बस, लुप्त होने की कगार पर है बाघ
१५ सितम्बर २०१०अमेरिका स्थित वन्य जीव संरक्षण सोसाइटी की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक एशिया में बाघों की मौजूदा संख्या 3,500 है और भविष्य में इसमें गिरावट आ सकती है. इसका कारण एशिया के वनक्षेत्र में सात प्रतिशत की कटौती होना है. इसके अलावा महाद्वीप बाघ की बहुतायत वाले 42 प्रमुख जंगलों में वन माफियाओं और पशु तस्करों पर लगाम लगाने में नाकामयाबी के कारण यह संकट और भी ज्यादा गहरा गया है.
शोध के मुताबिक स्थिति को काबू में करने के लिए सभी देशों को मिलकर बाघ संरक्षण के बजट में इजाफा करना बेहद जरूरी हो गया है. इसके लिए प्रति वर्ष 3.5 करोड़ अमेरिकी डॉलर का अतिरिक्त खर्च करना पड़ेगा. शोध दल के प्रमुख जॉन रॉबिन्सन ने कहा कि बाघ अपने वजूद की अंतिम दौर की लड़ाई लड़ रहा है. चिंता की बात है कि बचे हुए बाघों में मादा की संख्या सिर्फ 1,000 ही है.
रिपोर्ट के अनुसार चीन की देसी दवाओं में बाघों के अंगों के इस्तेमाल का बढ़ते चलन के कारण इसकी मांग में कमी लाना मुश्किल हो गया है. इसकी वजह से बाघ के शिकार और जंगलों के विनाश पर रोक नहीं लग पा रही है. वैज्ञानिकों ने एशिया में बाघों की आबादी में बढ़ोतरी के लिए 42 वनक्षेत्रों को मुफीद पाया है. लेकिन इनमें भी हालात सुधरने के संकेत न मिलने पर संकट के गहराने की बात कही है. इनमें से 18 वनक्षेत्र भारत में, 8 सुमात्रा, 6 रूस और शेष 10 बंगलादेश, मलेशिया, थाईलैंड और लाओस में हैं. जबकि बाघ के पारंपरिक आवास रहे चीन, उत्तर कोरिया, वियतनाम और कंबोडिया में इनकी वंशवृद्धि के संकेत न मिलने को चिंताजनक बताया गया है.
इसके अलावा जो 42 वनक्षेत्र हैं उनमें अधिकांश आकार में छोटे रह गए हैं और भूमाफियाओं के अतिक्रमण के खतरे से भी जूझ रहे हैं. इनमें से सिर्फ भारत में 5 वनक्षेत्र मौजूद हैं जिनमें क्षमता के मुताबिक बाघों की संख्या को बरकरार रखा जा सका है.
रिपोर्टः एजेंसी/निर्मल
संपादनः ओ सिंह