बुर्काः पाबंदी या आजादी
२७ नवम्बर २०१३फ्रांस और दुनिया भर के पर्यटकों के पसंदीदा शहर पैरिस में रहने वाली 18 साल की उसरा कहती हैं, "जब मैं घर से बाहर निकलती हूं तो मैं बुर्का नहीं पहनती. घर से कुछ दूर जाने के बाद मैं अपना नकाब पहन लेती हूं." उसरा अपने माता पिता की इच्छा के खिलाफ बुर्का पहनती हैं. 2010 अप्रैल से फ्रांस में मुस्लिम महिलाओं के नकाब पहनने पर पाबंदी लगा दी गई. यूरोपीय संघ के कई देशों में नकाब पहनने को महिलाओं के उत्पीड़न से जोड़ा जाता है. इस वजह से कई और देशों में भी इस पर पाबंदी है.
लेकिन उसरा उन महिलाओं में से हैं जो अपनी मर्जी से हिजाब और बुर्का पहनना चाहती हैं. वह कहती हैं, "मैं स्कूल में इसे नहीं पहन सकती. लेकिन जब मैं बाहर जाती हूं तो लोग मुझे चिढ़ाते हैं क्योंकि मैं नकाब पहनती हूं. यह कोई जिंदगी नहीं, यह बस तनाव है."
महिलाओं के अधिकार
फ्रांस की मुस्लिम महिलाओं पर सबकी नजर है. चाहे वह बाजार जा रही हों, बस में हों, बच्चों को स्कूल से ला रही हों या बस पर चल रही हों. अगर उन्होंने बुर्का पहना है तो उन्हें 150 यूरो का जुर्माना देना होगा. कानून बनाने वालों ने इस नियम के पीछे महिला और देश के कल्याण का हवाला दिया. नवंबर 2009 में तत्कालीन फ्रांसीसी राष्ट्रपति निकोला सारकोजी ने कहा, "फ्रांस में बुर्के के लिए कोई जगह नहीं, महिलाओं के उत्पीड़न के लिए कोई जगह नहीं." उन दिनों सारकोजी स्थानीय चुनावों के लिए दक्षिणपंथी पार्टियों को आकर्षित करने की कोशिश कर रहे थे.
अगले ही साल फ्रांस की संसद ने हर तरह के चेहरा और सिर ढंकने वाले हर तरह के हिजाब को प्रतिबंधित करने का कानून पारित कर दिया. सिर से पैर तक वाला बुर्का पहनना जुर्म घोषित कर दिया. कानून के मुताबिक बुर्का पहनने वाली महिलाओं को एक साल की सजा होगी और बुर्का पहनने के लिए दबाव डालने वाले पुरुषों को 35,000 यूरो का जुर्माना देना होगा. उस वक्त नेताओं ने महिलाओं के लिए पुरुषों के समान हक और समान सम्मान की बात की. लेकिन अब मुद्दा कुछ अजीब सा हो गया है.
तब से लेकर अब तक 500 महिलाओं की जांच की गई है. कई बार एक ही महिला की बार बार जांच की गई, यह पता लगाने के लिए कि वह बुर्का पहनती है या नहीं. फ्रांस में मुस्लिम करोड़पति रशीद नक्काज ने महिलाओं के लिए एक खास फंड बनाया ताकि बुर्का पहनने के लिए जुर्माना दे रही महिलाओं की आर्थिक मदद की जा सके. इस बीच मुस्लिम संगठनों के प्रतिनिधि कहते हैं कि नकाब पहनने वाली महिलाओं के खिलाफ नाइंसाफी हो रही है. बस ड्राइवर उन्हें बस पर चढ़ने नहीं देते, दुकानदार उन्हें देखकर दुकान बंद कर देते हैं और कुछ लोग उनके शरीर से नकाब को नोचने की कोशिश करते हैं.
सद्भाव या घृणा
मरवान मुहम्मद कहते हैं कि कानून तो अपनी जगह है लेकिन इससे नुकसान भी हुआ है. मुहम्मद फ्रांस में मुस्लिम विरोधी संगठनों के खिलाफ सक्रिय रहते हैं. उनका मानना है कि 2010 के बाद दक्षिणपंथी नजरिया रखने वाले लोग संप्रदाय विशेष पर निशाना साधने के लिए बुर्का प्रतिबंध कानून का सहारा लेते हैं और मुस्लिमों के खिलाफ अपने रवैये को सही ठहराते हैं. वहीं अगर कोई पुलिसकर्मी बु्र्के वाली महिला को रोकने की कोशिश करे तो महिला के रिश्तेदार उल्टा हमला करते हैं. नॉन्त और मार्से शहरों में इस साल ऐसे कुछ हादसों के बाद पैरिस के पास ट्राप में दंगे भी हुए.
इस बीच 23 साल की एक महिला ने फ्रांसीसी सरकार के खिलाफ यूरोपीय मानवाधिकार अदालत में केस किया है. युवती बु्र्का प्रतिबंध की वजह से लंदन चली गई. अदालत के मुताबिक युवती ने अपनी अर्जी में लिखा है कि वह अपनी मर्जी के कपड़े नहीं पहन सकती और यह उनकी निजी जिंदगी की आजादी के खिलाफ है. मानवशास्त्र शोधकर्ता दुनिया बूजार कहती हैं कि यूरोप में मुसलमानों को इससे और नुकसान होगा, "आप वैसे ही बुर्के को एक मुस्लिम प्रतीक मानकर चलते हैं. कुछ कट्टरपंथी धार्मिक गुट यही चाहते हैं. ये लोग यूरोपीय लोगों को बताना चाहते हैं कि बुर्का इस्लाम का हिस्सा है. यह सही नहीं. राजनीति इन लोगों की मदद कर रही है, इनकी बात को अहमियत देकर."
रिपोर्टः कारोलीन लोरेंज/एमजी
संपादनः ओंकार सिंह जनौटी