प्रवासी, प्यार और चुनाव
७ सितम्बर २०१३"प्यार के लिए आया हूं." हंसते हुए खुआन दियास बताते हैं कि अपनी साथी के साथ के लिए उन्होंने अपना देश छोड़कर बर्लिन में रहने का फैसला किया. दियास अमेरिकी नागरिक हैं लेकिन उनके माता पिता क्यूबा से थे. फिडेल कास्त्रो के शासन के दौरान वे वहां से भागकर अमेरिकी शहर मयामी में बस गए.
दियास खुद कहते हैं कि उनकी पहचान जटिल है. सात साल पहले उन्होंने जर्मन नागरिकता ले ली, जो उनकी पहचान को और मुश्किल बना देता है, "मैंने जर्मन पासपोर्ट के लिए अर्जी दी क्योंकि मैं सारे अधिकार चाहता था, मैं भी यह तय करना चाहता था कि चांसलर कौन होगा और संसद कौन जाएगा."
2011 में जर्मन सांख्यिकी दफ्तर के आंकड़ों के मुताबिक अपनी मर्जी से जर्मनी में बसे एक करोड़ 60 लाख लोग हैं. इनमें से ज्यादातर लोगों की उम्र या तो मताधिकार की नहीं हुई है या वे चुनाव में हिस्सा नहीं ले सकते हैं या इनके पास जर्मन पासपोर्ट नहीं है. जिनके पास जर्मन पासपोर्ट नहीं है, वे वोट नहीं डाल सकते. जर्मनी में रहने वाले यूरोपीय संघ के सदस्य देशों के नागरिक यहां होने वाले यूरोपीय स्तर के चुनावों और स्थानीय परिषद चुनावों में हिस्सा तो ले सकते हैं लेकिन जर्मनी के राष्ट्रीय चुनावों में वोट नहीं डाल सकते. वोट डालने का अधिकार सिर्फ जर्मन नागरिकों के पास है.
जर्मन सांख्यिकी विभाग का कहना है कि प्रवासियों में से एक तिहाई चुनावों में वोट डालने की योग्यता रखते हैं. यह संख्या पिछले सालों में बढ़ी है क्योंकि 2011 में एक लाख से ज्यादा लोगों को जर्मन पासपोर्ट मिला.
किस पार्टी को वोट
खुआन दियास उन लोगों में हैं, जो चुनाव में जरूर हिस्सा लेते हैं, "मुझे हमेशा बहुत अच्छा लगता है जब वोट डालने के लिए संदेश मेरे पोस्टबॉक्स में आता है." चुनाव में हिस्सा लेना एक नागरिक के अहम अधिकारों में है और दियास इस अधिकार को जाया नहीं करना चाहते. वह बाल्कन देशों में संघर्ष के दौरान मध्यस्थ के तौर पर काम करते हैं और उनका ज्यादातर वक्त सफर करने में बीतता है. ऐसी हालत में वह विदेश में जर्मन दूतावासों में वोट डालने जाते हैं.
दियास के तरह चुनावों में हिस्सा लेने वाले ज्यादातर प्रवासी सत्ताधारी सीडीयू या सोशल डोमोक्रैट एसपीडी को वोट देते हैं, कम से कम शोध से यही पता चला है. जर्मन वित्तीय शोध संस्थान की इंग्रिड टूची का कहना है कि प्रवासी ज्यादातर एक बड़ी पार्टी को वोट देते हैं. टूची के शोध के मुताबिक 1950 और 1960 के दशकों में तुर्की, युगोस्लाविया और दक्षिण यूरोप से काम के लिए जर्मनी आए प्रवासी ज्यादातर सोशल डेमोक्रैट को वोट देते हैं. इन्हें 'पारंपरिक मजदूर वातावरण' में गिना जाता है. शीत युद्ध के बाद सोवियत रूस से वापस आए जर्मन मूल के लोग ज्यादातर सीडीयू और उसके गठबंधन की पार्टी सीएसयू को वोट देते हैं.
टूची का मानना है कि पार्टी के प्रति वफादारी प्रवासियों के अपने अनुभवों पर निर्भर है. मिसाल के तौर पर सीडीयू ने रूस से वापस आ रहे जर्मन मूल के प्रवासियों को दोबारा जर्मनी में बसाने के लिए खास कोशिशें कीं और कार्यक्रमों को सहयोग दिया. लेकिन इसी पार्टी के कुछ नेताओं ने जर्मनी में काम करने आ रहे विदेशियों के साथ बेरुखी दिखाई. टूची का मानना है कि धर्म, शिक्षा स्तर या पेशा का पार्टी चुनने में ज्यादा प्रभाव नहीं होता.
टूची मानती हैं कि प्रवासियों का जर्मनी में बसने का अनुभव और वह कौन सी पार्टी चुनेंगे, इसके बीच संबंध का विश्लेषण किया जाना चाहिए. खास तौर से इसलिए क्योंकि सीडीयू और एसपीडी को प्रवासी अब पहले से कम प्राथमिकता दे रहे हैं. 2011 के आंकड़ों के मुताबिक प्रवासी मां बाप के बच्चों में से 18 प्रतिशत ग्रीन पार्टी का समर्थन करते हैं. केवल 40 प्रतिशत सीडीयू या एसपीडी को वोट देना चाहते हैं. टूची का कहना है कि वोट डालने का यह तरीका सामान्य जर्मनों से अलग नहीं है.
खुआन दियास किसको वोट देते हैं, वह बताना नहीं चाहते. कुछ साल पहले उन्होंने सीडीयू के एक नेता के लिए काम किया था. वह ग्रीन पार्टी की बैठकों में भी शामिल हुए और बर्लिन में करीब सारी पार्टियों की राजनीतिक बहसों में हिस्सा लेते हैं. दियास कहते हैं कि पहले ऐसी बैठकों में अक्सर उनसे कहा जाता था कि वह विदेशी हैं और उन्हें कुछ बोलने का हक नहीं है. उस वक्त उन्हें बड़ा गुस्सा आता था. लेकिन अब बोलना उनका अधिकार है, औपचारिक तौर पर.
रिपोर्टः नाओमी कॉनराड/एमजी
संपादनः अनवर जे अशरफ