ब्रिक का दायरा बढ़ा, और चुनौतियां भी
१२ अप्रैल २०११गुरुवार को होने वाले शिखर सम्मेलन में लीबिया समेत कई मुद्दों पर बात होगी, लेकिन अधिकारियों का कहना है कि चीन के मुद्रा विनिमय को लेकर छिड़े विवाद की चर्चा नहीं होगी. इस बैठक में चीन को दुनिया की उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं का नेता बनने का मौका भी मिल सकता है
चीनी राष्ट्रपति हू जिनताओ की अध्यक्षता में होने वाली बैठक में ब्राजील की राष्ट्रपति दिल्मा रूसेफ, रूसी राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव, दक्षिण अफ्रीकी राष्ट्रपति जैकब जूमा और भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह हिस्सा लेंगे. समूह में दक्षिण अफ्रीका के आ जाने के बाद अब इसका नाम ब्रिक्स हो गया है. एक साथ ये पांचों देश दुनिया की 40 प्रतिशत आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं. विश्व मुद्रा कोष का कहना है कि 2014 तक यह समूह दुनिया की 61 प्रतिशत वृद्धि का मालिक होगा.
लंदन स्थित एक अर्थशास्त्री एंड्र्यू केनिंघम का कहना है, ब्रिक्स के कारण उभरती हुई ताकतों का असर बढ़ेगा. वह कहते हैं कि दक्षिण अफ्रीका इतनी बड़ी ताकत नहीं हैं लेकिन वह अफ्रीकी महाद्वीप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था तो है ही. दक्षिण अफ्रीकी अर्थव्यवस्था बाकी ब्रिक्स साथियों के जितनी तेजी से नहीं बढ़ रही है. केंनिंघम बताते हैं कि दक्षिण अफ्रीका की अर्थव्यवस्था चीनी अर्थव्यवस्था का 16वां हिस्सा है.
वैसे ब्रिक्स देशों के कई आर्थिक हित आपस में टकराते भी हैं. मसलन चीन के सस्ते निर्यात ने ब्राजील के जूता उद्योग और दक्षिण एशिया के कपड़ा उद्योग को बर्बाद कर दिया है. वहीं भारत ने चीन के कई उत्पादों पर कई तरह के शुल्क लगाए हैं. चीन को बेचे जाने वाले तेल के दामों पर भी रूस के साथ तनातनी है. ब्रिक्स को अस्थिर करने की इच्छा रखने वालों के लिए यह एक बनावटी ढांचा है.
रिपोर्टः एजेंसियां/ए कुमार
संपादनः आभा एम