बैंक से लेकर वोदका तक रूस का अलगाव बढ़ रहा है
१ मार्च २०२२दुनिया अब आपस में इतनी ज्यादा जुड़ चुकी है कि वुहान के मांस बाजार से निकला एक वायरस सुदूर, विशाल, ताकतवर देशों को एक साथ एक झटके में घुटने के बल बैठा सकता है. आपस में गुंथे सप्लाई चेन, बैंकिंग, खेल ऐसी असंख्य चीजें हैं जो पृथ्वी के कोने कोने में मौजूद देशों का संपर्क जोड़ रही हैं. एक दूसरे में गहराई तक धंसे संबंधों के इन तारों के टूटने का असर क्या होता है इसकी बानगी फिलहाल रूस में दिखनी शुरू हो चुकी है.
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रूस पर हर तरह के प्रतिबंध
रूस ने यूक्रेन पर हमले के लिए कई हफ्तों, महीनों या फिर सालों तैयारी की लेकिन अमेरिका और यूरोपीय संघ ने प्रतिबंधों के एलान में जरा भी वक्त नहीं लिया. इस हफ्ते रूस की अंतरराष्ट्रीय बैंकिंग क्षमता में बड़े पैमाने पर कटौती हुई है. अंतरराष्ट्रीय खेल मुकाबलों से उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है. उसके विमान अब यूरोप और अमेरिकी वायुसीमा में नहीं जा सकेंगे. अमेरिका के कई राज्यों में अब मेहमानों का स्वागत वोदका से नहीं होगा. यहां तक कि विश्वयुद्धों के दौर में तटस्थ रहने वाले स्विट्जरलैंड ने भी व्लादिमीर पुतिन को पीठ दिखा दी है.
यूक्रेन पर हमला करने की वजह से बीते तीन दिनों में ही रूस अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में एक तरह से बाहरी नजर आने लगा है. पुतिन के दोस्तों की तादाद तेजी से घटने लगी है. बड़ी बात यह है कि रूस के खिलाफ प्रतिबंधों में हर तरह के रंग नजर आ रहे हैं, यह रूसी लोगों के जीवन पर कई तरह से असर डालेंगे जिनकी शुरुआत हो चुकी है.
मैकलेस्टर कॉलेज में अंतरराष्ट्रीय संबंध पढ़ाने वाले और भूराजनीति के विशेषज्ञ प्रोफेसर एंड्रयू लाथम कहते हैं, "यहां कुछ हुआ है. यह किसी झरने के समान जिस तरह आगे बढ़ा है, उसकी तो चार दिन पहले तक किसी ने कल्पना भी नहीं की थी."
ईरान और उत्तर कोरिया से ज्यादा कड़े प्रतिबंध
पिछले तीन दिनों में प्रतिबंधों ने रूस को जंगल की आग की तरह अपने घेरे में लिया है. सरकारों, गठबंधनों, संगठनों और लोगों को जहां भी गुंजाइश दिखी है वहां प्रतिबंध ठोक दिए गए हैं. कुल मिला कर देखें तो कई मामलों में यह ईरान और उत्तर कोरिया पर लगे प्रतिबंधों से भी आगे निकल गए हैं.
यूरोपीय देश इस मामले में खासतौर से बहुत एकजुट हैं. इन देशों ने रूसी जहाजों के लिए वायुसीमा बंद कर दी है. 11,000 बैंकों और दूसरे संगठनों के साथ काम करने वाले स्विफ्ट भुगतान तंत्र से रूस के प्रमुख बैंकों को बाहर कर दिया गया है. रूस के रईसों यानी ओलिगार्कों की संपत्तियां जब्त करने की तैयारी हो रही है और उन पर अनेक तरह से घेरा डाला जा रहा है.
सोमवार को दुनिया और यूरोप की फुटबॉल संस्थाओं ने रूसी टीमों को अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल से बाहर कर दिया इनमें 2022 के वर्ल्ड कप के लिए क्वालिफाइंग मैच भी शामिल हैं. इससे पहले अंतरराष्ट्रीय ओलिंपिक संघ ने खेल संगठनों को रूसी एथलीटों और अधिकारियों को अंतरराष्ट्रीय आयोजनों से बाहर करने को कहा. जूडो और ताइक्वांडों के अंतरराष्ट्रीय खेल संघों ने ना सिर्फ पुतिन को दी मानद उपाधियां छीन ली है बल्कि रूस पर प्रतिबंध लगाने की भी बात कही है.
जब अंतरराष्ट्रीय आईस हॉकी फेडरेशन और नेशनल हॉकी लीग ने रूस के खिलाफ अपने कदमों का एलान किया तो यह साफ हो गया कि रूस के खिलाफ शुरू हुआ अभियान इतना बड़ा है जिसकी तपिश खेलों की दुनिया कई दशकों तक महसूस करेगी.
बैंक से लेकर वोदका तक
जर्मनी ने दूसरे विश्वयुद्ध के बाद से चली आ रही अपनी विदेश नीति बदल दी है और यूक्रेन को हथियार देने का फैसला किया है. जर्मन चांसलर ने इस कदम को "नई सच्चाई" कहा है. फिनलैंड और स्वीडन जैसे देश जो बड़ी मुश्किल से ही इस तरह के मामलों में सामने आते हैं, वो भी रूस के खिलाफ चले गए हैं और यूक्रेन को हथियार भेज रहे हैं. स्विट्जरलैंड अपनी सुरक्षित बैंकिंग के लिए दुनिया भर में जाना जाता है. अब उसने भी "रूस के मामले में सख्त रवैया" अपनाने की बात कही है.
अमेरिका के कई राज्यों ने भी रूस के खिलाफ कदम उठाने की शुरूआत की है. भले ही ये कदम रूस को सीधे प्रभावित ना करें लेकिन इन कोशिशों का असर होगा. पेन्सिल्वेनिया, नॉर्थ कैरोलाइना, वेरमोंट, वेस्ट वर्जीनिया और माइन जैसे अमेरिकी राज्यों ने रूसी वोदका और दूसरे सामान को दुकानों से हटाने का फैसला किया है. पेन्सिल्वेनिया ने तो एक कदम और आगे जा कर कंपनियों में रूसी हिस्सेदारियों का विनिवेश भी शुरू कर दिया है.
फिलाडेल्फिया के स्टेट सीनेटर शरीफ स्ट्रीट ने लिखा है, "अंतरराष्ट्रीय कानून और मानवीय सहयोग का उल्लंघन करने के लिए रूस गंभीर नतीजे भुगते यह सुनिश्चित करने के लिए हमें अपनी आर्थिक ताकत का जरूर इस्तेमाल करना चाहिए."
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सोशल मीडिया का असर
आनन फानन में उठाए गए इस तरह के कदमों को अमेरिकी राष्ट्रपति के दफ्तर व्हाइट हाउस की सराहना भी मिल रही है. व्हाइट हाउस के प्रेस सचिव जेन प्साकी का कहना है, "राष्ट्रपति पुतिन आधुनिक इतिहास में नाटो को एकजुट करने वाले सबसे बड़े कारक साबित हुए हैं. मुझे लगता है कि इस एक चीज के लिए हम उनका आभार मान सकते हैं."
जितनी तेजी से इस बार सब कुछ हुआ है उसने 9/11 के हमले के बाद हुए प्रतिबंधों को भी पीछे छोड़ दिया है. इसमें एक बड़ी भूमिका सोशल मीडिया और इंटरनेट की भी है. यूक्रेन और इससे बाहर क्या हो रहा है इस बारे में पर्यवेक्षकों को सीधे जानकारी मिल रही है और इसका असर तुरंत और कई गुना ज्यादा हो रहा है. माइने के गवर्नर ने वोदका से जुड़े कदम उठाने का फैसला एकदम से कर लिया.
लाथम कहते हैं, "एक पीढ़ी पहले यह सब विदेश मंत्रालयों और 6 बजे के समाचार में सुनाई देता है, उसमें आज जितनी तेजी और एक दूसरे से जुड़ाव नहीं दिखते थे. मुझे लगता है कि यह इसके असर को और तेज कर रहा है." जर्मन राजधानी में यूक्रेन पर हमले के विरोध में एक लाख सेज्यादा लोगों का जमा होना और कोलोन के कार्निवाल का यूक्रेनी रंग में रंग जाना अनायास नहीं है. सोशल मीडिया की इसमें बड़ी भूमिका है और अब तो सरकारों को लामबंद करने में भी यह कारगर हो रहा है. यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की खुद इसका भरपूर इस्तेमाल कर रहे हैं.
रूस के मददगार भी हैं
ऐसा भी नहीं है कि हर कोई रूस को अलग थलग करने की होड़ में है. चीन ने इस मामले में खुद को बाकी दुनिया के साथ नहीं रखा है और इसमें कोई हैरानी भी नहीं है. हालांकि चीन लंबे समय से यह कहता रहा है कि देशों को दूसरे की संप्रभुता को सबसे ऊपर रखना चाहिए और इस मामले में उसकी स्थिति आने वाले दिनों में कमजोर होगी. वैसे भी ताइवान, हांगकांग और दक्षिण चीन सागर के मामले में उसका रुख उसकी नीतियों से मेल नहीं खाता.
बहरहाल सजा की कार्रवाइयों में चीन के शामिल नहीं होने से दूसरे देशों पर बहुत असर नहीं पड़ा है. अगर चीन इसे कमजोर करने की कोशिश करता है तो मुमकिन है कि उस पर भी प्रतिबंध लगें. बेलारूस ने यूक्रेन पर हमले के लिए जमीन दी है और यूएई के साथ भारत ने भी संयुक्त राष्ट्र की कार्रवाई से अलग रह कर रूस को मदद पहुंचाई है. कुछ और देश भी हैं जो रूस के साथ सहयोग कर सकते हैं जाहिर है कि वो एकदम अकेला भी नहीं है.
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इस हफ्ते दुनिया ने जो कदम उठाए हैं वो बहुत जल्दबाजी में लिए फैसलों का नतीजा हैं लेकिन क्या ये लंबे समय तक टिके रहेंगे? पुराने गठबंधन तेजी से साथ तो आ गए लेकिन हफ्ते गुजरने के साथ उनमें टकराव भी शुरू होगा. इसके अलावा इसी वैश्विक संबंधों के ताने बाने और संपर्कों में जितनी ताकत किसी देश को अलग थलग करने देने की है उतनी ही सुविधा इनके असर को कम करने की भी है.
इसके बाद भी देशों को नए जमाने के तरीकों से पुराने जमाने की हरकत, यानी किसी और की जमीन पर ताकत से कब्जा करने वाले देश को सबक सिखाने की ताकत तो मिल ही गई है. वास्तव में प्रतिबंधों ने वैश्विक तंत्र को इस तरह से एकजुट कर दिया है कि विश्लेषक भी हैरान हैं. प्रतिबंध वैश्विक दुनिया में कितने कारगर हो सकते हैं रूस पर यूक्रेन के हमले ने इसे परखने का अच्छा मौका दिया है.
रिपोर्टः निखिल रंजन(एपी)