इससे नेपाल में एलजीबीटी समुदाय के लोगों की असल संख्या सामने नहीं आ पाएगी क्योंकि बहुत से लोग भ्रम, सामाजिक भेदभाव होने के डर या कई अन्य वजहों से अपने बारे में सच बताने से कतराएंगे. इसलिए वह जनगणना से पहले जागरूकता अभियान चलाने की जरूरत पर जोर देती हैं. वह कहती हैं, "हम उम्मीद करते हैं कि सब कुछ अच्छा हो."
एके/एमजे (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)
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