पुलिस बदलाव को बेताब भारत
२९ जनवरी २०१३एक घंटे बाद उसे होश आया तो उसने खुद को बिना कपड़ों के पाया. वह किसी तरह उठ कर खड़ी हुई. शाम हो चली थी और सूरज डूब रहा था, उसे अपनी जिंदगी का सूरज डूबता नजर आया. खामोश, दुखी, दर्द से कराहती वह दादी के घर की ओर बढ़ी.
जब उसके दलित पिता को इस बारे में पता चला तो उन्होंने खुदकुशी कर ली. उसकी मां ने इंसाफ की आवाज उठाने का फैसला किया. थाने पहुंची और शिकायत दर्ज कराना चाहा लेकिन समाज के तथाकथित ऊपरी तबके के खिलाफ दलित की आवाज दबा दी गई. उसकी मां का कहना है कि वह कुछ आरोपियों को जानती है लेकिन उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई.
इसके बाद गांव के दलित कहे जाने वाले लोगों ने प्रदर्शन किए, नारेबाजी की, तब कहीं जाकर पुलिस मानी. मामला दर्ज किया गया. सामूहिक बलात्कार के दो हफ्ते बाद पहली गिरफ्तारी हुई और बाद में कुल सात लोगों को पकड़ा गया.
अब बलात्कार की इस पीड़ित लड़की को अगले महीने अदालत में जाना है. वह अपनी दादी के घर पर रह रही है और पुलिसवाले उसे सुरक्षा दे रहे हैं. उसका कहना है कि उस जैसी लड़कियों को बहुत परेशानी होती है क्योंकि "पुलिस उनकी इज्जत ही नहीं करती."
उसका कहना है, "इससे मुझे बहुत गुस्सा आता है. पुलिस सुनती क्यों नहीं. वे अपना काम क्यों नहीं करती. वे लड़कियों की बेइज्जती क्यों करती है और ऐसा क्यों दिखाती है मानो गलती उन्हीं की हो." ये बातें करते हुए उसकी आवाज धीमी थी ताकि उसकी सुरक्षा में लगे पुलिसवालों के कान तक न पहुंचे.
पुरुष पुलिस के लिए मुद्दा नहीं
दिल्ली में पिछले महीने बलात्कार की एक घटना ने पूरे भारत को हिला कर रख दिया. भारत में बलात्कार के कई मामले रिपोर्ट ही नहीं किए जाते. दिल्ली कांड के बाद इस पूरे मुद्दे पर दोबारा बहस शुरू हुई और लोगों के विरोध के बीच कमियां पता लगाने की कोशिश हुई.
भारी दबाव के बीच सरकार ने एलान किया कि वह महिलाओं की सुरक्षा के लिए नए तरीके अपनाएगी और बलात्कार के मामलों की जांच के लिए फास्ट ट्रैक अदालतें बनेंगी. एक बड़ी समस्या भारतीय पुलिस की है, जहां आम तौर पर पुरुष पुलिसवाले होते हैं और महिलाओं से जुड़े इन मामलों में उनके अंदर संवेदनहीनता देखी जाती है. दिल्ली कांड के बाद दिल्ली के हर थाने में एक महिला अधिकारी को नियुक्त करने की बात हुई.
भारत में ड्यूटी पर तैनात पुलिसवालों की भारी कमी है. संयुक्त राष्ट्र ने 2010 में जो आंकड़े जारी किए, उसके मुताबिक देश के एक लाख लोगों पर सिर्फ 129 पुलिसवाले हैं. अमेरिका में इतने लोगों पर 227 पुलिसवाले हैं. इसके अलावा पुलिस की संवेदनहीनता का आलम यह है कि वे मामले को सुलटाने के लिए कई बार बलात्कार पीड़ित लड़की पर इस बात का दबाव डालते हैं कि वह बलात्कारी के साथ शादी कर ले.
पिछले हफ्ते दिल्ली की एक अदालत ने पुलिस पर 25,000 रुपये का जुर्माना ठोंका क्योंकि उसने 13 साल की एक बलात्कार पीड़ित लड़की का मामला दर्ज नहीं किया और दोनों पक्षों में अदालत के बाहर सुलह की कोशिश की.
वर्मा भी बरसे
भारत के पूर्व प्रमुख न्यायाधीश जेएस वर्मा ने भी पुलिस को लताड़ लगाई है और कहा है कि वह यौन अपराध के मामलों को निपटाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाती है. दिल्ली बलात्कार कांड के बाद जस्टिस वर्मा की अध्यक्षता में एक सदस्य वाली कमेटी बनाई गई, जिसने महिलाओं की सुरक्षा और बलात्कार के मामलों में कानूनी प्रक्रिया से जुड़े सुझाव दिए हैं. अपनी रिपोर्ट में जस्टिस वर्मा ने कहा है कि भारत में "दो अंगुली वाली जांच" बंद होनी चाहिए. इस जांच के तहत डॉक्टर अपनी अंगुलियां महिला की योनि में डाल कर पता लगाते हैं कि वह शारीरिक संबंध बनाने की आदी है या नहीं.
भारत की पहली महिला पुलिस आईपीएस किरण बेदी का मानना है कि पुलिस व्यवस्था पूरी तरह राजनीतिक हाथों में बंध गई है. उन्होंने डॉयचे वेले से बातचीत में कहा, "राजनीतिक तंत्र पुलिस को नियंत्रित करता है और इसी वजह से वे नियुक्तियां अपने हाथ में रखते हैं. सख्त अफसरों को निकाल देते हैं या सही जगह नियुक्त नहीं कर देते."
बेदी का कहना है कि पुलिस रिफॉर्म की जरूरत है लेकिन उससे पहले पुलिसवालों को अपने ही नियमों का पालन करना सिखाना है, "ट्रेनिंग में और नियमों में जो लिखा है, सबसे पहले उसकी जांच की जरूरत है, जो कोई बाहर की एजेंसी जांच करे. हमें देखना है कि पुलिसवाले अपने ही नियमों का पालन कर रहे हैं या नहीं. पुलिस अंदरूनी जांच करके खुद को शाबाशी देती है और सच्चाई इससे बिलकुल अलग है."
आरोप के बाद हरकत
लगातार विवादों में फंसने के बाद दिल्ली के पुलिस अधिकारी हरकत में आए और उन्होंने महिलाओं के मुद्दों को बेहतर ढंग से निपटाने के लिए कोशिशें शुरू की हैं. दिल्ली पुलिस कमिश्नर नीरज कुमार का कहना है कि पुलिस बल को पूरी तरह हिलाया गया है, ताकि "यह महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामलों को अलग नजरिए से देखना शुरू करे."
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक भारतीय पुलिस बल में सिर्फ 6.5 प्रतिशत महिलाएं हैं और सरकार इस अनुपात को बढ़ाना चाहती है. दिल्ली का मॉरिस नगर थाना आने वाले समय के लिए आदर्श साबित हो सकता है. दिल्ली यूनिवर्सिटी के पास के इस थाने में लंबे वक्त से महिलाओं को तरजीह दी जाती है और चौबीसों घंटे यहां एक महिला अधिकारी जरूर होती है.
महिला बल सतर्क
यहां खाकी वर्दी में तैनात महिला अधिकारी लोगों की शिकायतें दर्ज करती और उन्हें सलाह देती नजर आती हैं. यहां तक कि मोटर साइकिलों पर गश्त लगाती भी महिला पुलिस अधिकारी नजर आ जाएंगी. हालांकि यहां तैनात नजमा खान का कहना है कि सिर्फ पुलिस रिफॉर्म रामबाण साबित नहीं हो सकता, "अगर हमें मानसिकता बदलनी है तो इसे स्कूल के स्तर पर ही बदलना होगा. घर में बदलना होगा, परिवार में बदलना होगा. सिर्फ पुलिस अधिकारियों की भर्ती से बात नहीं बनने वाली है."
उधर दादी के घर जाते वक्त बलात्कार की शिकार दलित लड़की को इन बातों से बहुत ज्यादा भरोसा नहीं है, "अगर पुलिस नहीं बदलेगी, तो मेरी जैसी लड़कियों को कभी इंसाफ नहीं मिलेगा. और जल्द ही भारत में लोग इंसाफ की उम्मीद भी छोड़ देंगे."
एजेए/ओएसजे (एएफपी)