भारत ने गेहूं का निर्यात रोका
१४ मई २०२२इसका एशिया और अफ्रीका के गरीब देशों पर बुरा असर होगा. शुक्रवार को विदेश व्यापार निदेशालय की तरफ से जारी सरकारी गजट में आये नोटिस में कहा गया है कि दुनिया में बढ़ती कीमतों के कारण भारत उसके पड़ोसी और संकट वाले देशों में खाद्य सुरक्षा को खतरा है. गेहूं का निर्यात रोकने की प्रमुख वजह है घरेलू बाजार में उसकी कीमतों को बढ़ने से रोकना.
इस प्रतिबंध के बाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं की कीमतें और ज्यादा बढ़ सकती हैं. इस साल की शुरुआत से लेकर अब तक अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं की कीमत 40 फीसदी तक बढ़ चुकी है. भारत के कुछ बाजारों में इसकी कीमत 25,000 रुपये प्रति टन है जबकि न्यूनतम समर्थन मूल्य 20,150 रूपये ही है.
सरकार ने कहा है कि अब सिर्फ उसी निर्यात को मंजूरी दी जायेगी जिसे पहले ही लेटर ऑफ क्रेडिट जारी किया जा चुका है. इसके साथ ही उन देशों को जिन्होंने "भोजन की सुरक्षा की जरूरत" को पूरा करने के लिए सप्लाई का आग्रह किया है.
फैसले से हैरानी
मुंबई में एक गेहूं के डीलर ने प्रतिबंध की खबर आने के बाद कहा, "यह हैरान करने वाला है. हम लोग दो तीन महीने बाद निर्यात पर रोक लगने की उम्मीद कर रहे थे लेकिन ऐसा लगता है कि महंगाई के आंकड़ों ने सरकार का मन बदल दिया." खाने पीने की चीजों की कीमतें बढ़ने की वजह से भारत में खुदरा महंगाई की सालाना दर अप्रैल में आठ सालों के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई.
यह भी पढ़ेंः क्या दुनिया में खाना अब कभी सस्ता नहीं होगा?
युद्ध शुरू होने से पहले यूक्रेन और रूस दुनिया भर में पैदा होने वाले गेहूं में एक तिहाई की हिस्सेदारी करते थे. पिछले दिनों युद्ध के कारण ना सिर्फ उनके उत्पादन पर असरपड़ा है बल्कि निर्यात तो लगभग पूरी तरह से बंद हो गया. यूक्रेन के बंदरगाह पर रूसी सेना की घेराबंदी है और बुनियादी ढांचे के साथ ही अनाजों के गोदाम भी युद्ध में तबाह हो रहे हैं.
इधर भारत में इसी वक्त गेहूं की फसल को अभूतपूर्व लू के कारण काफी नुकसान हुआ है और उत्पादन घट गया है. उत्पादन घटने की वजह से भारत में गेहूं की कीमत पहले ही अपने उच्चतम स्तर पर चली गई हैं.
दिल्ली के एक अनाज व्यापारी राजेश पहाड़िया जैन का कहना है, "गेहूं की कीमतों मे बढ़ोत्तरी बहुत ज्यादा नहीं है और भारत की कीमतें अब भी वैश्विक कीमतों की तुलना में कम हैं. वास्तव में देश के कुछ हिस्सों में तो पिछले साल ही कीमतें इस स्तर तक पहुंच गई थीं जहां बाकी जगहों पर अब पहुंची हैं. ऐसे में निर्यात को रोकना और कुछ नहीं एक बिना सोची समझी प्रतिक्रिया है."
यह भी पढ़ेंः युद्ध और जलवायु संकट के दौर में दुनिया का पेट भर सकता है यह अनाज
गेंहू की पैदावार में कमी
गेंहू के अंतरराष्ट्रीय खरीदारों को भारत से बहुत उम्मीदें थीं. हालांकि मध्य मार्च में अचानक बदले मौसम के मिजाज ने उसकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया. दिल्ली के एक ग्लोबल ट्रेडिंग फर्म के मालिक ने आशंका जताई है कि इस साल उपज घट कर 10 करोड़ टन या इससे भी कम रह सकती है. सरकार ने इससे पहले उत्पादन 11.13 करोड़ टन रहने की उम्मीद जताई थी जो अब तक का सर्वाधिक है. ट्रेडिंग फर्म के मालिक ने कहा, "सरकार की खरीद 50 फीसदी से भी कम है, बाजारों को पिछले साल की तुलना में कम सप्लाई मिल रही है. यह सब इस बात की ओर संकेत कर रहे हैं कि फसल कम है."
सरकारी एजेंसियों की गेहूं खरीद इस साल घट कर 1.8 करोड़ टन पर आ गई है. यह बीते 15 सालों में सबसे कम है. वित्त वर्ष 2021-22 में कुल 4.33 करोड़ टन गेहूं की सरकारी खरीद हुई थी. न्यूनतम समर्थन मूल्य पर ज्यादातर खरीदारी अप्रैल से मध्य मई के बीच ही होती है ऐसे में सरकारी गोदामों में अब और ज्यादा गेहूं आएगा इसकी उम्मीद ना के बराबर है.
रिकॉर्ड निर्यात के बाद पाबंदी
दुनिया में बढ़ती कीमतों का फायदा उठाने के लिए भारत ने इस साल मार्च तक करीब 70 लाख टन गेहूं का निर्यात किया जो पिछले साल की तुलना में 250 प्रतिशत ज्यादा है. अप्रैल में भारत ने रिकॉर्ड 14 लाख टन गेहूं का निर्यात किया और मई में पहले से ही 15 लाख टन गेहूं के निर्यात के सौदे हो चुके हैं.
2022-23 के लिए भारत ने 1 करोड़ टन गेहूं के निर्यात का लक्ष्य रखा था.गेहूं की सप्लाई में आ रही दिक्कतों की स्थिति में भारत ने अपना निर्यात बढ़ाने का फैसला किया था और अपने गेहूं के लिए यूरोप, अफ्रीका और एशिया में नये बाजार खोजने की फिराक में था. इसमें से ज्यादातर हिस्सा इंडोनेशिया, फिलीपींस और थाईलैंड जैसे देशों को भेजा जाता.
इसी हफ्ते की शुरूआत में भारत ने 2022-23 के लिए रिकॉर्ड निर्यात का लक्ष्य तय किया था. इसके साथ ही यह भी कहा गया कि भारत अपने कारोबारी प्रतिनिधिमंडल मोरक्को, ट्यूनीशिया, इंडोनेशिया और फिलीपींस भेजेगा जिससे कि निर्यात को मजबूत करने के नये तरीके निकाले जा सकें.
फिलहाल तो स्थिति बदल गई है. मौसम की समस्याओं के अलावा भारत के अपने अनाज भंडार पर भी दबाव बढ़ गया है. महामारी के दौर में भारत ने करीब 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन बांटा है और उसकी वजह से उसके भंडार में उतना अनाज नहीं है कि वह खुद को सुरक्षित महसूस करे. मांग और आपूर्ति के बीच संतुलन के लिए भारत को हर साल करीब 2.5 करोड़ टन गेहूं की जरूरत होती है.
हालांकि भारत के भोजन और जन वितरण विभाग के सचिव सुधांशु पाण्डेय ने कहा है, "देश में फिलहाल पर्याप्त भोजन भंडार मौजूद है. गेहूं की कीमतों में अचानक तेजी आ गई है. अनियंत्रित व्यापार कीमतों के बढ़ने का कारण है. हमारा प्राथमिक उद्देश्य महंगाई को रोकना है."
सबसे ज्यादा गेहूं उगाने के मामले में भारत दूसरे नंबर है. हालांकि उसका ज्यादातर हिस्सा देश के लोगों का लोगों का पेट भरने में ही खर्च हो जाता है.
एनआर/आरएस (रॉयटर्स, एपी)